माँ गंगा स्तुति
पतित पावनी गंगे, तव दर्शनं मात्रेण,
मुक्तिः संसृति बन्धनात्।
पुंसः पापं हरसि सखे,
सुरासुरवर वन्दिता॥
हे गंगे माता, तुम पतित पावनी हो,
सिर्फ तुम्हारे दर्शन से ही संसार के बन्धनों से मुक्ति मिलती है।
तुम्हारी महिमा से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं,
तुम्हारी स्तुति देवता और असुर भी करते हैं।
तव जलं निर्मलं शुभ्रं,
सर्वव्याधि निवारिणं।
कष्टं हरसि संतानां,
सुखं दास्यसि मातरम्॥
तुम्हारा पवित्र जल सभी रोगों का नाश करने वाला है,
तुम्हारी कृपा से सभी संतानों के कष्ट दूर हो जाते हैं,
और तुम सुख प्रदान करती हो, हे माँ गंगा।
गंगा त्रिपथगा धारा,
देवि त्रैलोक्यपावनी।
अमृतं सर्वसंसारं,
तव स्नानं तु मोक्षदं॥
हे गंगा, तुम त्रिपथगा धारा हो,
तीनों लोकों को पवित्र करने वाली देवी हो।
तुम्हारा जल अमृत के समान है,
और तुम्हारे स्नान से मोक्ष प्राप्त होता है।
विनम्र ह्रदय से गंगा माँ,
तुम्हारी शरण में आया हूँ।
कृपा कर मुझे तार दो,
और मोक्ष का मार्ग दिखाओ।