वास्तु शास्त्र व वायव्य दिशा का ज्ञान - Knowledge of Vaastu Shastra and North-West direction
प्रत्येक दिशा से अलग-अलग देवता जुड़े हुए हैं। इसीलिए वास्तु में हर दिशा का बहुत महत्व होता है। वास्तु शास्त्र यह भी निर्दिष्ट करता है कि दिशाओं के आधार पर किसी भवन या कार्यक्षेत्र में वस्तुओं को कहाँ रखा जाए या कुछ चीज़ों का निर्माण किया जाए। इन दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज करने से वास्तु दोष उत्पन्न हो सकता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो सकता है। इसलिए वास्तु के नियमों का पालन करना जरूरी है। वास्तु शास्त्र में उत्तर-पश्चिम दिशा को वायव्य कोण माना जाता है, जो काफी महत्व रखता है। यह दिशा उत्तर और पश्चिम के मध्य स्थित है। वायव्य दिशा का स्वामी चंद्रमा है और वायु देव इसके अधिपति हैं। यह दिशा वायु प्रवेश के लिए आदर्श है क्योंकि यह गर्म और ठंडे क्षेत्रों के मिलन बिंदु का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए, इस दिशा में शयनकक्ष, गेराज या गौशाला जैसे क्षेत्रों का निर्माण करने की सिफारिश की जाती है, क्योंकि यह परिवार के सदस्यों की मानसिक भलाई और उनके रिश्तों को प्रभावित करता है। इस दिशा में खिड़कियाँ स्थापित करना भी फायदेमंद हो सकता है क्योंकि यह सकारात्मक वायु संचार को सुविधाजनक बनाकर बाहरी लोगों के साथ संबंधों को बेहतर बनाता है।
वायव्य उन्मुखी निर्माण के लिए मुख्य बिंदु
वास्तु वायव्य कोण को तीन भागों में विभाजित करता है: वायव्य, उत्तर वायव्य और पश्चमी वायव्य। मुख्य प्रवेश द्वार कभी भी उत्तर-वायव्य या वायव्य में नहीं होना चाहिए क्योंकि ये गृहस्वामी की प्रतिष्ठा और धन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। वास्तु विशेषज्ञ अग्नि कोण से प्रभावित होने के कारण मुख्य प्रवेश द्वार के लिए पश्चमी वायव्य को सर्वोत्तम स्थान मानते हैं। वायव्य कोने में सुरक्षा टैंक और शौचालय का निर्माण उचित है क्योंकि यह घर से अशुद्ध पानी को बाहर निकालने में मदद करता है।
वायव्या कोने में रहते हैं?
वायव्य कोण वायु देव द्वारा शासित होता है और निरंतर गति का प्रतीक है। डॉक्टर, वकील, वास्तुकार, ज्योतिषी, राजनेता, अभिनेता, संगीतकार, पत्रकार, गायक आदि पेशेवर, जिनके काम में अक्सर यात्रा शामिल होती है, उनके शयनकक्ष वायव्य कोने में होने चाहिए। यह रुझान उन्हें जनता के करीब लाकर उनकी प्रसिद्धि और सफलता का समर्थन करता है और सफलता के शिखर तक पहुंचने में सहायता करता है।
घ्यान देने योग्य बातें:
1. यदि आपके घर में वायव्य कोने का अभाव है, तो इससे वायु तत्व की कमी हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सिरदर्द, चक्कर आना और कम ऊर्जा स्तर जैसी समस्याएं होती हैं।
2. दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व दिशा के ऊंचे होने से वायु तत्व में असंतुलन पैदा हो सकता है, जिससे व्यर्थ सोच और अनावश्यक चिंतन करना पड़ सकता है।
3. विदेश यात्रा के इच्छुक लोगों के लिए वायव्य दिशा महत्वपूर्ण है। इस दिशा में शयनकक्ष होने से व्यक्तियों को अपनी पैतृक जड़ों से दूर रहने में मदद मिलती है और उनके विदेशी प्रयासों में मदद मिलती है, बशर्ते वास्तु दिशानिर्देशों का पालन किया जाए।