बाबा जीवन सिंह जी शहीदी दिवस हर साल 23 दिसम्बर को मनाया जाता है। यह दिन बाबा जीवन सिंह जी के अद्वितीय बलिदान को याद करने और सम्मानित करने के रूप में मनाया जाता है। बाबा जीवन सिंह जी ने सिख धर्म के महान गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ मिलकर मुगलों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और अपनी जान की आहुति दी।
सिख धर्म के इतिहास में भाई जीवन सिंह का नाम अद्वितीय है। उन्होंने न केवल अपनी वीरता से सिख समुदाय को गौरवान्वित किया, बल्कि अपने बलिदान और कर्तव्यपरायणता के माध्यम से अमर हो गए। बाबा जीवन सिंह, जिन्हें पहले भाई जैता के नाम से जाना जाता था, गुरु गोबिंद सिंह के विश्वासपात्र और सिख धर्म के पहले सेनापति थे। उनका जीवन सिख परंपराओं, बलिदान और कर्तव्य का अद्वितीय उदाहरण हैं।
प्रारंभिक जीवन
भाई जैता का जन्म 13 दिसंबर 1661 को पटना (बिहार) में एक मज़हबी सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदा नंद और माता का नाम प्रेमो था। बचपन से ही वे निडर और कर्मठ थे। पटना में रहते हुए उन्होंने हथियारों का प्रशिक्षण लिया और युद्ध कला में निपुण हुए।
वे घुड़सवारी, तैराकी, और संगीत में भी पारंगत थे।
उनकी शिक्षा-दीक्षा में कीर्तन और सिख धर्म का गहन अध्ययन शामिल था।
बाद में उनका परिवार पंजाब लौट आया और उन्होंने रामदास गांव में बाबा बुद्ध के परपोते भाई गुरदित्ता के साथ रहना शुरू किया। उनकी शादी सुरजन सिंह की बेटी बीबी राज कौर से हुई।
गुरु तेग बहादुर की शहादत और भाई जैता का योगदान
1675 में, जब सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर को मुगलों द्वारा चांदनी चौक, दिल्ली में शहीद कर दिया गया, तो भाई जैता ने इतिहास का एक नया अध्याय लिखा।
गुरु के शहीद सिर को सुरक्षित बचाकर उन्होंने इसे गुरु गोबिंद सिंह तक पहुंचाने का साहसिक कार्य किया।
गुरु गोबिंद सिंह ने इस बलिदान को मान्यता देते हुए उन्हें "रंगरेटा गुरु का बेटा" की उपाधि से सम्मानित किया।
यह घटना सिख धर्म के लिए एक प्रेरणा बन गई और भाई जैता को सिख इतिहास में अमर कर गई।
भाई जैता से बाबा जीवन सिंह बनने का सफर
गुरु गोबिंद सिंह ने भाई जैता का नाम बदलकर बाबा जीवन सिंह कर दिया।
उन्हें सिख धर्म के पहले सेनापति के रूप में नियुक्त किया गया।
उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह के साथ अनेक युद्ध लड़े, जिनमें भंगानी, नादौन, आनंदपुर साहिब, और चमकौर की लड़ाई शामिल हैं।
उनकी महानता केवल उनकी वीरता तक सीमित नहीं थी; उन्होंने 'श्री गुरु कथा' नामक पुस्तक लिखी, जिसमें गुरु गोबिंद सिंह के अद्वितीय कार्यों का वर्णन हैं।
चमकौर की लड़ाई और शहादत
1704 में चमकौर की ऐतिहासिक लड़ाई के दौरान बाबा जीवन सिंह ने अपने गुरु और सिख धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
इस लड़ाई में उन्होंने अद्वितीय साहस का परिचय दिया।
उनकी शहादत को सिख धर्म में एक महान बलिदान के रूप में याद किया जाता हैं।
उनकी याद में गुरुद्वारा शहीद बुर्ज साहिब बनाया गया, जो आज भी उनके बलिदान की गवाही देता हैं।
भाई जीवन सिंह का योगदान और प्रेरणा
भाई जीवन सिंह का जीवन हमें सिखाता है कि बलिदान, निष्ठा, और कर्तव्यपरायणता किस प्रकार धर्म और समाज को सशक्त बना सकते हैं।
उन्होंने सिख धर्म को संकट से उबारा और उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उनका जीवन न केवल सिख समुदाय बल्कि समस्त मानवता के लिए प्रेरणा हैं।
उपसंहार
भाई जीवन सिंह का योगदान सिख इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी वीरता और बलिदान ने सिख धर्म को नई दिशा दी। आज, उनकी शहादत और निष्ठा हमें हर परिस्थिति में अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देती हैं।