श्री जगन्नाथ आरती

श्री जगन्नाथ आरती
Last Updated: 25 सितंबर 2024

 

चतुर्भुज जगन्नाथ

कंठ शोभित कौसतुभः।

पद्मनाभ, बेडगरवहस्य,

चन्द्र सूरज्या बिलोचनः।

जगन्नाथ, लोकानाथ,

निलाद्रिह सो पारो हरि।

 दीनबंधु, दयासिंधु,

कृपालुं च रक्षकः।

 कम्बु पानि, चक्र पानि,

पद्मनाभो, नरोतमः।

जग्दम्पा रथो व्यापी,

सर्वव्यापी सुरेश्वराहा।

लोका राजो, देव राजः,

चक्र भूपह स्कभूपतिहि।

निलाद्रिह बद्रीनाथशः,

अनन्ता पुरुषोत्तमः।

ताकारसोधायोह, कल्पतरु,

बिमला प्रीति बरदन्हा।

बलभद्रोह, बासुदेव,

माधवो, मधुसुदना।

दैत्यारिः, कुंडरी काक्षोह,

बनमाली बडा प्रियाह,

ब्रम्हा बिष्णु, तुषमी।

बंगश्यो, मुरारिह कृष्ण केशवः,

श्री राम, सच्चिदानंदोह।

गोबिन्द परमेश्वरः,

बिष्णुुर बिष्णुुर, महा बिष्णुपुर।

प्रवर बिशणु महेसरवाहा,

लोका कर्ता, जगन्नाथो,

महीह करतह महजतहह।

महर्षि कपिलाचार व्योह,

लोका चारिह सुरो हरिह।

वातमा चा जीबा पालसाचा,

सूरह संगसारह पालकह।

एको मीको मम प्रियो।

 ब्रम्ह बादि महेश्वरवरहा,

दुइ भुजस्च चतुर बाहू।

सत बाहु सहस्त्रक,

पद्म पितर बिशालक्षय।

पद्म गरवा परो हरि,

पद्म हस्तेहु, देव पालो।

दैत्यारी दैत्यनाशनः,

चतुर मुरति, चतुर बाहु।

शहतुर न न सेवितोह।

पद्म हस्तो, चक्र पाणि,

संख हसतोह, गदाधरह।

महा बैकुंठबासी चो,

लक्ष्मी प्रीति करहु सदा।

 

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