क्या आरबीआई को फेडरल रिजर्व की तरह ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए? जानें इसके संभावित प्रभाव

क्या आरबीआई को फेडरल रिजर्व की तरह ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए? जानें इसके संभावित प्रभाव
Last Updated: 08 नवंबर 2024

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की कमी की है। इसके साथ ही, दुनिया भर की कई अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाएँ भी ब्याज दरों को घटाने की दिशा में कदम उठा रही हैं। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अभी तक ब्याज दरों में कमी करने का कोई संकेत नहीं दिया है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास का ध्यान वर्तमान में महंगाई पर नियंत्रण रखने पर केंद्रित है। आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति समिति (MPC) बैठक दिसंबर में होगी।

नई दिल्ली: अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने गुरुवार रात नीतिगत ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती करने का फैसला किया, जो कि सभी की उम्मीदों के अनुरूप था। इससे पहले की बैठक में, उसने ब्याज दरों को 0.50 प्रतिशत कम किया था। विश्व की अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाएं भी ब्याज दरों में लगातार कटौती कर रही हैं। यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने अब तक तीन बार दरों में कटौती की है।

वहीं, बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी दो बार ब्याज दरों में कमी की है। स्विट्जरलैंड, स्वीडन, कनाडा जैसी कई अर्थव्यवस्थाओं ने भी दरों में ढील दी है। चीन भी लंबे समय से ब्याज दरों में रियायत देने की कोशिश कर रहा है। अब सवाल यह उठता है कि भारत में ब्याज दरें कब तक कम होंगी? आरबीआई अब किस चीज का इंतजार कर रहा है? इसके साथ ही, ब्याज दरों को कम करना अब क्यों जरूरी हो गया है?

ब्याज दर (Repo Rate) क्या होती है?

नीतिगत ब्याज दर वास्तव में देश में ऋण पर ब्याज दर को निर्धारित करती है। सामान्यतः इसे केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसका सरल तर्क यह है कि नीतिगत ब्याज दर, जिसे हम रेपो रेट भी कहते हैं, जितनी कम होगी, आपको उतने ही सस्ते दर पर होम, कार या किसी अन्य ऋण की सुविधा मिलेगी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) हर दो महीने में ब्याज दरों की समीक्षा करता है, लेकिन उसने फरवरी 2023 से नीतिगत ब्याज दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया है।

महंगाई और ब्याज दर का संबंध

महंगाई का ब्याज दरों से एक स्पष्ट संबंध है, जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो लोगों को सस्ती ऋण सुविधा मिलती है, जिससे वे घर या गाड़ी खरीदने जैसे बड़े खर्चों में वृद्धि करते हैं। इन ऋणों का उपयोग आर्थिक गतिविधियों जैसे निवेश (व्यवसाय में) या उपभोग (घर, मोबाइल फोन, छुट्टियों) के लिए किया जाता है। जब ब्याज दरें कम होती हैं, तब ऋण उठाने की मात्रा बढ़ जाती है।

इसका परिणाम यह होता है कि मांग और जीडीपी वृद्धि के साथ-साथ महंगाई में भी बढ़ोतरी होती है। इस स्थिति में, केंद्रीय बैंक अक्सर ब्याज दरों को बढ़ाते हैं, जिससे ऋण महंगा हो जाता है और बाजार में नकदी की उपलब्धता कम होने लगती है। इसके बाद, धीरे-धीरे महंगाई पर नियंत्रण पाया जाता है।

आरबीआई ब्याज दर क्यों नहीं घटा रहा?

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, केंद्रीय बैंक का प्राथमिक ध्यान वर्तमान में मुद्रास्फीति को कम करने पर है। विशेष रूप से, खाद्य महंगाई ने आरबीआई के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। आलू, प्याज और टमाटर जैसी सब्जियों की कीमतें लगातार ऊंची बनी हुई हैं। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।

दास ने पिछले महीने एक इंटरव्यू में कहा था, जब मुद्रास्फीति 5.5 फीसदी के स्तर पर हो और इसके आने वाले समय में ऊँचा बने रहने की संभावना हो, तो ब्याज दरों में कटौती करना संभव नहीं है। खासकर, जब आर्थिक वृद्धि अच्छी गति से चल रही हो।

ब्याज दरों में कटौती आवश्यक क्यों है

भारत की आर्थिक विकास की गति थोड़ी धीमी पड़ती नजर आ रही है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अनुसार, सितंबर तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना है, जबकि पहले इस वृद्धि का अनुमान 7 प्रतिशत था। कुछ आर्थिक विशेषज्ञों ने चिंताएं व्यक्त की हैं कि पूरे वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए जीडीपी वृद्धि दर 7 प्रतिशत से भी कम रह सकती है।

फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) कंपनियों ने भी उपभोक्ता खपत में सुस्ती का संकेत दिया है। वहीं, ऑटोमोबाइल कंपनियों की बिक्री भी अपेक्षाओं से कम रही है। ऐसे हालात में, ब्याज दरों में कटौती से आम जनता को राहत मिलेगी और इससे खपत में वृद्धि की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।

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