श्री गणेश चालीसा: विघ्नहर्ता गणपति की स्तुति से दूर होंगी सभी बाधाएं, प्राप्त होगा सुख-संपत्ति और सफलता!

श्री गणेश चालीसा: विघ्नहर्ता गणपति की स्तुति से दूर होंगी सभी बाधाएं, प्राप्त होगा सुख-संपत्ति और सफलता!
Last Updated: 12 घंटा पहले

॥ दोहा ॥

जय गणपति सदगुण सदन,

कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण,

जय जय गिरिजालाल॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय गणपति गणराजू।

मंगल भरण करण शुभ काजू॥

 

जय गजबदन सदन सुखदाता।

विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

 

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावना।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावना॥

 

राजत मणि मुक्तन उर माला।

स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

 

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।

मोदक भोग सुगंधित फूलं॥

 

सुन्दर पीताम्बर तन साजित।

चरण पादुका मुनि मन राजित॥

 

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।

गौरी लालन विश्व-विख्याता॥

 

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे।

मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

 

कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी।

अति शुचि पावन मंगलकारी॥

 

एक समय गिरिराज कुमारी।

पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

 

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।

तब पहुँचे तुम धरी द्विज रूपा॥

 

अतिथि जानी के गौरी सुखारी।

बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥

 

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा।

मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

 

मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला।

बिना गर्भ धारण यहि काला॥

 

गणनायक गुण ज्ञान निधाना।

पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

 

अस कहि अन्तर्धान रूप हवै।

पालना पर बालक स्वरूप हवै॥

 

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना।

लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥

 

सकल मगन सुख मंगल गावहिं।

नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥

 

शम्भु उमा बहु दान लुटावहिं।

सुर मुनिजन सुत देखन आवहिं॥

 

लखि अति आनंद मंगल साजा।

देखन भी आये शनि राजा॥

 

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।

बालक देखन चाहत नाहीं॥

 

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।

उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥

 

कहत लगे शनि मन सकुचाई।

का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥

 

नहिं विश्वास उमा उर भयऊ।

शनि सों बालक देखन कहयऊ॥

 

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।

बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

 

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी।

सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥

 

हाहाकार मच्यो कैलाशा।

शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥

 

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।

काटी चक्र सो गज सिर लायो॥

 

बालक के धड़ ऊपर धारयो।

प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥

 

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।

प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥

 

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।

पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥

 

चले षडानन भरमि भुलाई।

रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

 

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

 

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे।

नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

 

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।

शेष सहसमुख सके न गाई॥

 

मैं मतिहीन मलीन दुखारी।

करहूँ कौन विधि विनय तुम्हारी॥

 

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।

जग प्रयाग ककरा दुर्वासा॥

 

अब प्रभु दया दीना पर कीजै।

अपनी शक्ति भक्ति कुछ द॥ दोहा ॥

 

श्री गणेश यह चालीसा,

पाठ करै कर ध्यान।

नित नव मंगल गृह बसै,

लहे जगत सन्मान॥

 

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,

ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो,

मंगल मूर्ती गणेश॥ीजै॥

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