सूर्या लॉकडाउन के बाद हिंदी दर्शकों के बीच अपनी दो फिल्मों से काफी लोकप्रिय हो गए हैं। उनकी फिल्में 'सोरारई पोटरू' और 'जय भीम' को हिंदी दर्शकों ने ओटीटी प्लेटफार्म पर बहुत पसंद किया और सूर्या को नए सिरे से जाना। उनकी कई फिल्मों के हिंदी रीमेक भी बन चुके हैं। उनकी मूल फिल्में 'सिंघम' और 'गजनी' को हिंदी डबिंग में भी दर्शकों ने काफी सराहा है।
बॉलीवुड: दक्षिण भारतीय सिनेमा के जाने-माने अभिनेता सूर्या अपनी पहली पैन-इंडिया फिल्म "कंगुवा" से दर्शकों का दिल जीतने को तैयार हैं। यह फिल्म 14 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म के जरिए सूर्या एक ऐसा संसार पर्दे पर ला रहे हैं, जो अभी तक किसी भारतीय फिल्म में नहीं दिखाया गया है। "कंगुवा" में बॉलीवुड स्टार बॉबी देओल सूर्या के सामने विलेन की भूमिका में नज़र आएंगे। यह फिल्म अपने अनोखे विषय, शानदार दृश्यों और दमदार अभिनय के लिए पहले ही दर्शकों में उत्साह पैदा कर चुकी है।
सूर्या का हिंदी दर्शकों में उभरता सितारा
सूर्या की लोकप्रियता में हिंदी दर्शकों का योगदान खुद सूर्या भी लॉकडाउन के बाद हिंदी ऑडियंस में अपनी दो फिल्मों से बहुत पॉपुलर हुए। उनकी फिल्में 'सोरारई पोटरू' और 'जय भीम' को हिंदी ऑडियंस ने भी ओटीटी पर खूब देखा और सूर्या को रीडिस्कवर किया, जिनकी तमाम फिल्मों के हिंदी रीमेक बने हैं। अब एक इंटरव्यू में सूर्या ने बताया है कि वो अपनी फिल्मों के जरिए मैसेज देने में यकीन रखते हैं, इसलिए भी लोगों को उनकी फिल्में याद रहती हैं और इसीलिए उत्तर भारत में भी लोग उन्हें उनकी पुरानी फिल्मों से याद रखते हैं। 'सोरारई पोटरू' और 'जय भीम' ने हिंदी दर्शकों को सूर्या के अभिनय और कहानी कहने की कला से परिचित कराया। इन फिल्मों की सफलता से साबित होता है कि अच्छी कहानी और शानदार अभिनय किसी भी भाषा की सीमाओं को तोड़ सकते हैं। सूर्या की फिल्मों में समाजिक मुद्दों पर बेबाक बयान और मजबूत संदेश उनकी लोकप्रियता का एक महत्वपूर्ण कारण है। वो अपने दर्शकों को सोचने और समझने के लिए प्रेरित करते हैं, और यही बात उन्हें हिंदी दर्शकों के दिलों में भी जगह दिलाती है।
फिल्मों में संदेश हो तो लोग याद रखते हैं
सूर्या हाल ही में द हॉलीवुड रिपोर्टर इंडिया से बातचीत करते हुए, सूर्या ने बताया कि वो हाल ही में वाराणसी में थे और वहां लोगों ने उन्हें मूल 'सिंघम' के तौर पर पहचाना। 2011 में आई उनकी दक्षिण भारतीय फिल्म 'सिंघम' का हिंदी रीमेक डायरेक्टर रोहित शेट्टी ने बनाया था, जिसमें अजय देवगन ने मुख्य भूमिका निभाई थी।।सूर्या ने कहा, 'मेरी राय में, हर फिल्म जिसमें एक्शन होता है और इमोशन होता है, उसमें एक विशेष संदेश छिपा होता है। मैं मानता हूं कि फिल्मों के माध्यम से संदेश देना महत्वपूर्ण है। जब आप फिल्म देखकर घर लौटते हैं, तो उसमें से आपको कुछ न कुछ बदलाव महसूस होना चाहिए। फिल्म को देखकर आपको सोचने पर मजबूर होना चाहिए, और कहीं न कहीं चर्चा करने की प्रेरणा भी मिलनी चाहिए। यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है।'
