हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार में नियुक्त छह मुख्य संसदीय सचिवों (CPS) की नियुक्तियों को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने 2006 के CPS एक्ट को निरस्त करते हुए इन CPS को पद और सुविधाएं छोड़ने का आदेश दिया हैं।
शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को मुख्य संसदीय सचिव (CPS) की नियुक्तियों के संविधानिक वैधता पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने CPS एक्ट को निरस्त करते हुए इसके तहत मुख्य संसदीय सचिवों को दी जा रही सभी सुविधाएं खत्म कर दी हैं। इसके बाद, छह मुख्य संसदीय सचिव केवल विधायक के रूप में कार्य करेंगे, और उन्हें पहले जैसे सरकारी अधिकार और लाभ नहीं मिलेंगे।
कोर्ट ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक करार दिया। यह मामला पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था द्वारा 2016 में दायर याचिका से जुड़ा था, जिसमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या इन नियुक्तियों का संविधानिक आधार है। इसके अलावा, कल्पना और भाजपा नेता सतपाल सत्ती सहित अन्य 11 भाजपा विधायकों द्वारा भी अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थीं।
कोर्ट के फैसले पर जयराम ठाकुर ने दी प्रतिक्रिया
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के सीपीएस (मुख्य संसदीय सचिव) एक्ट को निरस्त करने के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) पहले दिन से ही सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ थी, क्योंकि इसे असंवैधानिक माना जाता था और यह संविधान के खिलाफ एक निर्णय था। जयराम ठाकुर ने 2017 का उदाहरण देते हुए कहा कि जब भाजपा सरकार में थी, तो यह मामला भी सामने आया था और हमने इसे पूरी तरह असंवैधानिक बताते हुए सीपीएस की नियुक्ति नहीं की थी।
उन्होंने कहा कि आज हाईकोर्ट ने सरकार के तानाशाहीपूर्ण और असंवैधानिक फैसले को खारिज कर दिया है। जयराम ठाकुर ने यह भी मांग की कि जो विधायक इस पद का लाभ उठा रहे थे, उनकी सदस्यता भी समाप्त की जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने इस पद का गलत तरीके से इस्तेमाल किया।
CPS को मिलता है हर महीने इतना वेतन-भत्ता
मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने अपनी सरकार में कांग्रेस के छह विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव (CPS) के पद पर नियुक्त किया था। इन विधायकों में संजय अवस्थी (अर्की), सुंदर सिंह (कुल्लू), राम कुमार (दून), मोहन लाल ब्राक्टा (रोहड़ू), आशीष बुटेल (पालमपुर) और किशोरी लाल (बैजनाथ) शामिल हैं। इस नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस संस्था और भाजपा के 11 विधायकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
हाईकोर्ट ने जनवरी में CPS को मंत्रियों जैसी शक्तियों का इस्तेमाल न करने का अंतरिम आदेश दिया था, जिसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के अनुरोध को खारिज करते हुए मामले को हाईकोर्ट में ही सुनने का आदेश दिया था।
सीपीएस को मिलने वाली सुविधाओं पर भी सवाल उठे हैं। सीपीएस का मूल वेतन 65,000 रुपये है, और भत्तों सहित यह वेतन 2.20 लाख रुपये प्रति माह तक पहुंच जाता है। इसके अलावा, सीपीएस को गाड़ी, स्टाफ जैसी अतिरिक्त सुविधाएं भी मिलती हैं, जबकि विधायकों का वेतन और भत्ते मिलाकर 2.10 लाख रुपये प्रति माह होते हैं। यह वेतन और सुविधाएं सीपीएस के पद को लेकर विवाद का कारण बनीं।