इस वर्ष जन्माष्टमी (Janmashtami 2024) का त्योहार 26 अगस्त को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाएगा। भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि के इस विशेष अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इस दिन भगवान कृष्ण को विशेष श्रृंगार के साथ-साथ छप्पन भोग अर्पित करने की परंपरा है। आइए जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई और 56 भोग में कौन-कौन सी चीजें शामिल होती हैं।
Janmashtami 2024: भगवान श्रीकृष्ण को 'छप्पन भोग' अर्पित करने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। 56 भोग की थाली का सांस्कृतिक महत्व तो है ही, इसके धार्मिक पहलू भी बेहद खास हैं। समय के साथ, इस भोग की थाली को स्थानीय व्यंजनों के अनुसार तैयार किया जाने लगा है, जो भारतीय भोजन के प्रति लोगों की अपार प्रेम और विविधता का प्रतीक है।
इसी सोच को ध्यान में रखते हुए भगवान कृष्ण के लिए 56 भोग की थाली तैयार की जाती है, जिसमें मीठे, नमकीन, खट्टे, तीखे, कसैले और कड़वे सभी प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं। आइए जानते हैं कि इस प्रथा की शुरुआत कैसे हुई-
गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का लिया निर्णय
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा इंद्र को खुश करने के लिए एक विशेष समारोह का आयोजन कर रहे थे। इस बीच, छोटे कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि ये ब्रजवासी किस प्रकार का आयोजन करने जा रहे हैं? नंद बाबा ने उत्तर दिया कि इस पूजा के माध्यम से देवराज इंद्र प्रसन्न होंगे और बेहतर वर्षा करेंगे।
इस पर बाल कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्र का कार्य है, तो फिर इसमें पूजा की आवश्यकता क्यों है ? यदि पूजा करनी है, तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इससे लोगों को भरपूर फल और सब्जियां मिलती हैं और जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध होता है। कृष्ण के इस सुझाव को सुनकर ब्रजवासियों को यह बात बहुत पसंद आई और उन्होंने इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निर्णय लिया।
ब्रजवासियों को बाल कृष्ण की अद्भुत लीला का हुआ अनुभव
गोवर्धन की पूजा के कारण देवताओं के राजा इंद्र अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज में प्रचंड वर्षा शुरू कर दी, जिससे अपना क्रोध प्रकट किया। इस स्थिति में, ब्रजवासी भयभीत होकर नंद बाबा के घर पहुंचे। तब श्रीकृष्ण ने अपनी बाईं हाथ की अंगुली से पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया, जिसके नीचे ब्रजवासियों को सुरक्षा मिली। कथानुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक बिना किसी भोजन या पानी के गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा। आखिरकार, आठवें दिन बारिश रुक गई और ब्रजवासी बाहर आए। गोवर्धन पर्वत ने न केवल ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया, बल्कि इस दौरान ब्रजवासियों को बाल कृष्ण की अद्भुत लीला का भी अनुभव हुआ।
कैसे शुरू हुई 56 भोग की शुरुआत
ऐसे में, सभी को पता था कि कृष्ण ने पिछले सात दिनों से कुछ नहीं खाया है। तब सभी ने मां यशोदा से पूछा कि आप अपने लल्ला को कैसे खाना खिलाती हैं। इस पर सबको यह जानकारी मिली कि माता यशोदा अपने कान्हा को दिन में आठ बार भोजन कराती हैं। इसी प्रकार, बृजवासी अपने-अपने घरों से सात दिनों के अनुसार हर दिन के लिए 8 अलग-अलग व्यंजन तैयार करके लाए, जो कृष्ण को पसंद थे। इस तरह छप्पन भोग की परंपरा शुरू हुई और तभी से यह मान्यता बनी कि 56 भोग के प्रसाद से भगवान कृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
देखें कौनसे हैं 56 व्यंजन-
छप्पन भोग में चढ़ाए जाने वाले व्यंजनों की एक लंबी सूची है, जिसमें शामिल हैं: पंजीरी, माखन-मिश्री, खीर, रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, जीरा-लड्डू, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल हलवा, घेवर, पेड़ा, पूड़ी, टिक्की, दलिया, देसी घी, शहद, सफेद मक्खन, ताजी क्रीम, कचौरी, रोटी, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, चना, मीठे चावल, भुजिया, सुपारी, सौंफ, काजू-बादाम बर्फी, पिस्ता बर्फी, पंचामृत, गोघृत, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, मुरब्बा, आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, पकौड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पान और मेवा। ये सभी व्यंजन भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान विशेष रूप से परोसे जाते हैं।