बक्सर जिले में भूमि सर्वेक्षण के दौरान कैथी भाषा के पुराने अभिलेख एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। कैथी भाषा में लिखे गए अभिलेख जैसे कि खतियान, जमीन की रजिस्ट्री, और जमींदारों के हुकुमनामे को पढ़ने और समझने के लिए विशेषज्ञों की कमी है। यह समस्या भूमि स्वामित्व और वंशावली से संबंधित दस्तावेजों का मिलान करने में कठिनाई पैदा कर रही हैं।
बक्सर: बिहार के बक्सर जिले में भूमि सर्वेक्षण के दौरान कैथी भाषा के अभिलेख वास्तव में एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत कर रहे हैं। कैथी भाषा में लिखे गए खतियान, जमीन की रजिस्ट्री, जमींदारों के हुकुमनामे और अन्य दस्तावेज़ भूमि स्वामित्व और वंशावली की जांच में कठिनाई पैदा कर रहे हैं, क्योंकि इस भाषा को पढ़ने और समझने वाले विशेषज्ञों की कमी है। बक्सर जिले में कई मौजे और क्षेत्रों में पुराने खतियान और अन्य भूमि संबंधी कागजात कैथी भाषा में हैं। इन अभिलेखों का उपयोग भूमि स्वामित्व और प्रशासनिक मामलों के लिए किया जाता है, लेकिन आज की तारीख में इस भाषा को समझने वाले लोग बहुत कम हैं।
शाहाबाद (अब बक्सर जिला) में भूमि सर्वेक्षण का पहला प्रयास वर्ष 1909-10 में किया गया था। अंग्रेजी शासन काल में कैथी भाषा को सरकारी और न्यायालय के कामकाज के लिए लागू किया गया था, इसलिए उस समय के कैडस्टल सर्वे, खतियान और अन्य दस्तावेज़ कैथी भाषा में ही लिखे गए।
कैथी भाषा बनी बड़ी समस्या
अधिवक्ता प्रभाकर पांडे और राजेंद्र प्रसाद के अनुसार आजादी के बाद के छठे दशक तक सरकारी कामकाज में कैथी भाषा का उपयोग होता रहा और उस समय के अधिकांश सरकारी कागजात कैथी भाषा में ही लिखे गए थे। न्यायालयों में जब कैथी भाषा के अभिलेख प्रस्तुत होते हैं, तो उनका अनुवाद कराया जाता है। लेकिन बक्सर जिले में इस भाषा को समझने वाले केवल दो-तीन विशेषज्ञ ही हैं।
जमीन मालिकों की बढ़ी परेशानी
बिहार में भूमि सर्वेक्षण (Bihar Bhumi Survey 2024) के दौरान कैथी भाषा के अभिलेख एक गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। विशेषकर ब्रह्मपुर अंचल के नैनीजोर, महुआर, चक्की जैसी पंचायतों में, जहां पुराने दस्तावेज़ कैथी भाषा में हैं, यह समस्या और भी पेचीदा हो जाती है। इन अभिलेख के कारण जमीन मालिक की परेशानी भी बढ़ा दी हैं।
भूमि सर्वेक्षण की समस्याएं और उनका उपाय
* भाषा की अज्ञता: सर्वेक्षण करने वाले अधिकारी और अमीन के पास कैथी भाषा की जानकारी नहीं है, जिससे वे इन अभिलेखों को सही तरीके से समझ और संसाधित नहीं कर पा रहे हैं।
* पुराने दस्तावेज़: 1970 से पहले खरीदी गई ज़मीन का सर्वे नहीं हुआ है, और उस समय के अभिलेख कैथी भाषा में हैं। इनमें खतियान, राजस्व अभिलेख, और जमीन की रजिस्ट्री शामिल हैं।
* रैयत की परेशानी: जो रैयत परंपरागत रूप से अपने कागजात के बारे में जानकारी रखते हैं, वे खुद पढ़ और लिख नहीं सकते। जब उन्हें अनुवाद की जरूरत होती है, तो इसके लिए उन्हें काफी खर्च करना पड़ता है।
* गड़बड़ी और दावे: 1970 के बाद हुए सर्वे में कई बार गलतफहमियों या गड़बड़ियों के कारण ज़मीनें बिहार सरकार या अन्य व्यक्तियों के नाम कर दी गई हैं। पुराने कैथी भाषा के खतियान के आधार पर दावे करना मुश्किल हो रहा है।
समाधान के उपाय:
* भाषा विशेषज्ञों की नियुक्ति: कैथी भाषा के जानकार विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाए जो इन अभिलेखों का अनुवाद और विश्लेषण कर सकें।
* डिजिटल संसाधन: कैथी भाषा के अभिलेखों को डिजिटल रूप में परिवर्तित करके और उनका अनुवाद कराकर इन्हें आसानी से सुलभ बनाया जा सकता है।
* प्रशिक्षण और वर्कशॉप: भूमि सर्वेक्षण करने वाले अधिकारियों और अमीनों को कैथी भाषा की जानकारी देने के लिए विशेष प्रशिक्षण और वर्कशॉप आयोजित किए जा सकते हैं।
* कृषक सहायता केंद्र: किसानों को अनुवाद सेवाओं के लिए एक सहायता केंद्र स्थापित किया जा सकता है, जिससे उन्हें उचित और किफायती सेवाएं मिल सकें।
* सरकारी पहल: बिहार सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कैथी भाषा के अभिलेखों के अनुवाद और उचित प्रबंधन के लिए नीति बनानी चाहिए।