2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य: जानें शुरुआती लक्षण और कारण

2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य: जानें शुरुआती लक्षण और कारण
Last Updated: 08 दिसंबर 2024

डब्ल्यूएचओ की ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2024 के अनुसार, साल 2023 में टीबी के 8.2 मिलियन नए मामले सामने आए। चौंकाने वाली बात यह है कि इन मामलों में से 26% यानी करीब 2.1 मिलियन केस अकेले भारत से दर्ज हुए हैं। यह आंकड़ा देश में टीबी की गंभीर स्थिति और इसे खत्म करने के लिए तेजी से कार्रवाई की जरूरत को दर्शाता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2025 तक देश से क्षय रोग (टीबी) को समाप्त करने की दिशा में कदम तेजी से बढ़ा दिए हैं। इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए मंत्रालय ने 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 347 उच्च प्राथमिकता वाले जिलों की पहचान की है। इन जिलों में विशेष रणनीतियां अपनाकर टीबी उन्मूलन के प्रयासों को और प्रभावी बनाया जाएगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अक्टूबर 2024 में जारी की गई वैश्विक क्षय रोग रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दुनिया भर में लगभग 8.2 मिलियन लोगों में टीबी का नया निदान हुआ। इनमें से करीब 26 प्रतिशत (लगभग 2.1 मिलियन) मामले भारत से रिपोर्ट किए गए हैं, जो कि इस महामारी के प्रति देश की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।

भारत ने टीबी उन्मूलन के लिए 2025 को लक्ष्य वर्ष के रूप में निर्धारित किया है, जो वैश्विक लक्ष्य 2030 से पांच साल पहले है। हालांकि, देश में टीबी के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र, विशेषज्ञों का मानना है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करना एक चुनौती बन सकता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय टीबी उन्मूलन के निर्धारित लक्ष्य को लेकर समय सीमा बढ़ाने पर विचार कर रहा है, हालांकि इस पर अभी अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा आगामी शनिवार को हरियाणा के पंचकूला से 100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान की शुरुआत करेंगे।

स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान में बताया गया कि यह अभियान राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत संचालित किया जाएगा, जिसका मुख्य उद्देश्य देश में टीबी की अधिसूचना और मृत्यु दर को कम करना है, साथ ही सरकार के टीबी उन्मूलन के संकल्प को मजबूत करना है।

यह पहल खासतौर पर टीबी के मामलों की त्वरित पहचान, निदान में देरी को घटाने और उच्च जोखिम वाले समूहों में इलाज के परिणामों को बेहतर बनाने पर केंद्रित है।

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