Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट की बेंच सुनाएगी बड़ा फैसला, क्या हिंदू महिलाओं को मिलेगा पैतृक संपत्ति का अधिकार? जानें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में..

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट की बेंच सुनाएगी बड़ा फैसला, क्या हिंदू महिलाओं को मिलेगा पैतृक संपत्ति का अधिकार? जानें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में..
Last Updated: 19 घंटा पहले

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय कानून और समाज में महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं का पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार हैं।

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के तहत हिंदू महिलाओं को दिए गए संपत्ति अधिकारों से जुड़े एक लंबे समय से विवादित मुद्दे को स्पष्ट करने का निर्णय लिया है। मुख्य सवाल यह है कि क्या एक हिंदू पत्नी, जिसे उसके पति द्वारा संपत्ति दी गई है, उस पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार रखती है, भले ही वसीयत या अन्य दस्तावेज़ों में उपयोग या स्वामित्व पर प्रतिबंध लगाए गए हों। यह मुद्दा अधिनियम की धारा 14(1) और 14(2) के विरोधाभासी प्रावधानों से उत्पन्न होता हैं। 

धारा 14(1) महिलाओं को दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व की बात करती है, जबकि धारा 14(2) यह कहती है कि यदि संपत्ति किसी विशिष्ट उद्देश्य या शर्त के तहत दी गई हो, तो स्वामित्व सीमित हो सकता है। पिछले छह दशकों में इस मुद्दे पर 20 से अधिक विरोधाभासी फैसले आ चुके हैं, जिससे स्पष्टता का अभाव हैं। 

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 क्या है?

यह मामला न केवल एक कानूनी मुद्दा है, बल्कि लाखों हिंदू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों और उनकी स्वायत्तता के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्न है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 की व्याख्या यह तय करेगी कि महिलाएं अपने अधिकारों के साथ संपत्ति का उपयोग, हस्तांतरण, या बिक्री कर सकती हैं या उन्हें वसीयत या शर्तों द्वारा सीमित किया जा सकता हैं।

वर्तमान विवाद की जड़ें 1965 में कंवर भान द्वारा निष्पादित वसीयत में हैं। इस वसीयत के तहत उन्होंने अपनी पत्नी को उसके जीवनकाल के लिए एक भूखंड का उपयोग करने और उसका आनंद लेने का अधिकार दिया, लेकिन साथ ही यह शर्त लगाई कि उसकी मृत्यु के बाद संपत्ति उनके उत्तराधिकारियों को लौटाई जाएगी। हालांकि, बाद में पत्नी ने भूखंड को बेच दिया और खुद को इसका पूर्ण स्वामी घोषित किया। इस कदम को बेटे और पोते ने अदालत में चुनौती दी।

मामला अदालतों में लंबे समय तक चला, और हर स्तर पर विरोधाभासी फैसले सामने आए। यह मामला केवल एक व्यक्तिगत संपत्ति विवाद नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों और लैंगिक समानता के प्रति न्यायपालिका की प्रतिबद्धता की परीक्षा भी हैं।

यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की व्याख्या और उनके प्रभाव को लेकर एक गहन बहस का प्रतिनिधित्व करता है। ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत ने पत्नी के पक्ष में निर्णय दिया, तुलसाम्मा बनाम शेषा रेड्डी (1977) मामले का हवाला देते हुए, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) को व्यापक रूप से व्याख्यायित कर महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार प्रदान किया था।

हालांकि, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस दृष्टिकोण से असहमति जताई और कर्मी बनाम अमरू (1972) मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वसीयत में लगाए गए विशिष्ट प्रतिबंध धारा 14(2) के तहत महिला के संपत्ति अधिकारों को सीमित कर सकते हैं। इस विवाद के कारण, यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है।

न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती ने तुलसाम्मा मामले में पहले ही इस विषय की जटिलता को रेखांकित करते हुए इसे “वकीलों के लिए स्वर्ग और वादियों के लिए अंतहीन उलझन” कहा था। धारा 14(1) ने जहां महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार देकर एक प्रगतिशील कदम उठाया, वहीं धारा 14(2) में कुछ अपवाद शामिल थे, जिनमें वसीयत या उपहार में दी गई संपत्ति स्वचालित रूप से पूर्ण स्वामित्व में परिवर्तित नहीं होती।

न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने इस विभाजन को स्वीकार करते हुए कहा कि तुलसाम्मा मामले के बाद दो दृष्टिकोण विकसित हुए हैं। एक जो महिलाओं को अधिक अधिकार देता है और दूसरा जो संपत्ति के अधिग्रहण और हस्तांतरण के तरीके को ध्यान में रखता है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर बल दिया कि कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है। अब एक बड़ी पीठ यह तय करेगी कि क्या वसीयत में दी गई शर्तें हिंदू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को धारा 14(1) के तहत सीमित कर सकती हैं या नहीं। यह फैसला न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भी होगा।

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