पेरिस पैरालंपिक में भाला फेंक की एफ41 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर पानीपत के एथलीट नवदीप सिंह ने एक नई मिसाल स्थापित की है। टोक्यो में चौथे स्थान पर रहने के बाद नवदीप ने कहा कि उन्हें इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि गुरुवार को सम्मान समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके सामने बैठकर उन्हें कैप पहनाने का मौका देंगे।
Navdeep Singh: पेरिस पैरालंपिक में भाला फेंक की एफ41 श्रेणी में स्वर्ण पदक जीतकर पानीपत के एथलीट नवदीप सिंह ने एक नई उपलब्धि हासिल की है। टोक्यो में चौथे स्थान पर रहने के बाद, नवदीप ने बताया कि उन्हें इस बात की कोई अपेक्षा नहीं थी कि गुरुवार को सम्मान समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके सामने बैठकर उन्हें कैप पहनाएंगे।
थ्रो के बाद अपने गुस्से के लिए सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने नवदीप ने कहा कि जब वे भारत की जर्सी पहनते हैं, तो उनमें एक अद्भुत जोश आ जाता है। स्वर्ण पदक विजेता एथलीट ने यह भी बताया कि उन्होंने नीरज चोपड़ा से प्रेरणा लेकर भाला फेंक की शुरुआत की थी और ठान लिया था कि भले ही उनका कद छोटा है, लेकिन उनके कार्य बड़े होंगे। नवदीप से अभिषेक त्रिपाठी की विशेष बातचीत में कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं।
प्रधानमंत्री से भेंट का अनुभव कैसा रहा?
सभी एथलीटों को सम्मानित करने के लिए प्रधानमंत्री ने हमें अपने आवास पर बुलाया। वहां उन्होंने हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। मैंने उन्हें एक कैप भेंट की। मैं सोच रहा था कि उन्हें कैसे कहूं या पहनाने का मौका कैसे दूं, लेकिन प्रधानमंत्री इतने सहज थे कि उन्होंने तुरंत समझ लिया।
उन्होंने कहा, "मैं नीचे बैठ जाता हूं," और फिर मैंने उन्हें कैप पहना दी। यह मेरे लिए एक बेहद चौंकाने वाला अनुभव था। मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि प्रधानमंत्री ऐसा करेंगे, लेकिन यह बहुत अच्छा लगा कि उन्होंने हमें इस तरह का सम्मान दिया। उन्होंने हमें देश का भविष्य कहकर संबोधित किया।
क्या आप उन्हें टोपी पहनाने गए थे या बस देने गए थे?
"भाईया, यह टोपी नहीं, कैप कहिए," दोनों एक साथ हंस पड़े। मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं उन्हें कैप उपहार देने गया था, लेकिन दिल में ख्याल आया कि क्यों न उन्हें पहना दूं। लेकिन अगर उन्होंने इसे ले लिया तो यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी बात होती। हालांकि, उन्होंने जो किया, वह मेरी उम्मीदों से कहीं ज्यादा था। यह अनुभव बेहद अच्छा लगा।
'जब शरीर पर 'इंडिया' लिखा हो'- नवदीप
यह विराट कोहली की तरह है, इतनी ऊर्जा और आक्रामकता कैसे आती है? जब मैं खेल रहा था, तब मुझे नवदीप के नाम से कोई नहीं जानता था। उस समय, मैं केवल देश की जर्सी पहने हुए था और लोग मुझे एक भारतीय एथलीट के रूप में पहचानते थे। मैं वहां भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था। जब शरीर पर 'इंडिया' लिखा हो, तो उत्साह अपने आप आ जाता है। इसके लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं होती; यह खुद ही आता है।
स्पर्धा से पहले, क्या आपको लगता था कि आप पदक जीतेंगे?
