सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को आखिरी विधिक कार्य दिवस था। अपने लंबे कार्यकाल में उन्होंने 10 महत्वपूर्ण फैसले सुनाए और 1275 बेंचों का हिस्सा रहे। इसके साथ ही, उन्होंने 613 निर्णय भी लिखे।
CJI DY Chandrachud: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को आखिरी विधिक कार्य दिवस था। उन्हें 2016 में सर्वोच्च अदालत में पदोन्नत किया गया था और नवंबर 2022 में मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। अपने लंबे कार्यकाल में उन्होंने 10 महत्वपूर्ण फैसले सुनाए, जो गोपनीयता, शारीरिक स्वायत्तता, संघवाद, सकारात्मक कार्रवाई, और मध्यस्थता जैसे अहम मामलों को छूते हैं। वे 1275 बेंचों का हिस्सा रहे और अपने कार्यकाल के दौरान 613 निर्णय लिखे। आइए जानते हैं सीजेआई चंद्रचूड़ के 10 बड़े फैसलों के बारे में।
1. निजता का मौलिक अधिकार: पुट्टस्वामी मामले में ऐतिहासिक निर्णय
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने 24 अगस्त 2017 को सुनाया। उन्होंने कहा कि गोपनीयता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है, और यह व्यक्ति की गरिमा का संरक्षण करता है। इस मामले ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए भी आधार तैयार किया।
2. समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करना
6 सितंबर 2018 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द कर दिया, जो सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध मानती थी। इस फैसले ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, हालांकि पाशविकता से संबंधित शब्द प्रभावी रहे।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि धारा 377 ने नागरिकों के एक वर्ग को समाज से हाशिये पर धकेल दिया था। अपने पूर्व फैसले, पुट्टस्वामी मामले, जिसमें निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी, को आधार बनाते हुए चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि यौन रुझान के अधिकार को नकारना, निजता के अधिकार से इनकार करना है।
3. व्यभिचार को अपराध से बाहर करना
27 सितंबर 2018 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित किया और व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। यह धारा किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने को अपराध मानती थी। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन माना। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपनी सहमति में कहा कि यह कानून पितृसत्तात्मक था, जो महिलाओं की स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता था।
4. सबरीमाला मंदिर प्रवेश मामला: महिलाओं के प्रवेश पर रोक असंवैधानिक
28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने 4:1 बहुमत से यह फैसला दिया कि मासिक धर्म आयु वर्ग की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश से वंचित करना असंवैधानिक है। अदालत ने इसे महिलाओं के धार्मिक स्वतंत्रता, समानता और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना। जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी सहमति में कहा कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और भगवान अयप्पा के भक्त धार्मिक संप्रदाय का हिस्सा नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करने में सावधानी बरतनी चाहिए।
5. श्री रामलला को मिला मालिकाना हक
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने अयोध्या में विवादित स्थल पर श्री रामलला विराजमान को मालिकाना हक दे दिया। इस फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ भी शामिल थे। कोर्ट ने साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में मस्जिद के निर्माण के लिए एक वैकल्पिक स्थान प्रदान किया जाए। यह ऐतिहासिक निर्णय भारतीय समाज में लंबे समय से चल रहे धार्मिक विवादों को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
6. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रशासन
4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से यह निर्णय दिया कि दिल्ली सरकार के कार्यकारी प्रमुख मुख्यमंत्री हैं, न कि दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी)। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 239-AA की व्याख्या पर आधारित था, जो दिल्ली के लिए विशेष प्रावधानों से संबंधित है। इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री को प्रशासनिक निर्णयों में प्राथमिकता प्राप्त है, जबकि उपराज्यपाल का कर्तव्य सीमित है।
7. विवाह समानता और ट्रांसजेंडर के अधिकार
17 अक्टूबर 2023 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया कि यौन अल्पसंख्यकों के लिए शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर या इंटरसेक्स व्यक्ति शादी कर सकते हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पीठ ने यह माना कि विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए), 1954, गैर-विषमलैंगिक जोड़ों को बाहर करने के लिए भेदभावपूर्ण नहीं है। इस फैसले ने विवाह और समानता के अधिकार पर महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है।
8. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का मामला
11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था। सीजेआई चंद्रचूड़ ने बहुमत की राय लिखी, जिसमें जस्टिस कौल और खन्ना की सहमति भी थी। सभी न्यायाधीशों ने इस बात पर सहमति जताई कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, जो उस समय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था।
9. चुनावी बॉन्ड योजना की संवैधानिकता
लोकसभा चुनाव से पूर्व राजनीतिक वित्तपोषण के एक महत्वपूर्ण मामले में, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है। बेंच ने इस योजना को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए कहा कि मतदाता को यह जानकारी होना जरूरी है कि किसी राजनीतिक दल को किस स्रोत से फंडिंग मिल रही है, ताकि वे अपनी स्वतंत्रता से वोट डाल सकें।
10. SC/ST के भीतर उप-वर्गीकरण
2024 में, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच ने सकारात्मक कार्रवाई से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। 8:1 के बहुमत से पीठ ने माना कि राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण बनाने का अधिकार है, जिससे सकारात्मक कार्रवाई के तहत विभिन्न उप-समूहों को अतिरिक्त लाभ मिल सके। यह फैसला देश में आरक्षण और सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।