ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी और और बीजू जनता दल के बीच गठबंधन को लेकर अटकलें चल रही है. इसी बीच गुरुवार (७ मार्च) को राजनीति ने एक नया मोड़ ले लिया है. भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय कुमार महापात्र के बेटे अरविंद कुमार महापात्र ने बीजद का दामन थम लिया है. अरविंद ने भुवनेश्वर नवीन निवास में पार्टी के महानायक नवीन पटनायक से मुलाकात कर बीजद में शामिल होकर सदस्यता ग्रहण की। उन्होंने कहां कि पाटकुरा की सेवा के लिए मुझे एक मंच चाहिए था जो केवल BJD ही दे सकता हैं।
Subkuz.com को पार्टी सूत्रों से ज्ञात जानकारी के अनुसार BJD की सदस्यता ग्रहण करने के बाद अरविंद महापात्र ने कहां कि में वर्ष 2019 से पाटकुरा क्षेत्र के लोगों की सच्चे दिल से सेवा कर रहा हूं. लेकिन मुझे उनके विकास के लिए एक ऐसे मंच की जरूरत है, जहां से इस क्षेत्र उन्नति कर सकूं। उन्होंने कहां कि मैंने पार्टी में शामिल होने से पहले पाटकुरा के मतदाताओं और अपने पिता से आशीर्वाद लिया है. सभी के साथ वार्तालाप करने के बाद रजामंदी होने पर ही BJD की सदस्यता ग्रहण की हैं।
बीजू पटनायक के करीबी है अरविंद के पिता
अरविंद पटनायक ने मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक को धन्यवाद देते हुए कहां कि उन्होंने मुझे बीजद के साथ मिलाकर लोगों की सेवा करने का एक सुनहरा अवसर दिया। मुझे इस बात की पक्की उम्मीद है कि पाटकुरा क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे पाऊंगा। बताया गया है कि केंद्रपाड़ा में पाटकुरा विधानसभा क्षेत्र उनके पिता विजय कुमार महापात्र का राजनीतिक गृह क्षेत्र (चुनावी गढ़) है. विजय कुमार महापात्र को ओडिशा की राजनीति में महान दिग्गज नेता माना जाता है. विजय महापात्र बीजू जनता दल (बीजद) के संस्थापक सदस्य और दिवंगत (स्वर्गीय) सीएम बीजू पटनायक के बहुत करीबी रह चुके हैं।
विजय महापात्र महान और शक्तिशाली नेता
जानकारी के अनुसार स्वर्गीय सीएम बीजू पटनायक के समय में विजय महापात्र इतने महान शक्तिशाली थे कि लोग उन्हें सुपर मुख्यमंत्री कहने लगे थे। लेकिन बीजू पटनायक की मौत के बाद बीजद में उनका वर्चस्व कम हो गया। वर्ष 2000 में विजय महापात्र को चुनाव लड़ने और पाटकुरा से टिकट नहीं देने का निर्णय लिया गया।
जानकारी के मुताबिक वर्ष 2004 में ओडिशा गण परिषद के उम्मीदवार के रूप में विजय महापात्र ने पाटकुरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था लेकिन विपक्षी उम्मीदवार अतनु सब्यसाची ने उन्हें मात दे दी। इस चुनाव के बाद विजय को लगातार वर्ष 2009, वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में उन्हें हार के साथ निराशा का सामना करना पड़ा था।