मैंने टोक्यो पैरालंपिक में भाग लिया था और उस समय चौथे स्थान पर रहा था, इसलिए इस बार मेरा लक्ष्य केवल पदक जीतना था। मेरी तैयारी अच्छी चल रही थी और प्रदर्शन भी संतोषजनक था। मुझे पूरा विश्वास था कि मैं पदक जीत जाऊंगा, लेकिन इस बार का प्रदर्शन मेरी अपेक्षा से थोड़ा अधिक रहा। मेरे कोच बहुत खुश हैं और उन्हें मुझ पर पूरा भरोसा है।
मुझे खुद पर विश्वास ही नहीं हो रहा था -नवदीप सिंह
दरअसल, मेरा थ्रो काफी अच्छा निकला था। जब पहला वैलिड थ्रो सफल होता है, तो इसका मतलब है कि आगे और बेहतर करने की पूरी संभावना है। जब कोच ने बताया कि मेरा थ्रो 46.39 मीटर का है, तो मैं हैरान रह गया कि अब क्या होगा। उस थ्रो में मैंने अपना व्यक्तिगत सर्वोत्तम प्रदर्शन किया था, जिससे मुझे विश्वास था कि मैं और भी अच्छा कर सकता हूं। मुझे इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, इसलिए मैंने उनसे कहा, "खाओ मां कसम।"
भारत को दो प्रसिद्ध भाला फेंक एथलीट से भी मिलेगी नई पहचान
(हंसते हुए) बिल्कुल! यहां तीन बड़े युद्ध हुए हैं, और इन बलिदानों के कारण यहां की मिट्टी में कुछ खास है। पानीपत के खून में एक अलग तरह की ताकत है। यहां से एक-दो और भाला फेंक एथलीट भी अच्छे प्रदर्शन कर रहे हैं। इन तीन बड़े युद्धों ने हमें भाला फेंक के प्रति प्रेरित किया है, या शायद कोई और वजह है, लेकिन निश्चित रूप से इससे देश का नाम रोशन हो रहा है। नीरज चोपड़ा भाई साहब के योगदान से भाला फेंक में तेजी से वृद्धि हो रही है। जब उन्होंने जूनियर स्तर पर रिकॉर्ड बनाया, तो मेरे मन में इस खेल के प्रति प्यार और भी बढ़ गया।
प्रधानमंत्री ने 'विकलांग' शब्द को दी नई पहल
जब प्रधानमंत्री जी देश को कोई संदेश देते हैं, तो पूरा राष्ट्र इसे ध्यानपूर्वक सुनता है। जब जागरूकता का अभियान प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया जाता है, तो लोगों का दृष्टिकोण बदल जाता है। विचारों में शुद्धता आती है। हम जैसे दिव्यांग व्यक्तियों को अधिक सम्मान मिलता है। जब से प्रधानमंत्री ने हमें 'दिव्यांग' कहना शुरू किया है, हम देश के विकास में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं और आगे बढ़कर अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
बचपन से लोगो ने बनाया मजाक
हाँ, मुझे बचपन में इसका सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने इसे दिल पर नहीं लिया। जाट की बात सही है। कई लोग मेरे कद को देखकर कहते थे कि जाट तो ऐसे नहीं होते, तो तू कैसा जाट है। इन सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं बस भगवान की इच्छा पर भरोसा करता था। मैंने कभी इससे निराश नहीं हुआ, क्योंकि मुझे पता था कि कद छोटा हो सकता है, लेकिन मेरे कार्य बड़े होंगे। इसी प्रेरणा से मैंने खेलना शुरू किया और आज मैं इस मुकाम पर पहुंच चुका हूं। अब पूरा देश मुझ पर गर्व करता है।
क्या जिन लोगों ने तंग किया, उनकी आ रही बधाईयां
जी हाँ, अब बधाई का सिलसिला बढ़ता ही जाएगा। अब लोग इसे समझने और पहचानने लगे हैं, जिससे अच्छा प्रतिक्रिया मिल रही है। यह निस्संदेह बहुत खुशी की बात है। पहले, कुछ लोग मजाक उड़ा रहे थे, यही उनकी सोच थी, लेकिन अब समय के साथ दिव्यांगों के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है।
दिव्यांग लोगों को क्या सन्देश देना चाहेंगे
अगर हम खुद को कमजोर समझकर बैठ जाएंगे, तो कुछ भी हासिल नहीं होगा। मैं जानता हूं कि हमें दूसरों की अपेक्षा अधिक मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन यदि हम अपने लक्ष्य को ठान लें, तो हम भविष्य में बेहतरीन उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं, और तब देश हम पर गर्व करेगा।
जब सफलता हमारे कदम चूमती है, तब लोग यही कहते हैं कि देखो, उसने इतनी मुश्किलों के बावजूद यह किया। यदि हम खुद को कमजोर मानेंगे, तो दुनिया हमें और भी कमजोर बना देगी। हमें अपनी कमजोरी को अपनी ताकत में बदलते हुए आगे बढ़ना चाहिए। हम कमजोर नहीं हैं, हम बहुत मजबूत हैं।
कैसा रहा पैरालंपिक का सफर
शुरुआत में मैं केवल पढ़ाई करता था, लेकिन मेरे पिता ने मुझे कुश्ती में शामिल किया। दुर्भाग्यवश, मेरी पीठ में चोट लग गई। मेरे पिता ग्राम सचिव थे। कुछ सालों बाद मैंने वापसी की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाया। फिर मैंने दौड़ने का निर्णय लिया और राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीते। लेकिन जब मेरी स्पर्धा को हटा दिया गया, तो मुझे बहुत निराशा हुई।
2016 में नीरज भाई साहब ने अंडर-20 में विश्व रिकॉर्ड बनाया, जिससे मुझे प्रेरणा मिली। इसके बाद, 2017 में मैंने भाला फेंक में कदम रखा। कुछ समय के लिए मैंने सोनीपत में अभ्यास किया, और फिर दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में अभ्यास करने लगा। जब मैं स्टेडियम जाता था, तो लोग मुझे अजीब नजरों से देखते थे।
जब मैंने जूनियर स्तर पर विश्व रिकॉर्ड बनाया, तो मुझे खेलो इंडिया में चयन का अवसर मिला। इसके बाद मुझे स्टेडियम के अंदर रहने की अनुमति भी मिली। केंद्र सरकार ने मुझे बहुत समर्थन दिया। फिर मैंने टोक्यो पैरालंपिक का कोटा जीता और वहां चौथे स्थान पर रहा। मेरा संकल्प था कि मुझे पदक जीतना है, और इस बार पेरिस में यह सपना पूरा हुआ।