बारिश का मौसम जहां तन-मन को सुकून देता है, वहीं दूसरी ओर यह शरीर की मांसपेशियों और नसों के लिए नई चुनौतियाँ भी लेकर आता है। कई लोगों को इस समय अकड़न, झनझनाहट, जलन, सुन्नता और पुराने दर्दों की शिकायत होने लगती है। खासकर वे लोग जिन्हें पुरानी चोट, स्पॉन्डिलाइटिस, जोड़ों का दर्द या न्यूरो प्रॉब्लम है, उन्हें मानसून की नमी और ठंडक बहुत प्रभावित करती है।
एम्स (AIIMS) के आंकड़ों के अनुसार, बरसात के मौसम में न्यूरोलॉजिकल समस्याएं लगभग 22% तक बढ़ जाती हैं। ऐसे में योगगुरु स्वामी रामदेव का सुझाव है कि कुछ आसान व्यायाम, घरेलू उपाय और खानपान में बदलाव करके नसों को मजबूत बनाया जा सकता है और इन समस्याओं से राहत पाई जा सकती है।
क्यों बढ़ती हैं नसों की समस्याएं मानसून में?
बारिश के मौसम में वातावरण में नमी (ह्यूमिडिटी) बढ़ जाती है, तापमान घटता है और धूप की मात्रा कम हो जाती है। इससे शरीर के टिशूज में स्टिफनेस (जकड़न) आ जाती है। जब शरीर का ब्लड सर्कुलेशन धीमा पड़ता है, तो नसों और मांसपेशियों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की सप्लाई कम हो जाती है।
प्रमुख कारण:
- ह्यूमिडिटी: मसल्स में सूजन और नसों में जलन
- लो टेम्परेचर: ब्लड फ्लो स्लो, जिससे अकड़न
- धूप की कमी: विटामिन-D की कमी से मांसपेशियां कमजोर
- वर्कआउट में रुकावट: मसल्स निष्क्रिय हो जाती हैं
- डिहाइड्रेशन: नसों में ब्लड क्लॉटिंग का खतरा बढ़ता है
क्यों ज़रूरी है 'स्टेपर वर्कआउट'?
जब बारिश सुबह की वॉक या जॉग का रास्ता रोक दे, तब घर की सीढ़ियों या फोल्डेबल मिनी-स्टेपर से इंडोर कार्डियो किया जा सकता है। स्पोर्ट्स मेडिसिन विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ 15 मिनट की स्टेपर एक्सरसाइज़:
- कोर मसल्स को सक्रिय करती है, जिससे बैलेंस व फ़ॉल-प्रिवेंशन बेहतर होता है।
- न्यूरो-मस्कुलर कोऑर्डिनेशन बढ़ाती है; बुज़ुर्ग, घुटने या कमर दर्द वाले लोग भी आराम से कर सकते हैं।
- ब्लड पंपिंग तेज़ कर ऑक्सीजन और पोषक तत्व नसों तक पहुँचाती है, झनझनाहट कम होती है।
स्वामी रामदेव के आसान उपाय
स्वामी रामदेव कहते हैं कि मानसून में नसों को मजबूत रखने के लिए कुछ घरेलू उपायों और योगिक अभ्यासों को अपनाना बेहद जरूरी है।
1. स्टेपर वर्कआउट
बारिश के कारण अगर बाहर चलना संभव नहीं है तो घर पर स्टेपर या सीढ़ियों पर 15-20 मिनट चलने से कोर मसल्स एक्टिव रहते हैं। इससे नर्व्स में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है और झनझनाहट से राहत मिलती है।
2. योग और प्राणायाम
- अनुलोम-विलोम: नसों को शांत करता है
- कपालभाति: शरीर की आंतरिक गर्मी बढ़ाता है
- ताड़ासन व भुजंगासन: रीढ़ की हड्डी और नसों को मजबूती देते हैं
- शवासन: तनाव से राहत और मसल रिकवरी के लिए बेहतर
मांसपेशियों में ऐंठन और नसों में कमजोरी क्यों आती है?
- पानी की कमी: डिहाइड्रेशन से मसल्स में ब्लड सप्लाई घटती है
- पोषक तत्वों की कमी: खासकर सोडियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम
- लो ब्लड प्रेशर: नसों पर दबाव पड़ता है और ब्लड फ्लो बाधित होता है
- लंबे समय तक एक ही मुद्रा में बैठना: ऑफिस वर्कर्स में आम समस्या
खानपान में क्या शामिल करें?
मांसपेशियों और नसों को पोषण देने वाले खाद्य पदार्थ:
- लौकी, नींबू, संतरा: एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर
- मिक्स दालें: प्रोटीन और मिनरल्स का अच्छा स्रोत
- छाछ, लस्सी: इलेक्ट्रोलाइट संतुलन में सहायक
- आंवला: विटामिन-C और सूजन कम करने में मददगार
जीवनशैली की 5 गोल्डन रूल्स
- वज़न नियंत्रित रखें; अतिरिक्त भार नसों-जोड़ों पर दबाव डालता है।
- टाइट कपड़े और हाई-हील से बचें, ये पैरों के नर्व-एंडिंग दबाते हैं।
- कम नमक-कम चीनी नीति अपनाएँ; सूजन व वाटर रिटेंशन घटेगा।
- हर 45 मिनट पर डेस्क से उठें; माइक्रो-ब्रेक नसों का रक्तप्रवाह जगा देते हैं।
- गर्म तिल या नारियल तेल से सप्ताह में दो बार अभ्यंग मालिश करें; यह स्नायु और त्वचा, दोनों के लिए टॉनिक है।
कब जाएं डॉक्टर के पास?
- एक अंग लगातार सुन्न रहे या बिजली-सा झटका महसूस हो।
- सिंगल साइड चेहरे पर तेज़ दर्द या अचानक बोल-चल में दिक्कत।
- बुखार के साथ गर्दन कड़की—संभावित न्यूरो-इन्फेक्शन का संकेत।
- हाथ-पैरों में सूजन के साथ रंग नीला पड़ना—ब्लड क्लॉटिंग का खतरा।
बरसात राहत देती है, लेकिन ह्यूमिडिटी-ट्रिगर नर्व डिसऑर्डर का आंकड़ा बढ़ाती है। स्वामी रामदेव का योग-आहार कॉम्बो, आधुनिक फिज़ियोथेरपी की समझ और समय पर मेडिकल जांच—इन तीनों का तालमेल नसों को मजबूत बनाए रखता है। इस मौसम में कुछ सरल बदलाव—स्टेपर वर्कआउट, हर्बल इलेक्ट्रोलाइट, तिल-तेल अभ्यंग—आपकी झनझनाती नसों को चैन, अकड़न को आराम और जर्जर होती मांसपेशियों को नया जीवन दे सकते हैं। याद रखें, मॉनसून में चेतना रखेंगे तो नसें भी मस्त रहेंगी।