भारत की परमाणु ताकत: ऐतिहासिक दृष्टिकोण और उससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

भारत की परमाणु ताकत: ऐतिहासिक दृष्टिकोण और उससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
Last Updated: 4 घंटा पहले

भारत एक स्वतंत्र और शांतिप्रिय देश है, लेकिन अपने पड़ोसियों के साथ जटिल भू-राजनीतिक संबंधों और सुरक्षा चिंताओं के चलते भारत ने परमाणु शक्ति संपन्न होने का निर्णय लिया। आइए, भारत के परमाणु कार्यक्रम और इसकी पृष्ठभूमि को विस्तार से समझते हैं।

परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत

भारत का परमाणु कार्यक्रम 1940 के दशक में शुरू हुआ, जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु ऊर्जा के महत्व को समझते हुए इस क्षेत्र में शोध और विकास को बढ़ावा दिया। 1948 में, भारत ने 'एटोमिक एनर्जी एक्ट' पारित किया, जिसके बाद परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) की स्थापना हुई। डॉ. होमी जे. भाभा को इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रम का जनक माना जाता है।

परमाणु परीक्षण: पोखरण-I (स्माइलिंग बुद्धा)

भारत ने 18 मई 1974 को अपना पहला सफल परमाणु परीक्षण किया, जिसे "स्माइलिंग बुद्धा" नाम दिया गया। यह परीक्षण राजस्थान के पोखरण नामक स्थान पर किया गया था। पोखरण एक वीरान और रेगिस्तानी इलाका था, जिसे परीक्षण स्थल के रूप में चुना गया।

स्माइलिंग बुद्धा का महत्व: यह परीक्षण भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, क्योंकि यह दे परमाणु श को शक्ति संपन्न देशों की श्रेणी में लाया। इस परीक्षण के बाद भारत का इरादा था कि वह परमाणु हथियारों का उपयोग केवल प्रतिरोध के लिए करेगा, न कि किसी आक्रामकता के लिए।

शांति का संदेश: भारत ने इस परीक्षण के साथ विश्व को यह संदेश दिया कि उसकी परमाणु नीति शांति पर आधारित होगी और भारत किसी भी स्थिति में परमाणु हथियारों का पहला इस्तेमाल नहीं करेगा।

परमाणु नीति: ‘नो फर्स्ट यूज़ (No First Use)

भारत की परमाणु नीति का एक प्रमुख स्तंभ उसकी ‘नो फर्स्ट यूज़ (पहले उपयोग न करने की) नीति है। इसका मतलब है कि भारत परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कभी भी आक्रमण के लिए नहीं करेगा, बल्कि अगर उस पर परमाणु हमला होता है, तभी वह जवाब में इसका उपयोग करेगा। यह नीति भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में पहचान दिलाती है।

पोखरण-II: शक्ति परीक्षण (1998)

भारत ने दो दशक बाद, 11 और 13 मई 1998 को फिर से परमाणु परीक्षण किए, जिन्हें "पोखरण-II" या "शक्ति परीक्षण" के नाम से जाना जाता है। इन परीक्षणों ने भारत की रक्षा और वैज्ञानिक क्षमता को वैश्विक स्तर पर प्रमाणित किया। इस बार, भारत ने पाँच परमाणु बमों का परीक्षण किया, जिनमें से कुछ टैक्टिकल परमाणु बम थे।

शक्ति परीक्षण का प्रभाव: इन परीक्षणों ने भारत को पूरी तरह से परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्थापित किया। इन परीक्षणों के बाद भारत के परमाणु हथियारों की क्षमता और शक्ति की पुष्टि हुई। इसके बाद, पाकिस्तान ने भी जवाबी परीक्षण किए, जिससे दोनों देशों में शक्ति संतुलन बना।

परमाणु आपूर्ति समूह (NSG) और वैश्विक दबाव

पोखरण-II परीक्षणों के बाद, भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना का सामना करना पड़ा और उस पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए गए। परमाणु आपूर्ति समूह (NSG) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे, ताकि वह परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर करे। हालांकि, भारत ने साफ कर दिया कि उसकी परमाणु नीति पूरी तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता पर आधारित है और वह NPT की अनुशासनहीनता को स्वीकार नहीं करेगा।

परमाणु सिद्धांत और सैन्य शक्ति

भारत का परमाणु सिद्धांत आत्मरक्षा और प्रतिरोध पर आधारित है। भारत के पास भूमि, समुद्र और वायु से परमाणु हमले की क्षमता है, जिसे "ट्रायड" कहा जाता है। इसका मतलब है कि भारत किसी भी स्थिति में परमाणु हमले का जवाब दे सकता है।

अग्नि मिसाइल श्रृंखला: भारत ने अग्नि मिसाइलों की एक श्रृंखला विकसित की है, जिनकी रेंज 700 किलोमीटर से लेकर 5,000 किलोमीटर तक है। इसके अलावा, ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और परमाणु-सक्षम पनडुब्बियों ने भारत की रक्षा क्षमता को और मजबूत किया है।

परमाणु पनडुब्बियाँ: भारत ने आईएनएस अरिहंत नामक परमाणु पनडुब्बी भी विकसित की है, जो समुद्र से परमाणु हमले की क्षमता प्रदान करती है। यह भारत के लिए एक प्रमुख सामरिक लाभ है, क्योंकि इसने परमाणु हमलों के खिलाफ जवाबी हमले की पूरी ताकत प्रदान की है।

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