राजस्थान हाई कोर्ट ने 2011 में एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, "भंगी, नीच, भिखारी और मंगनी जैसे शब्दों का उपयोग जातिसूचक नहीं हैं।"
राजस्थान हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ कुछ शब्दों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक मामले में अदालत ने कहा कि भंगी, नीच, भिखारी और मंगनी जैसे शब्द जातिसूचक नहीं माने जाते। न्यायालय ने ऐसे शब्दों का प्रयोग करने के आरोपी चार व्यक्तियों पर लगे आरोपों को हटाते हुए उन्हें बरी कर दिया है।
सरकारी अधिकारी को जातिसूचक शब्द कहे गए
यह पूरा मामला वर्ष 2011 का है, जब जैसलमेर के कोतवाली थाना क्षेत्र में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया के दौरान सरकारी अधिकारियों और स्थानीय निवासियों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ। आरोप है कि एक व्यक्ति, जिसका नाम अचल सिंह है, ने सरकारी अधिकारी हरीशचंद्र को जातिसूचक शब्दों जैसे 'भंगी', 'नीच' और 'भिखारी' से संबोधित किया। इसके बाद, सरकारी अधिकारी ने उनके खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया।
इस मामले में चार व्यक्तियों पर आरोप लगाए गए थे। इन चारों ने एससी-एसटी एक्ट के तहत लगाए गए आरोपों को हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनके वकील ने कहा कि उन्हें सरकारी अधिकारी की जाति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और न ही उन्होंने उन शब्दों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति या जाति विशेष का अपमान करने के लिए किया था।
कोर्ट ने चार आरोपियों को बरी किया
इसके बाद मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार की एकल पीठ में की गई। सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी गई कि घटना के समय वहां कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था। शिकायतकर्ता के गवाह केवल सरकारी अधिकारी ही थे। इसके बाद पुलिस की जांच में भी यह साबित नहीं हो सका कि आरोपियों ने जानबूझकर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया था।
मामले पर निर्णय देते हुए हाई कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया और चारों आरोपियों को बरी कर दिया। हालाँकि, आरोपियों के खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप में आपराधिक मुकदमा जारी रहेगा। कोर्ट के इस निर्णय को राज्य के कानूनी मामलों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।