अमजद खान, भारतीय सिनेमा के एक ऐसी शख्सियत रहे हैं, जिनकी पहचान केवल एक खलनायक के रूप में नहीं, बल्कि एक बहुमुखी अभिनेता के तौर पर भी बनी। उनका अभिनय न केवल दर्शकों के दिलों में गहरे तक छा गया, बल्कि उनकी फिल्मी यात्रा में उन्हें कई यादगार और विविध भूमिकाएं मिलीं, जिनसे उन्होंने बॉलीवुड को नई दिशा दी। विशेष रूप से फिल्म शोले में निभाए गए गब्बर सिंह के किरदार ने उन्हें जो अमरता दी, वह सिनेमा इतिहास में एक मील का पत्थर बन गई।
अमजद खान का प्रारंभिक जीवन और करियर
अमजद खान का जन्म 21 अक्टूबर 1943 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था। वह प्रसिद्ध अभिनेता जयंत के पुत्र थे, जिनकी छाया में वह फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाले थे। शुरुआती दिनों में अमजद ने फिल्मों में अभिनय करने से पहले सहायक निर्देशक के तौर पर भी काम किया। उन्हें के.आसिफ की फिल्म लव एंड गॉड में सहायक निर्देशक के रूप में काम करने का मौका मिला, जो कि उस समय के एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के तौर पर जानी जाती है।
अमजद का फिल्मी करियर शुरुआत में ज्यादा सफल नहीं रहा। उनकी पहली प्रमुख फिल्म हिंदुस्तान की कसम (1965) थी, जिसमें उनका रोल काफी छोटा था। इसके बाद उन्होंने कुछ और फिल्में की, लेकिन वे बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाईं। हालांकि, अभिनय में गहरी रुचि और संघर्ष के बाद उन्हें वह बड़ी फिल्म मिली जिसने उनके करियर की दिशा बदल दी।
शोले: गब्बर सिंह से अमर पहचान
1975 में आई फिल्म शोले ने अमजद खान को हिंदी सिनेमा का एक बड़ा सितारा बना दिया। इस फिल्म में उन्होंने 'गब्बर सिंह' का किरदार निभाया, जिसे नकारात्मक भूमिकाओं के संदर्भ में सबसे शानदार और प्रभावशाली माना जाता है। गब्बर सिंह के डायलॉग्स, उनकी हंसी, उनके मिजाज, और उनके अभिनय ने उन्हें दर्शकों का दिल जीत लिया। उनका प्रसिद्ध डायलॉग "जब तक बैठो नहीं बैठोगे, तो बैठ के बैठ जाओ!" और "तेरा kya hoga kaalia?" आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे मशहूर संवादों में गिना जाता है।
गब्बर सिंह की भूमिका में अमजद ने जो आकर्षण और खलनायकी दिखाई, उसने उनके अभिनय की सीमाओं को पूरी तरह से पार कर दिया। गब्बर सिंह के रूप में उनकी अभिनय क्षमता इतनी प्रभावशाली थी कि आज भी लोग उन्हें इस किरदार से पहचानते हैं।
अभिनय के विविध आयाम
गब्बर सिंह के बाद भी अमजद खान ने अपनी अभिनय यात्रा में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने कई फिल्मों में न केवल खलनायकों के रूप में काम किया, बल्कि हास्य और चरित्र भूमिकाओं में भी अपनी छाप छोड़ी। कुर्बानी (1980), सत्ते पे सत्ता (1978), नसीब (1981), परवरिश (1977), मुकद्दर का सिकंदर (1978), और कालिया (1981) जैसी फिल्मों में उनकी भूमिकाएं विविध थीं और दर्शकों ने उन्हें हर किरदार में समान रूप से पसंद किया।
उन्होंने लव स्टोरी (1981), चरस (1976), शतरंज के खिलाड़ी (1977) जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया, जिसमें उनके किरदार ने फिल्म के कथानक में अहम भूमिका निभाई। अमजद खान ने कई बार अपने नकारात्मक किरदारों को भी इतने अच्छे से निभाया कि दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में ही नहीं, बल्कि पूरी फिल्म के एक अहम हिस्सा मानने लगे।
निर्देशन और व्यक्तिगत जीवन
अमजद खान ने केवल अभिनय तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने निर्देशन का भी प्रयास किया। 1983 में आई फिल्म चोर पुलिस और 1985 में आई अमीर आदमी गरीब आदमी दोनों ही फिल्मों को उन्होंने निर्देशित किया। हालांकि ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खास प्रभाव नहीं छोड़ पाईं, लेकिन इससे यह साबित हुआ कि उनका फिल्म इंडस्ट्री में योगदान केवल अभिनय तक ही सीमित नहीं था।
अमजद खान का निजी जीवन भी उतना ही प्रेरणादायक था। उन्होंने 1972 में शीला खान से शादी की और उनका एक बेटा शादाब खान था, जो खुद एक अभिनेता बने। अमजद खान का जीवन शांति और अनुशासन से भरा हुआ था। उन्होंने कभी भी शराब या अन्य नशे से दूर रहकर एक स्वस्थ जीवन जीने का आदर्श प्रस्तुत किया।
गब्बर सिंह: सिनेमा का सबसे डरावना विलेन
अमजद खान का फिल्मी करियर असली मुकाम पर तब पहुंचा जब उन्हें शोले में गब्बर सिंह का किरदार निभाने का मौका मिला। शुरुआती दौर में इस भूमिका के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को चुना गया था, लेकिन समयाभाव के कारण उन्होंने इसे छोड़ दिया। तब यह किरदार अमजद खान को मिला, और उन्होंने इस भूमिका को इस तरह से निभाया कि वह आज तक सिनेमा के सबसे यादगार खलनायकों में शामिल हैं। गब्बर सिंह की भूमिका को लेकर अमजद खान की शारीरिक भाषा, संवाद अदायगी, और चेहरे के हाव-भाव ने इस किरदार को अमर बना दिया। "बही, तेरा क्या होगा कालिया?" और "सपने में भी डर लगने लगे, ऐसा गब्बर का असर था।" जैसे संवाद आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं।
दूसरी भूमिकाएं: विविधता में ताकत
शोले के बाद अमजद खान ने न केवल खलनायक के रूप में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि उन्होंने चरित्र अभिनेता के तौर पर भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया। उन्होंने कुर्बानी (1980), हम किसी से कम नहीं (1977), लव स्टोरी (1981), इनकार (1977), और परवरिश (1977) जैसी फिल्मों में नकारात्मक, हास्य, और रोमांटिक भूमिकाएं निभाईं। कुर्बानी और हसीना मान जाए जैसी फिल्मों में वह और उनके अभिनय को खूब सराहा गया। इसके अलावा, वह अपनी शानदार अभिनय की वजह से कई फिल्मों में सहायक भूमिकाओं में भी दिखाई दिए।
समाप्ति: अमजद खान का निधन
27 जुलाई 1992 को अमजद खान का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ। उनका अचानक चला जाना फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी क्षति थी, क्योंकि वह सिनेमा में खलनायक के तौर पर अपने अभिनय के लिए बेहद प्रिय थे। वह फिल्मों में न केवल नकारात्मक पात्रों में दिखे, बल्कि उन्होंने कई फिल्मों में नायक, हास्य अभिनेता, और चरित्र अभिनेता के रूप में भी अभिनय किया।