मुगल बादशाह बाबर की 1530 में आगरा में मौत हुई और उसे आराम बाग में दफनाया गया। 14 साल बाद, उसकी इच्छा अनुसार 1544 में काबुल के बाग-ए-बाबर में पुनः दफनाया गया।
Aurangzeb Kabr Vivad: महाराष्ट्र समेत पूरे देश में इन दिनों मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में स्थित औरंगजेब की कब्र को वहां से शिफ्ट करने की मांग उठ रही है। यह कब्र संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) जिले में स्थित है। हालांकि, इस विवाद से अलग मुगल इतिहास में एक ऐसा भी बादशाह था, जिसे मौत के बाद दो बार दफनाया गया। यह बादशाह था भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाला बाबर, जिसे पहले आगरा में दफनाया गया और फिर उसकी कब्र को काबुल स्थानांतरित किया गया।
मुगल साम्राज्य का संस्थापक था बाबर
बाबर, जिसने 1526 में भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की, मात्र चार वर्षों तक ही शासन कर सका। 26 दिसंबर 1530 को उसकी मृत्यु हो गई। उसके वंशजों ने लगभग 300 वर्षों तक हिंदुस्तान पर शासन किया, लेकिन बाबर की कब्र भारत में न रहकर अंततः अफगानिस्तान के काबुल में स्थानांतरित कर दी गई।
आगरा में अस्थायी रूप से दफनाया गया था बाबर
करीब 45 वर्ष की आयु में बाबर की मृत्यु आगरा में हुई थी। प्रारंभ में उसे आगरा के ‘आराम बाग’ में दफनाया गया। यह बाग 1528 में स्वयं बाबर ने बनवाया था और यह भारत का सबसे पुराना मुगल गार्डन माना जाता है। लेकिन, बाबर ने अपनी आत्मकथा में यह इच्छा जाहिर की थी कि उसे काबुल में दफनाया जाए। हालांकि, उसके बेटे हुमायूं तत्काल इस इच्छा को पूरी नहीं कर सका और उसे यमुना किनारे बने आराम बाग में ही दफनाया गया।
मौत के 14 साल बाद दोबारा दफनाया गया
बाबर की मौत के 14 साल बाद, 1544 में उसकी अंतिम इच्छा को पूरा किया गया और उसके पार्थिव शरीर को अफगानिस्तान के काबुल में ‘बाग-ए-बाबर’ में पुनः दफनाया गया। यह बाग 1504 में बाबर ने तब बनवाया था जब उसने काबुल पर अधिकार कर लिया था। बाबर को भारत में रहते हुए भी अपने मूल स्थान की बहुत याद आती थी, जिसे उसने अपनी आत्मकथा में भी दर्ज किया है। यही कारण रहा कि उसने अपनी कब्र काबुल में बनाए जाने की इच्छा जताई थी।
बाग-ए-बाबर में बनी बाबर की कब्र
बाबर की कब्र काबुल के ‘बाग-ए-बाबर’ में स्थित है। यह बाग काबुल के पुराने शहर के दक्षिण-पश्चिम में कुह-ए-शेर दरवाज़ा की ढलानों पर स्थित है। बाग करीब 11.5 हेक्टेयर में फैला हुआ है और इसमें एक मुख्य द्वार के साथ 15 छतें बनी हुई हैं। यहां से काबुल नदी और बर्फ से ढके पहाड़ों का शानदार दृश्य देखा जा सकता है। UNESCO की रिपोर्ट के अनुसार, बाबर की विधवा ने 1544 में उसकी इच्छानुसार उसके पार्थिव शरीर को काबुल पहुंचाया था।
बाग-ए-बाबर: सम्मान का प्रतीक
बाबर की कब्र को काबुल के इस बगीचे में इसलिए भी रखा गया क्योंकि यह क्षेत्र उसके पूर्वजों के समय से ही कब्रिस्तान के रूप में इस्तेमाल होता आ रहा था। मुगल वंश के संस्थापक की समाधि को एक सम्मान के प्रतीक के रूप में संरक्षित किया गया। जहांगीर और शाहजहां जैसे मुगल शासकों ने इस स्थल को संरक्षित करने और उसे सुंदर बनाने के लिए विभिन्न निर्माण कार्य भी करवाए।
कौन था जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर?
बाबर ने 1526 से 1530 तक हिंदुस्तान पर शासन किया। वह अपने पिता की ओर से तैमूर और माता की ओर से चंगेज खान का वंशज था। बाबर के पिता उमरशेख मिर्जा फरगाना के शासक थे। मात्र 11 वर्ष की उम्र में बाबर ने फरगाना की गद्दी संभाली। 1507 में उसने ‘बादशाह’ की उपाधि ग्रहण की, जो तैमूरी शासकों को पहले कभी नहीं मिली थी।
भारत पर बाबर के आक्रमण
बाबर ने भारत पर कई बार आक्रमण किया और 1526 में पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल साम्राज्य की नींव रखी। इसके बाद उसने राणा सांगा से खनवा, मेदनी राय से चंदेरी, और अफगानों से घाघरा की लड़ाई में विजय प्राप्त की। इन युद्धों के बाद उसे ‘कलंदर’ और ‘गाजी’ की उपाधियों से सम्मानित किया गया।
बाबर के बाद उसके पुत्र हुमायूं ने मुगल वंश को आगे बढ़ाया। हालांकि, हुमायूं को प्रारंभिक वर्षों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में अकबर ने इस साम्राज्य को मजबूत किया।