जम्मू में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने 1975 के आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला अध्याय करार दिया। उन्होंने कहा कि यह ऐसा दौर था जब नागरिकों की आज़ादी को बेरहमी से कुचल दिया गया था। लोग बिना मुकदमे के जेलों में डाले गए, मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई और जबरन नसबंदी जैसे अमानवीय कदम उठाए गए। डॉ. सिंह ने कहा कि यह समय आने वाली पीढ़ियों को याद रखना चाहिए, ताकि देश दोबारा ऐसी गलती न करे।
उन्होंने कहा कि आपातकाल ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को भारी नुकसान पहुंचाया, लेकिन इसने कुछ मजबूत नेताओं और विचारों को भी जन्म दिया। उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण को लोकतंत्र का रक्षक बताया और नानाजी देशमुख की भूमिका को भी याद किया, जिन्होंने जेपी की जान बचाने के लिए जोखिम उठाया। साथ ही डॉ. सिंह ने कहा कि आपातकाल की घटनाएं इस बात की गवाही हैं कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए नागरिकों को सदैव सजग रहना चाहिए।
कांग्रेस पर वैचारिक हमले के साथ उठाया इतिहास का सवाल
डॉ. सिंह ने कांग्रेस पार्टी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि आपातकाल कोई आकस्मिक फैसला नहीं था, बल्कि कांग्रेस की वैचारिक सोच का नतीजा था। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की स्थापना ही ब्रिटिश अधिकारी ए.ओ. ह्यूम द्वारा एक "नियंत्रित मंच" के रूप में की गई थी और यह पार्टी राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित नहीं थी। उन्होंने कांग्रेस पर भाई-भतीजावाद, अधिनायकवाद और अवसरवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि पार्टी ने हमेशा सच्चे बलिदानियों की उपेक्षा की, जिसमें मदन लाल ढींगरा और वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारी शामिल हैं। डॉ. सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि गांधीजी ने कांग्रेस के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दरकिनार कर सरदार पटेल के बजाय जवाहरलाल नेहरू को पार्टी का अध्यक्ष बनाया, जबकि पटेल को ज्यादा समर्थन प्राप्त था।
लोकतंत्र को बचाने की चेतावनी और संशोधनों पर सवाल
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आपातकाल सिर्फ एक घटना नहीं थी, बल्कि लोकतंत्र के खिलाफ एक गहरी साजिश थी। उन्होंने बताया कि 1974 के छात्र आंदोलन, गुजरात में कांग्रेस की चुनावी हार और इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द किए जाने के बाद कांग्रेस ने खुद को बचाने के लिए संविधान में कई संशोधन किए। इनमें 38वां, 42वां और 43वां संशोधन शामिल है, जिनसे संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया गया।
डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर में यह बदलाव स्थायी बना रहा। उन्होंने जनता को चेताते हुए कहा कि भले ही आपातकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन उसकी मानसिकता अब भी जीवित है और लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बनी हुई है। ऐसे में नागरिकों को लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सजग और जागरूक रहना होगा।