ISRO: इसरो ने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट उपग्रहों की दिखाई झलक, श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जल्द होगा लॉन्च, जानें क्या है स्पेस डॉकिंग?

ISRO: इसरो ने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट उपग्रहों की दिखाई झलक, श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से जल्द होगा लॉन्च, जानें क्या है स्पेस डॉकिंग?
Last Updated: 3 घंटा पहले

श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से इस महीने के अंत में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) एक और ऐतिहासिक अंतरिक्ष अभियान शुरू करने की तैयारी में हैं। 

श्रीहरिकोटा: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जल्द ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर स्थापित करने की तैयारी कर रहा है। शनिवार को इसरो ने अपने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (SPADEX) उपग्रहों की पहली झलक पेश की, जिसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लॉन्च पैड पर रखा गया हैं।

इसरो के अनुसार, स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में दो यानों के बीच डॉकिंग (एक यान से दूसरे यान का जुड़ना) और अंडॉकिंग (दो यानों का अलग होना) के लिए आवश्यक तकनीकी क्षमता को विकसित करना है। यह टेक्नोलॉजी अंतरिक्ष अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि भविष्य में अंतरिक्ष मिशनों के दौरान विभिन्न यानों के बीच डॉकिंग और अंडॉकिंग प्रक्रियाएं आवश्यक होंगी।

इसरो का स्पैडेक्स (SPADEX) मिशन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपने आगामी मिशन के बारे में जानकारी साझा की। इसरो ने पोस्ट में कहा, "प्रक्षेपण यान को एकीकृत कर दिया गया है और अब सैटेलाइट्स को इसपर स्थापित करने और लॉन्च की तैयारियों के लिए इसे पहले ‘लांचिंग पैड’ पर ले जाया गया है।" इस पोस्ट के माध्यम से ISRO ने अपने स्पैडेक्स (SPADEX) मिशन के बारे में भी जानकारी दी।

स्पैडेक्स (SPADEX) मिशन, पीएसएलवी द्वारा प्रक्षेपित दो छोटे अंतरिक्ष यान का उपयोग करके अंतरिक्ष में डॉकिंग के टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन करेगा। इस मिशन का उद्देश्य भारत के भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी को विकसित करना है। ISRO के अनुसार, यह टेक्नोलॉजी भारत के मून मिशन, चंद्रमा से सैंपल लाना, भारतीय अंतरिक्ष केंद्र (BAS) का निर्माण और संचालन के लिए आवश्यक हैं।

अंतरिक्ष में डॉकिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग तब किया जाता है जब साझा मिशन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने की आवश्यकता होती है। यदि इस मिशन में सफलता मिलती है, तो भारत स्पेश डॉकिंग टेक्नोलॉजी हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। ISRO के मुताबिक, स्पैडेक्स मिशन के तहत दो छोटे अंतरिक्ष यान (प्रत्येक का वजन लगभग 220 किग्रा) पीएसएलवी-सी60 द्वारा स्वतंत्र रूप से और एक साथ, 55 डिग्री झुकाव पर 470 किमी वृत्ताकार कक्षा में प्रक्षेपित किए जाएंगे, और इसका स्थानीय समय चक्र लगभग 66 दिन का होगा।

क्या है ‘स्पेस डॉकिंग’? 

जानकारी के अनुसार, पीएसएलवी-सी60 के जरिए इस मिशन को दिसंबर के अंत में लॉन्च किया जाएगा। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ पहले ही कह चुके हैं कि यह मिशन ‘स्पेस डॉकिंग’ प्रयोग का प्रदर्शन करेगा, जिसे ‘स्पैडेक्स’ नाम दिया गया है। यह प्रयोग अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट्स को जोड़ने की तकनीक का परीक्षण करेगा, जिसे स्पेस डॉकिंग कहा जाता हैं।

स्पेस डॉकिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यान आपस में जुड़ सकते हैं। यह तकनीक भविष्य में मानव मिशनों को और अधिक सक्षम बनाएगी, क्योंकि इसके जरिए एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में मानव को भेजा जा सकता है। स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके जरिए अंतरिक्ष यान स्वतः ही स्टेशन से जुड़ सकते हैं। भारत के अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रयान-4 परियोजना जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए यह डॉकिंग तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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