19 मेडल जीतने वाली बैडमिंटन खिलाड़ी, चोट ने बदली जिंदगी, UPSC पास कर बनीं आईपीएस अधिकारी

19 मेडल जीतने वाली बैडमिंटन खिलाड़ी, चोट ने बदली जिंदगी, UPSC पास कर बनीं आईपीएस अधिकारी
Last Updated: 1 दिन पहले

कुहू गर्ग ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के सेंट थॉमस कॉलेज से प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (एसआरसीसी) से स्नातक की डिग्री हासिल की।

UPSC Success Story: कुहू गर्ग का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है, जो बताती है कि कैसे एक शानदार इंटरनेशनल बैडमिंटन खिलाड़ी से आईपीएस बनने का सफर तय किया जा सकता है। उनका सिद्धांत है, "जीवन में कभी विफलता से न डरें; यह सफलता की ओर एक कदम है।" वे मानती हैं कि डर की भावना हमारी प्रतिभा और संभावनाओं में बाधा डालती है।

22 सितंबर 1998 को देहरादून में जन्मी कुहू उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी अशोक कुमार की बेटी हैं। कुहू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट थॉमस कॉलेज, देहरादून से प्राप्त की और फिर दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (एसआरसीसी) से स्नातक की डिग्री हासिल की।

उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि बीती बातों पर रोने की बजाय, हर पल को नई शुरुआत के रूप में देखना चाहिए। आइए जानते हैं कि कुहू ने अपने सफर में कैसे आगे बढ़ी।

कुहू गर्ग, एक अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी का सफर

कुहू गर्ग एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत बहुत छोटी उम्र में की थी। मात्र नौ साल की उम्र में उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया और तब से लेकर अब तक उन्होंने खेल के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं।

कुहू की झोली में 56 राष्ट्रीय और 19 अंतरराष्ट्रीय पदक हैं, जो उनके समर्पण और मेहनत का प्रतीक हैं। 13 साल की उम्र से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना शुरू कर दिया था। वे वुमेंस डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में खेल चुकी हैं, और मिक्स्ड डबल्स में उनकी वर्ल्ड रैंकिंग 34 तक पहुँच चुकी है।

साल 2018 में कुहू ने विश्व चैंपियनशिप का क्वार्टर फाइनल भी खेला, जो उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन को दर्शाता है। उनकी यह उपलब्धियां न केवल खेल के प्रति उनके प्यार को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि उन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए कितनी मेहनत की है।

यूपीएससी का सफर, कुहू गर्ग की प्रेरणादायक कहानी

कुहू गर्ग बैडमिंटन में अपनी पहचान बना चुकी थीं, जब दो साल पहले एक गंभीर घुटने की चोट ने उनकी खेल करियर को रोक दिया। इस चोट के कारण उन्हें एक बड़ी सर्जरी करवानी पड़ी, और डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी। इस समय का सदुपयोग करते हुए, कुहू ने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की।

कुहू ने अपनी तैयारी में 8 से 10 घंटे की दैनिक पढ़ाई की। जैसे-जैसे परीक्षा का समय नजदीक आया, उनकी मेहनत और बढ़ीप्रीलिम्स के दौरान यह समय 12 से 13 घंटे और मेन्स के समय 16 घंटे तक पहुँच गया। इस अनुशासन और समर्पण का फल मिला और उन्होंने अपने पहले प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास की, साथ ही देशभर में 178वीं रैंक हासिल की।

कुहू की यह यात्रा न केवल उनके सामर्थ्य को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि किसी भी चुनौती को पार कर अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। उनकी सफलता की कहानी युवा aspirants के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है।

पिता से मिली प्रेरणा

कुहू गर्ग ने हमेशा अपने पिता, पूर्व आईपीएस अधिकारी अशोक कुमार, से प्रेरणा ली है। बचपन से ही वह अपने पिता और उनके साथियों के बीच रहने वाली प्रोफेशनल माहौल को देखती आ रही थीं, जिससे उन्हें एक नई प्रेरणा मिली। कुहू हमेशा चाहती थीं कि उन्हें अपने देश की सेवा करने का मौका मिले, और यही सोच उन्हें आगे बढ़ाती रही।

उनका मानना है कि जब वह खेल के मैदान में देश का नाम रोशन कर रही थीं, तब अब वह सिविल सेवक बनकर देश की सेवा करने का अवसर पाकर गर्व महसूस करती हैं।

इस तरह, उनके पिता की प्रेरणा ने उन्हें न केवल खेल में बल्कि सिविल सेवा में भी सफल होने के लिए प्रेरित किया। कुहू की यह कहानी उन सभी के लिए एक उदाहरण है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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