Dublin

SC का ऐतिहासिक फैसला; राष्ट्रपति को 3 माह में लेना होगा निर्णय, पॉकेट वीटो खत्म

SC का ऐतिहासिक फैसला; राष्ट्रपति को 3 माह में लेना होगा निर्णय, पॉकेट वीटो खत्म
अंतिम अपडेट: 23 घंटा पहले

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है। पहली बार देश की सर्वोच्च अदालत ने सीधे तौर पर राष्ट्रपति को निर्देश देते हुए कहा है कि राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य होगा।

नई दिल्ली: भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति को निर्देश जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि राज्यपालों द्वारा विचारार्थ भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य है। यह ऐतिहासिक आदेश तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच चल रहे गतिरोध के संदर्भ में सामने आया है।

तमिलनाडु के मामले से शुरू हुआ संवैधानिक मंथन

तमिलनाडु की डीएमके सरकार द्वारा पारित 10 विधेयकों को राज्यपाल द्वारा मंजूरी के लिए लंबित रखे जाने पर याचिका दायर की गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को 'अनिश्चितकालीन प्रतीक्षा' यानी पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, तो उसे सहमति या असहमति दर्ज करनी ही होगी, न कि उसे लटकाए रखना।

संविधान का अनुच्छेद 201 अब न्यायिक समीक्षा के दायरे में

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित किया जाता है, तब राष्ट्रपति का निर्णय न्यायिक समीक्षा के लिए खुला होता है। अब तक यह क्षेत्र कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ दिया गया था, लेकिन अदालत ने इसे न्यायिक जवाबदेही के दायरे में लाकर एक मिसाल कायम की है।

तीन महीने की समयसीमा: निष्क्रियता पर कोर्ट का दरवाजा खुला

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर तीन महीने की समयसीमा के भीतर कोई निर्णय नहीं लिया गया, तो संबंधित राज्य सरकार अदालत में चुनौती दे सकती है। साथ ही, अगर देरी किसी विशेष कारण से होती है, तो उसका लिखित कारण बताना और राज्य सरकार को सूचित करना अनिवार्य होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी विधेयक की संवैधानिक वैधता को लेकर संदेह है, तो कार्यपालिका को न्यायपालिका की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। ऐसे मामलों में अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेना चाहिए। यह संविधान सम्मत प्रक्रिया है।

अदालत ने कहा कि जब विधेयक की वैधता जैसे विषयों पर निर्णय लेना हो, तो यह कार्य केवल संवैधानिक न्यायालयों का है। कार्यपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की निष्क्रियता को अनुचित ठहराते हुए उसे संवैधानिक कर्तव्यों का उल्लंघन बताया।

Leave a comment