अशफाक उल्ला खान का शहादत दिवस 19 दिसंबर मनाई जाती है। 19 दिसंबर 1927 को उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए फांसी दी गई थी। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष की ओर पहला कदम
अशफाक़उल्लाह खान (22 अक्टूबर 1900 – 19 दिसंबर 1927) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में हुआ था, जहां उन्होंने बचपन से ही देशभक्ति की प्रेरणा ली। उनके माता-पिता, शफीक उल्लाह खान और मज़हरुनिस्सा, पठान जमींदार थे। वे अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे और उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महाकाव्य गाथा से जुड़ा हुआ हैं।
अशफाक़उल्लाह खान की क्रांतिकारी यात्रा की शुरुआत 1918 में हुई। जब वे सातवीं कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे, तब पुलिस ने उनके स्कूल पर छापा मारा और मैनपुरी षडयंत्र में शामिल एक छात्र राजाराम भारतीय को गिरफ्तार कर लिया। इस घटना ने खान को क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने एक मित्र के माध्यम से क्रांतिकारी नेता राम प्रसाद बिस्मिल से मुलाकात की और जल्द ही उनकी शरण में आ गए।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA)
राम प्रसाद बिस्मिल से मिलने के बाद अशफाक़उल्लाह खान ने असहयोग आंदोलन और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के उद्देश्यों को समझा और उनसे जुड़ गए। वे क्रांतिकारी दल के सदस्य बने, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ देने के लिए अंग्रेज़ों के खिलाफ हथियार उठाने की योजना बना रहे थे।
अशफाक़उल्लाह खान ने उर्दू में कविताएं लिखी और छद्म नाम हसरत के तहत अपने विचार व्यक्त किए। वे रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित थे और उनके मन में पूंजीवाद और धार्मिक सांप्रदायिकता के खिलाफ गहरी नफरत थी। उनका मानना था कि इन दोनों के खिलाफ लड़ाई ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सफलता दिला सकती हैं।
काकोरी ट्रेन डकैती और गिरफ्तारी
8 अगस्त 1925 को काकोरी ट्रेन डकैती का आयोजन किया गया, जिसमें खान और उनके साथी क्रांतिकारियों ने सरकारी नकदी से भरी ट्रेन को लूट लिया। इस घटना के बाद, ब्रिटिश सरकार ने अपराधियों को पकड़ने के लिए व्यापक अभियान शुरू किया। अशफाक़उल्लाह खान, जो इस डकैती में शामिल थे, ने गिरफ्तारी से बचने के लिए नेपाल भागने का निर्णय लिया।
हालांकि, 7 दिसंबर 1926 को उन्हें दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें फैजाबाद की जिला जेल में रखा गया और उनके खिलाफ काकोरी डकैती के मामले में मुकदमा चलाया गया। अदालत में खान ने अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका मकसद केवल भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करना था, न कि आतंकवाद फैलाना।
फांसी और शहादत
काकोरी डकैती के मामले में अशफाक़उल्लाह खान और उनके साथियों को मौत की सजा सुनाई गई। 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में उनकी फांसी का आदेश दिया गया। फांसी के समय उनके चेहरे पर कोई डर नहीं था, बल्कि वे देश की स्वतंत्रता के लिए अपने बलिदान पर गर्व महसूस कर रहे थे। उनका अंतिम शब्द "वन्दे मातरम्" था, जो आज भी हमें अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और सम्मान का एहसास दिलाता हैं।
अशफाक़उल्लाह खान का उत्तराधिकार
अशफाक़उल्लाह खान का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत के रूप में अमर रहेगा। उनकी शहादत ने न केवल उनके समकालीनों को प्रेरित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह संदेश दिया कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किसी एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि एक जन आंदोलन है। उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर हर साल शहीदों को याद किया जाता है, और उनका योगदान भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं।
लोकप्रिय संस्कृति में अशफाक़उल्लाह खान
अशफाक़उल्लाह खान और उनके साथियों की वीर गाथाओं को भारतीय फिल्मों और टेलीविजन शो में भी दिखाया गया है। फिल्म रंग दे बसंती (2006) में उनके किरदार को कुणाल कपूर ने निभाया। इसके अलावा, स्टार भारत की टेलीविजन सीरीज़ चंद्रशेखर और डीडी उर्दू पर प्रसारित मुजाहिद-ए-आज़ादी - अशफ़ाक़उल्लाह खान ने भी उनकी शहादत और संघर्ष को प्रदर्शित किया।
अशफाक़उल्लाह खान का बलिदान हमारे देश की स्वतंत्रता की नींव में एक मजबूत ईंट की तरह है। उनका जीवन और संघर्ष हमें यह सिखाता है कि देश की आज़ादी के लिए हर कीमत चुकानी पड़ती है, और उस संघर्ष को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी शहादत और संघर्ष की गाथा न केवल हमें गर्वित करती है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाती है कि स्वतंत्रता पाने के लिए हर किसी को अपनी भूमिका निभानी होती हैं।
अशफाक़उल्लाह खान की पुण्य तिथि 19 दिसंबर को, हम सभी उन्हें नमन करते हैं और उनके अद्वितीय योगदान को याद करते हैं, ताकि उनके बलिदान से प्रेरणा लेकर हम अपने देश को एक मजबूत और स्वतंत्र राष्ट्र बना सकें।