Wayanad Landslides: केरल के वायनाड में लैंडस्लाइड ने मचाई तबाही, क्या हैं लैंडस्लाइड? जानिए इसके होने की वजह और रोकने के उपाय
केरल के वायनाड में लगातार हो रही भारी बारिश के चलते चार अलग-अलग स्थानों पर लैंडस्लाइड की घटना हुई, जिसमें चार गांव पूरी तरह से बह गए। घर, पुल, सड़कें और गाड़ियां भी पानी के तेज बहाव में बह गईं। अब तक इस घटना में 45 लोगों की जान जा चुकी है और 100 से ज्यादा लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका हैं।
केरल: वायनाड में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण मंगलवार तड़के चार अलग-अलग जगहों पर लैंडस्लाइड की घटना हुई, जिसमें मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा गांव बह गए। पानी के तेज बहाव में घर, पुल, सड़कें और गाड़ियां भी बह गईं। इस घटना में अभी तक 45 लोगों की जान जाने की सूचना मिली हैं और 100 से अधिक लोगों के मलबे में सब होने की आशंका जताई गई हैं।
रेस्क्यू में बारिश दे सकती है दखल
मौसम विभाग ने आज भी वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम और कसारागोड़ में बारिश को लेकर रेड अलर्ट घोषित किया है। ऐसे में अगर तेज बारिश होती है तो चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कत आने की संभावना हैं।
क्या हैं लैंडस्लाइड?
लैंडस्लाइड एक प्राकृतिक आपदा या फिर भूवैज्ञानिक घटना मानी जाती है, जो धरातली तेज हलचल के कारण पैदा होती है। बता दें बारिश के कारण पहाड़ी क्षेत्रों से ढलानों की ओर चट्टानों व मिट्टी का खिसकना, कीचड़ -मलबा का अचानक तेज बहाव आता है तो इसे लैंडस्लाइड कहां जाता है। इस प्रकार कि घटनाएं आमतौर पर भारी बारिश, बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या फिर मानवीय गतिविधियों के कारण पैदा होती है। पुरे देश में हर साल लैंडस्लाइड की 25-30 बड़ी घटनाएं होती रहती हैं।
लैंडस्लाइड होने का कारण
जानकारी के मुताबिक लैंडस्लाइड कई प्रकार के कारणों से होता है। इनमें प्राकृतिक घटनाएं और मानवीय हस्तक्षेप दोनों प्रमुख हैं। लैंडस्लाइड की सबसे बड़ी वजह वनों की अंधाधुंध कटाई है। क्योकि पेड़-पौधों की कटाई से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है। चट्टानों की पकड़ ढीली हो जाती है, जिस कारण लैंडस्लाइड जैसी घटनाएं होती है। बता दें कि पेड़ों की जड़ें मिट्टी और चट्टानों को बांध के रखती हैं। इसके अलावा भूकंप और मूसलाधार बारिश के कारण भी लैंडस्लाइड की घटना होती हैं।
भूस्खलन (लैंडस्लाइड) रोकने के उपाय
* पेड़-पौधे लगाना :- ढलानों पर पेड़ और झाड़ियां लगाने से तथा वनो की कटाई रोकने से भूस्खलन नहीं होता है।
* ढलान की सुरक्षा: पहाड़ी क्षेत्रों में ढलानों पर सही तरीके से मार्ग बनाकर जल निकासी की व्यवस्था की जाए ताकि पानी जमा न हो सके और मिट्टी का कटाव न हो।
* ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती करनी चाहिए।
* पहाड़ी क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण कार्य पर रोक लगाकर सुरक्षा संबंधी कार्य किए जाए।
* खनन गतिविधियों को नियंत्रित करना।
* टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में सेंसर और अलर्ट सिस्टम लगाया जाएं।
* लैंडस्लाइड जोखिम क्षेत्रों की पहचान करके उनकी निगरानी के लिए जीआईएस और रिमोट सेंसिंग तकनीक काम में लेना।
* भूस्खलन जोखिम क्षेत्रों पर आपातकालीन निकासी के साथ बचाव और राहत कार्य के लिए सेना को तैयार रखना।