भूटान का राष्ट्रीय दिवस 17 दिसंबर को मनाया जाता है, जो उस दिन की याद में है जब 1907 में उगेन वांगचुक को भूटान का पहला राजा चुना गया था। यह दिवस भूटान की एकता और समृद्धि की शुरुआत का प्रतीक है, क्योंकि इससे पहले देश कई अलग-अलग क्षेत्रों में बंटा हुआ था। इस दिन, भूटान के लोग अपने इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करते हैं।
राष्ट्रीय दिवस के दौरान भूटान में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जिनमें पारंपरिक संगीत, नृत्य, और धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। इसके अलावा, राजा का संदेश भी प्रसारित होता है, जो देश के विकास और सांस्कृतिक संरक्षण पर जोर देता है। यह दिन भूटान के नागरिकों के लिए गर्व और एकता का प्रतीक हैं।
भूटान, जो अपनी शांतिपूर्ण प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है, का इतिहास मिश्रित मिथकों और वास्तविक घटनाओं का संगम रहा है। इस देश का इतिहास प्राचीन सभ्यताओं और धार्मिक परंपराओं से भरा हुआ है, जिसमें 2000 ईसा पूर्व के आसपास बस्तियों का आरंभ होना और 7वीं शताब्दी में कूच बिहार के राजा का शासन करना शामिल है। हालांकि, भूटान का वास्तविक राजनीतिक और धार्मिक इतिहास बौद्ध धर्म के आगमन के बाद अधिक स्पष्ट रूप से सामने आया।
धार्मिक परिवर्तनों से राजनीतिक उत्थान तक
9वीं शताब्दी में, जब तिब्बत में अशांति थी, कई बौद्ध भिक्षु भूटान की ओर आए। इसी समय से भूटान में बौद्ध धर्म की नींव पड़ी, और 12वीं शताब्दी में ड्रुक्पा कग्युपा सम्प्रदाय का गठन हुआ, जो आज भी देश का प्रमुख धर्म है। भूटान का राजनीतिक इतिहास भी इसी धार्मिक इतिहास से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है, जहाँ धर्म और राज्य के बीच सामंजस्य बना रहा हैं।
ब्रिटिश और भारतीय प्रभाव
सत्रहवीं शताब्दी के अंत में, भूटान ने बौद्ध धर्म को पूर्ण रूप से अंगीकार किया और 1865 में ब्रिटेन के साथ सिनचुलु संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत भूटान ने अपनी सीमाओं के कुछ भूभाग को ब्रिटेन के हाथों में सौंपा और बदले में वार्षिक अनुदान प्राप्त किया। 1907 में ब्रिटिश शासन के तहत भूटान में राजशाही की स्थापना हुई। इसके बाद, 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, 1949 में भारत और भूटान के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिसके अनुसार भारत ने भूटान को उसकी सभी खोई हुई ज़मीन वापस लौटा दी और भूटान की विदेश नीति एवं रक्षा नीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लोकतंत्र की ओर बढ़ते कदम
भूटान में लोकतंत्र की शुरुआत 2008 में हुई, जब भूटान ने एक संवैधानिक लोकतंत्र अपनाया। 2005 में, राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक और सरकार ने देश के पहले संविधान का मसौदा प्रस्तुत किया, जिसमें नागरिकों से समीक्षा करने का आग्रह किया गया। संविधान में यह स्पष्ट किया गया कि जब तक राजा अपनी प्रतिबद्धता और राज्य के हितों की रक्षा करेंगे, वे सरकार की दिशा निर्धारित करने में नेतृत्व की भूमिका निभाते रहेंगे।
राजा का उत्तराधिकारी और लोकतांत्रिक परिवर्तन
2006 में, राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने अपने बेटे जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक को राजशाही की जिम्मेदारियाँ सौंप दीं। यह कदम भूटान के लोकतांत्रिक परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। 2008 में भूटान ने एक पूर्ण लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की, और इस प्रक्रिया में युवराज जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक को भूटान के आगामी लोकतांत्रिक नेता के रूप में तैयार किया गया।
भूटान का इतिहास न केवल इसकी धार्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का द्योतक है, बल्कि यह देश के राजनीतिक और सामाजिक बदलावों का भी प्रमाण है। भूटान ने अपने प्राचीन धार्मिक इतिहास से लेकर आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था तक के सफर में कई महत्वपूर्ण पड़ावों को पार किया है। आज, भूटान एक ऐसे लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उभरा है, जो अपनी सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक मूल्यों को आधुनिकता के साथ संतुलित करता हैं।