सूर्या की फिल्में
प्रेरणा का स्रोत और बदलाव का कारक सूर्या की फिल्में सिर्फ़ मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि लोगों को प्रेरित करने और उनके जीवन में बदलाव लाने का माध्यम भी हैं। हाल ही में सूर्या ने बताया कि कैसे उनकी फिल्मों ने कई लोगों को आईपीएस बनने के लिए प्रेरित किया। 2002 में रिलीज़ हुई "काखा काखा" ने कई युवाओं को प्रभावित किया। 2002 से 2005 बैच के अधिकांश आईपीएस अधिकारी इस फिल्म को देख चुके हैं। कई लोगों ने यह फिल्म देखकर आईपीएस बनने का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। कॉलेज के छात्रों ने आईपीएस परीक्षा की तैयारी शुरू की और नौकरी छोड़कर भी परीक्षा दी। सूर्या ने एक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से मुलाक़ात का किस्सा भी सुनाया, जिन्होंने बताया कि वो "काखा काखा" देखने के बाद ही आईपीएस ऑफिसर बनने के लिए प्रेरित हुए थे।
सूर्या का मानना है कि फिल्में लोगों को बेहतर इंसान बना सकती हैं और उन्हें जीवन के प्रति एक नया नज़रिया दे सकती हैं। "सिंघम" ने भी कई लोगों को प्रेरित किया। वाराणसी में लोगों ने उन्हें पहचाना और उनकी फिल्म के लिए उनके साथ तस्वीरें खिंचवाईं। "जय भीम" ने तो एक राज्य में कानून बदलने का काम किया। राज्य के मुख्यमंत्री ने यह फिल्म देखी और एक सर्वे करवाया जिसमें यह पता चला कि तीन लाख लोगों के जीवन में बदलाव आया। सूर्या को उम्मीद है कि "कंगुवा" भी इसी तरह लोगों के जीवन में बदलाव लाएगी। सूर्या की फिल्में लोगों को प्रेरित करने का एक अनूठा उदाहरण हैं। उनकी फिल्में सिर्फ़ मनोरंजन नहीं करतीं बल्कि लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।
कंगुवा में छिपा है एक गहरा संदेश
"कंगुवा" फिल्म के बारे में बात करते हुए, सूर्या ने एक गहरा संदेश दिया। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि जीवन में कुछ भी हो सकता है, लेकिन परिवार, दोस्त और विश्वास ही सबसे महत्वपूर्ण हैं। जीवन चलता रहेगा, करियर चलता रहेगा। कई बार ऐसा लगता है कि मैंने बहुत कुछ खो दिया, खासकर अपने बच्चों के बड़े होने के समय और शायद जो (ज्योतिका का निक नेम) के साथ। जब कुछ खोते हैं, तभी सच्चा मूल्य समझ आता है। आपको चुनना पड़ता है, कि आप क्या खो सकते हैं और उसके बदले जो पा रहे हैं क्या वह उतना ही कीमती है? "कंगुवा" एक्शन और नये विजुअल्स का मिश्रण है, लेकिन इसके दिल में मजबूत भावनाएँ छिपी हैं।" यह संदेश हमें जीवन के मूल्यों की याद दिलाता है, और यह भी बताता है कि कभी-कभी कुछ खोकर ही हम सच्चा मूल्य समझ पाते हैं। "कंगुवा" एक्शन फिल्म के रूप में एक अलग अनुभव देने का वादा करती है, लेकिन इसके गहन संदेश को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।