भारत अब ग्लोबल साउथ का सबसे बड़ा ऊर्जा सप्लायर बनने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। जोहानिसबर्ग में हाल ही में आयोजित ऊर्जा सम्मेलन ने इस रास्ते पर भारत की भूमिका को और स्पष्ट कर दिया है। यह सम्मेलन भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिहाज से एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ है। ग्लोबल साउथ में भारत की बढ़ती सक्रियता से अमेरिका और चीन जैसे बड़े देशों के लिए नई चिंता उत्पन्न हो गई है, क्योंकि यह क्षेत्रीय और वैश्विक ऊर्जा बाजारों में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
भारत-दक्षिण अफ्रीका की ऊर्जा साझेदारी
भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच जोहानिसबर्ग में आयोजित पहले ऊर्जा सम्मेलन ने दोनों देशों के ऊर्जा संबंधों को मजबूती दी है। इस सम्मेलन में दोनों देशों ने भविष्य में ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। खास बात यह है कि सम्मेलन में 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और ऊर्जा क्षेत्र में अपने विचार साझा किए। इस सम्मेलन के दौरान भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच न केवल व्यापारिक साझेदारी को बढ़ावा देने की बात की गई, बल्कि ऊर्जा पेशेवरों को प्रशिक्षित करने के लिए भी एक समझौता हुआ।
इस सम्मेलन के सफल समापन पर भारतीय महावाणिज्य दूत महेश कुमार ने बताया कि यह सम्मेलन दोनों देशों के व्यापार और शिक्षा जगत के सर्वोत्तम लोगों को एक मंच पर लाने का एक बेहतरीन प्रयास था। भारत ने दक्षिण अफ्रीका को जी-20 का स्थाई सदस्य बनवाने के बाद दोनों देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है, और यह सम्मेलन उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।
ग्लोबल साउथ में भारत की बढ़ती भूमिका
भारत ने इस सम्मेलन के माध्यम से एक बार फिर से अपनी बढ़ती ऊर्जा साझेदारी को ग्लोबल साउथ के देशों में फैलाने का संकेत दिया है। इस साल के जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साफ तौर पर यह बात कही थी कि भारत का उद्देश्य ग्लोबल साउथ के देशों में अपनी ऊर्जा भागीदारी को मजबूत करना है। यही वजह है कि इस ऊर्जा सम्मेलन में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच भविष्य के ऊर्जा मॉडल, विद्युत के सामाजिक-आर्थिक पहलू, और ऊर्जा की मूल्य निर्धारण जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं पर विस्तृत चर्चा की गई।
भारत और दक्षिण अफ्रीका के साथ बढ़ती ऊर्जा साझेदारी का असर न केवल दोनों देशों पर पड़ेगा, बल्कि इससे अफ्रीकी महाद्वीप में भी ऊर्जा के बेहतर उपयोग के अवसर पैदा होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, यह साझेदारी गरीब देशों के लिए सस्ती और सुलभ ऊर्जा के नए रास्ते खोल सकती है, जो संयुक्त राष्ट्र के विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मददगार साबित होगी।
वैश्विक शक्ति केंद्र के रूप में भारत
भारत की यह पहल अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए एक नई चुनौती प्रस्तुत करती है। क्योंकि भारत की बढ़ती ऊर्जा आपूर्ति क्षमता न केवल आर्थिक विकास को गति देगी, बल्कि भारत को एक प्रमुख ऊर्जा सप्लायर के रूप में उभारने के साथ-साथ उसे वैश्विक मंच पर एक अहम शक्ति केंद्र बना सकती है। इससे क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन में भी बदलाव की संभावनाएं हैं।
भारत की इस रणनीति से यह भी साफ हो गया है कि वह अब ग्लोबल साउथ के देशों को ऊर्जा क्षेत्र में एक नई दिशा देने के लिए तैयार है। इसके साथ ही भारत अपनी मजबूत कूटनीतिक स्थिति का इस्तेमाल करके उन देशों को भी जोड़ने की कोशिश करेगा जो ऊर्जा संकट से जूझ रहे हैं।
भविष्य के ऊर्जा क्षेत्र में भारत की अहम भूमिका
भारत का यह कदम न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके जरिए भारत वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है। साथ ही, यह ग्लोबल साउथ के देशों में भारत के बढ़ते प्रभाव और उसकी कूटनीतिक सफलता का प्रतीक भी है। जैसे-जैसे भारत का ऊर्जा क्षेत्र वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मजबूत होता जाएगा, वैसे-वैसे वह वैश्विक मंच पर और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
भारत की ऊर्जा रणनीति और दक्षिण अफ्रीका के साथ उसकी बढ़ती साझेदारी न केवल दोनों देशों के लिए फायदेमंद साबित होगी, बल्कि यह अन्य विकासशील देशों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकती है।