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अमेरिकी दबाव से राहत और ऊर्जा सुरक्षा के लिए सरकार सितंबर तक लाएगी तेल क्षेत्र में बड़े सुधार

अमेरिकी दबाव से राहत और ऊर्जा सुरक्षा के लिए सरकार सितंबर तक लाएगी तेल क्षेत्र में बड़े सुधार

सरकार सितंबर तक तेल एवं गैस क्षेत्र में बड़े सुधार लागू करेगी ताकि अमेरिकी दबाव का मुकाबला किया जा सके, ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हो और घरेलू उत्पादन व बायोफ्यूल को बढ़ावा मिले। इन कदमों से भारत को रूसी तेल आयात पर बढ़ते दबाव से राहत और इथेनॉल मिश्रण जैसे वैकल्पिक ईंधन को गति मिलने की उम्मीद है।

नई दिल्ली: भारत सरकार ने घोषणा की है कि सितंबर 2025 तक तेल और गैस क्षेत्र में बड़े सुधार लागू किए जाएंगे। इन सुधारों का उद्देश्य अमेरिकी दबाव को कम करना, ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना और घरेलू उत्पादन व बायोफ्यूल-इथेनॉल मिश्रण को बढ़ावा देना है। व्हाइट हाउस ने भारत पर रूसी तेल खरीद को लेकर दबाव बढ़ाया है, जबकि चीन और तुर्किये इससे कहीं अधिक आयात कर रहे हैं। सुधारों से विदेशी निवेश आकर्षित करने के साथ ही वैकल्पिक ईंधनों को बढ़ावा मिलेगा।

वैश्विक दबावों से निपटने की तैयारी

तेल आपूर्ति के मामले में भारत लंबे समय से पश्चिम एशिया पर निर्भर रहा है। लेकिन वहां बार-बार सशस्त्र संघर्ष और स्वेज नहर तथा होर्मुज जलडमरूमध्य जैसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर खतरे की वजह से तेल की लगातार और सुरक्षित आपूर्ति पर जोखिम बना रहता है। सरकार का मानना है कि अगर घरेलू स्तर पर उत्पादन और वैकल्पिक ईंधन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए तो इन दबावों से काफी हद तक निपटा जा सकता है।

अमेरिकी दबाव और रूस से तेल आयात

अमेरिका लगातार भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर दबाव बना रहा है। व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने हाल ही में एक लेख में आरोप लगाया कि भारत की तेल लॉबी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध के लिए फंड मुहैया करा रही है। उन्होंने दावा किया कि भारत की रिफाइनिंग कंपनियां रियायती रूसी तेल के जरिए देश को एक बड़े रिफाइनिंग केंद्र में बदल रही हैं। इसे व्यापक रूप से भारत पर रूस से तेल खरीदना बंद करने के दबाव के रूप में देखा गया।

हालांकि भारतीय अधिकारी साफ कर चुके हैं कि देश की रिफाइनिंग कंपनियां किस देश से तेल खरीदेंगी, यह उनका व्यावसायिक निर्णय है और सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं करती। उन्होंने यह भी कहा कि रूसी तेल पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है, जैसा कि ईरान या वेनेजुएला पर है।

चीन और तुर्किये पर सवाल क्यों नहीं

भारत की ओर से यह तर्क भी दिया गया है कि नवारो ने जानबूझकर चीन और तुर्किये का नाम नहीं लिया। जबकि हकीकत यह है कि रूस से सबसे ज्यादा तेल और गैस चीन खरीद रहा है। फिनलैंड के थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन युद्ध के तीसरे वर्ष में चीन ने रूस से 90 अरब डॉलर से अधिक के जीवाश्म ईंधन खरीदे हैं। यह भारत की तुलना में 60 प्रतिशत ज्यादा है। वहीं तुर्किये ने इसी अवधि में 41 अरब डॉलर के रूसी जीवाश्म ईंधन खरीदे। भारत सरकार के मुताबिक इन तथ्यों को नजरअंदाज करना अमेरिका के दोहरे मानदंड को दिखाता है।

कानूनी ढांचे में सुधार

सरकार ने हाल ही में तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1948 में संशोधन किया है। इसके तहत तैयार मसौदा नियमों की कुछ ही हफ्तों में जांच पूरी हो जाएगी। इसके बाद इन्हें लागू किया जाएगा। ये नियम विदेशी कंपनियों जैसे शेवरॉन, एक्सॉन और टोटल पर भी लागू होंगे, जो भारत के 10वें ड्रिलिंग दौर में संभावित प्रतिभागी हो सकती हैं। इसका मकसद विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है ताकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए ज्यादा आत्मनिर्भर हो सके।

बायोफ्यूल और इथेनॉल पर जोर

सरकार का मानना है कि इथेनॉल मिश्रण न केवल आयातित तेल पर निर्भरता कम करेगा बल्कि वायु प्रदूषण को भी घटाएगा। फिलहाल भारत में पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण (ई20) का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन अब सरकार इसे और आगे ले जाने की तैयारी में है। एक अंतर-मंत्रालयी समिति सितंबर तक अपनी सिफारिशें देगी। इसमें इथेनॉल मिश्रण को ई22, ई25 और ई27 तक बढ़ाने के चरणबद्ध विकल्प शामिल होंगे।

अधिकारी ने स्पष्ट किया कि इथेनॉल पर चल रही बहस सरकार की योजनाओं को नहीं रोक पाएगी। फ्लेक्स-फ्यूल इंजन वाले वाहन, जो 100 प्रतिशत इथेनॉल पर भी चल सकते हैं, भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति का हिस्सा होंगे।

घरेलू उत्पादन की बढ़ती जरूरत

भारत की ऊर्जा खपत लगातार बढ़ रही है। मौजूदा समय में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। ऐसे में घरेलू उत्पादन बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है। सरकार चाहती है कि निजी और विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित किया जाए। यही वजह है कि सुधारों में पारदर्शिता और आसान नियमों पर जोर दिया जा रहा है।

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