Chagos Islands: सदियों पुराना विवाद खत्म, Chagos Islands मॉरीशस को लौटाएगा ब्रिटेन, जानें भारत की क्या रही अहम भूमिका?

Chagos Islands: सदियों पुराना विवाद खत्म, Chagos Islands मॉरीशस को लौटाएगा ब्रिटेन, जानें भारत की क्या रही अहम भूमिका?
Last Updated: 2 घंटा पहले

हिंद महासागर में भारत की समुद्री सीमा से केवल 1700 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चागोस आर्किपेलागो द्वीप समूह अब मारीशस के संप्रभु क्षेत्र का हिस्सा बनेगा। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के वैश्विक महत्व को देखते हुए चागोस रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ब्रिटेन और मारीशस के बीच तीन अक्टूबर 2024 को इस द्वीप समूह के हस्तांतरण के लिए एक समझौता किया गया है।

Chagos Islands: हिंद महासागर में भारत की समुद्री सीमा से करीब 1,700 किलोमीटर दूर स्थित चागोस आर्किपेलागो द्वीप समूह अब मारीशस के संप्रभु भूभाग का हिस्सा बन जाएगा। वैश्विक स्तर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बढ़ती महत्ता के संदर्भ में चागोस को रणनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

मारीशस - ब्रिटेन के बीच हुआ समझौता

3 अक्टूबर, 2024 को मारीशस और ब्रिटेन के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिसके तहत मारीशस को उसका डिएगो गार्सिया द्वीप हस्तांतरित किया जाएगा। डिएगो गार्सिया द्वीप हिन्द महासागर में स्थित है और यह भू-राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।

इस समझौते के साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण समझौता ब्रिटेन, अमेरिका और मारीशस के बीच हुआ है, जिसके अनुसार इस द्वीप पर स्थित ब्रिटेन-अमेरिका का संयुक्त सैन्य अड्डा अगले 99 वर्षों तक यथावत रहेगा। यह सैन्य अड्डा अमेरिका और ब्रिटेन के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्रीय सुरक्षा और सैन्य अभियानों के संचालन के लिए उपयोग में आता है।

भारत ने इस समझौते का किया स्वागत

भारत ने चागोस आर्किपेलागो और डिएगो गार्सिया द्वीप को लेकर मारीशस की संप्रभुता के समर्थन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चागोस आर्किपेलागो पर पिछले 50 वर्षों से ब्रिटेन के साथ मारीशस का विवाद चल रहा था, जिसका समाधान अब समझौते के माध्यम से हो गया है।

भारत ने इस समझौते का स्वागत किया है और मारीशस की संप्रभुता को लेकर अपने समर्थन की पुष्टि की है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस विवाद के समाधान में भारत ने पर्दे के पीछे से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो दोनों देशों के बीच गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है।

भारत ने पहले भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मारीशस के हितों की रक्षा और चागोस आर्किपेलागो पर उसकी संप्रभुता का समर्थन किया है।

भारत के सैद्धांतिक समर्थन के बाद हुआ संभव

चागोस आर्किपेलागो पर विवाद का समाधान लंबे समय से चल रही वार्ताओं और भारत के सैद्धांतिक समर्थन के बाद संभव हुआ है। यह विवाद 1968 से चला रहा था, जब मारीशस को ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिली थी, लेकिन चागोस द्वीप समूह, विशेष रूप से डिएगो गार्सिया, ब्रिटेन ने मारीशस को नहीं सौंपा था। डिएगो गार्सिया पर स्थित ब्रिटेन-अमेरिका का सैन्य अड्डा इस विवाद का मुख्य कारण था, क्योंकि इसका रणनीतिक महत्व वैश्विक सुरक्षा और भू-राजनीति के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण था।

भारत ने हमेशा उपनिवेशवाद के खिलाफ अपने विचारों के तहत मारीशस का समर्थन किया है। इस द्वीप समूह पर मारीशस की संप्रभुता को लेकर भारत ने कूटनीतिक रूप से मारीशस का पक्ष लिया। पिछले दो वर्षों के विमर्श के बाद, भारत की मध्यस्थता के चलते सभी पक्षों के बीच एक समझौता हो पाया है।

भारत ने की ब्रिटेन की सराहना

यह द्वीप समूह मारीशस की मुख्य भूमि से 2200 किलोमीटर दूर और भारतीय सीमा से 1700 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो इसके रणनीतिक महत्व को और भी अधिक बढ़ा देता है, खासकर भारत के लिए।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत ने पर्दे के पीछे हमेशा इस समझौते को सफल बनाने के लिए भूमिका निभाई है। भारत ने दोनों पक्षों, यानी मारीशस और ब्रिटेन, को खुलकर बात करने और मुद्दों को हल करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसका मकसद हिंद महासागर क्षेत्र में स्थायी सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना था, जो भारत के रणनीतिक हितों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

ब्रिटेन की भारत में उच्चायुक्त लिंडी कैमरोन ने भी इस समझौते की सराहना की है और कहा कि यह समझौता भारत और ब्रिटेन के बीच हिंद महासागर में गहराते संबंधों को दर्शाता है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे वैश्विक सुरक्षा मजबूत होगी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को खतरा पैदा करने वाले तत्वों को दूर रखने में मदद मिलेगी।

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