लद्दाख में स्थापित दुनिया का सबसे ऊंचा गामा किरणों पर आधारित टेलीस्कोप, जिसे मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेंकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) कहा जाता है, ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह टेलीस्कोप समुद्र तल से 4270 मीटर की ऊंचाई पर हनले में स्थापित किया गया हैं।
श्रीनगर: लद्दाख के हानले गांव में स्थापित दुनिया का सबसे ऊंचा गामा किरणों पर आधारित टेलीस्कोप, जिसे मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेंकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) कहा जाता है, ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह टेलीस्कोप चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास स्थित है और इसे चांद की धरती के रूप में जाने वाले लद्दाख में डार्क नाइट सेंचुरी में स्थापित किया गया हैं।
MACE की कुछ मुख्य विशेषताएं
* 4,270 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यह टेलीस्कोप दुनिया का सबसे ऊंचा गामा किरणों पर आधारित टेलीस्कोप है।
* इसका निर्माण भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), मुंबई द्वारा किया गया है।
* इसमें एशिया का सबसे बड़ा मिरर लगाया गया है, जिसका व्यास 21 मीटर है और इसका वजन लगभग 175 टन है।
* टेलीस्कोप में 1,424 डायमंड-टर्न मिरर और 1,000 से अधिक फोटोमल्टीप्लायर ट्यूब लगाए गए हैं, जो इसे दूरस्थ अंतरिक्ष की घटनाओं को कैप्चर करने में सक्षम बनाते हैं।
* यह विशेष रूप से गामा किरणों पर आधारित खगोलीय घटनाओं का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें सुपरनोवा जैसी तीव्र खगोलीय घटनाओं का अध्ययन शामिल है।
* यह रोबोटिक आंख के रूप में कार्य करता है, जो खगोलविदों को तारों के जन्म और मृत्यु जैसी घटनाओं के साथ-साथ अंतरिक्ष से आने वाली अत्यधिक ऊर्जा वाली गामा किरणों का अध्ययन करने में मदद करता हैं।
डॉ. ए.के. मोहंती ने लद्दाख के हानले को गामा-रे खगोलविदों के लिए "स्वर्ग" कहा
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ. ए.के. मोहंती ने लद्दाख के हानले को गामा-रे खगोलविदों के लिए "स्वर्ग" कहा है। यह स्थान खगोलीय अनुसंधान के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है और भविष्य में यहां और भी टेलीस्कोप लगाए जाने की योजना है। मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेंकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) टेलीस्कोप का उद्देश्य ब्रह्मांड की महत्वपूर्ण घटनाओं, जैसे तारों के जीवन चक्र, ब्लैक होल, और डार्क मैटर की खोज को समझना है। यह गामा-रे टेलीस्कोप, जिसका रिफ्लेक्टर 350 वर्ग मीटर से अधिक है, पहले से ही 200 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर से गामा-रे विकिरण का पता लगा चुका है, जो इसकी उच्च क्षमता को दर्शाता हैं।
हानले पहले से ही एक प्रमुख खगोलीय वैधशाला के रूप में जाना जाता है, जहाँ दुनियाभर के खगोलविद ब्रह्मांडीय घटनाओं पर नजर रखने के लिए आते हैं। इसे 'डार्क स्काई रिजर्व' के रूप में भी जाना जाता है, जहाँ रात के समय का साफ और अंधेरा आकाश तारे देखने के लिए बेहद अनुकूल होता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स की निदेशक, डॉ. अन्नपूर्णी ने इसे इंजीनियरिंग का चमत्कार बताया, जो हानले की कठिन जलवायु परिस्थितियों के बावजूद सफलतापूर्वक काम कर रहा है। इस तरह के सफल प्रोजेक्ट्स के साथ भारत अंतरिक्ष अनुसंधान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा हैं।
खोज के लिए आखिर हानले ही क्यों
लद्दाख में स्थित हानले खगोलीय अनुसंधान के लिए एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है, जो समुद्र तल से 4,270 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थान 'डार्क स्काई रिजर्व' के रूप में जाना जाता है, जहाँ से खगोलविद ब्रह्मांडीय घटनाओं का अध्ययन करने के लिए दुनियाभर से आते हैं। यहां रात के साफ आकाश में जगमगाते तारे बेहद आकर्षक होते हैं और खगोलविदों को दूर की खगोलीय घटनाओं का अध्ययन करने का अनूठा मौका मिलता हैं।
खगोल भौतिकी संस्थान की निदेशक, डॉ. अन्नपूर्णी ने इस क्षेत्र की कठिन परिस्थितियों के बावजूद यहां काम कर रहे उपकरणों और टेलीस्कोप्स को इंजीनियरिंग का एक चमत्कार कहा है। हानले में स्थापित गामा किरण टेलीस्कोप और अन्य उपकरण अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत के योगदान को और अधिक सशक्त बना रहे हैं।
विज्ञान एवं तकनीक मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने हानले में स्थापित गामा-रे टेलीस्कोप को अंतरिक्ष की खोज में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। उन्होंने कहा कि यह टेलीस्कोप न केवल ब्रह्मांडीय रहस्यों को उजागर करने में मदद करेगा, बल्कि लद्दाख को एस्ट्रो टूरिज्म का एक प्रमुख केंद्र भी बनाएगा। लद्दाख में स्थित नाइट स्काई सेंचुरी का यह टेलीस्कोप भारत का पहला गामा किरण आधारित टेलीस्कोप है, जो अंतरिक्ष से आने वाली अत्यधिक ऊर्जा वाली गामा किरणों का अध्ययन करने में सक्षम हैं।