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जस्टिस वर्मा केस: आग में झुलसी साख या सिस्टम की मजबूरी? दिल्ली पुलिस की चौंकाने वाली सफाई

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दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने के बाद एक गंभीर मामले ने तूल पकड़ लिया है, जिसमें नकदी मिलने का मुद्दा उठ रहा है। इस मामले में जांच कमेटी द्वारा पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की गई। 

Justice Yashwant Varma Cash: 14 मार्च 2024 की रात दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर लगी आग ने एक नया मोड़ लिया जब घटनास्थल पर नकदी के जले हुए नोटों के टुकड़े मिले। इस घटना ने न केवल न्यायपालिका के उच्चतम स्तर पर गंभीर सवाल उठाए, बल्कि पुलिस की कार्यप्रणाली और जवाबदेही को लेकर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना की जांच के लिए गठित तीन जजों की कमेटी ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से विस्तृत पूछताछ की, जिसके बाद यह मामला और जटिल हो गया। 

पुलिस ने अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने FIR दर्ज न होने की वजह से नकदी जब्त नहीं की और सीनियर अधिकारियों के कहने पर वीडियो डिलीट किया। अब इस मामले में उठ रहे सवालों के जवाब तो जांच के बाद ही मिलेंगे, लेकिन क्या पुलिस की सफाई वाजिब है? इस पूरी घटना को समझते हैं।

जस्टिस वर्मा के घर में मिले नकदी के टुकड़े

जस्टिस वर्मा के घर पर आग लगने के बाद, जब आग बुझाई गई तो वहां से जले हुए नोटों के टुकड़े मिले, जो इस घटना को और संदिग्ध बना दिया। घटनास्थल पर पुलिस और फायर सर्विस के अधिकारियों ने पाया कि स्टोर रूम में कैश था, लेकिन जस्टिस वर्मा ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को बताया कि उन्हें घर में कोई कैश नहीं दिखाया गया। यही विरोधाभास मामले को और पेचीदा बना रहा है।

पुलिस का बयान

इस पूरे मामले की जांच के लिए बनाई गई तीन जजों की कमेटी ने जब दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से पूछा कि उन्होंने घर से मिले नकदी को क्यों जब्त नहीं किया, तो उनका जवाब था कि "FIR दर्ज नहीं हुई थी, इसलिए नकदी जब्त नहीं की गई"। पुलिस अधिकारियों का कहना था कि ड्यू प्रोसेस का पालन करते हुए मामले को उनके सीनियर अधिकारियों तक भेजा गया था।

पुलिस ने यह भी बताया कि चूंकि मामला एक उच्च न्यायिक अधिकारी से संबंधित था, इसलिए FIR दर्ज करने से पहले भारत के चीफ जस्टिस (CJI) से सलाह लेनी होती है। यही कारण था कि उन्होंने मामले को सीनियर अधिकारियों तक पहुंचाया, जिन्होंने बाद में दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. के. उपाध्याय को और फिर CJI संजीव खन्ना को इस बारे में सूचित किया।

वीडियो को क्यों डिलीट किया गया?

जांच कमेटी ने जब यह पूछा कि घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचे पुलिसकर्मियों के फोन से वीडियो क्यों डिलीट किया गया, तो पुलिस अधिकारियों ने इसका भी स्पष्टीकरण दिया। उनका कहना था कि "सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर वीडियो डिलीट किया गया था ताकि वह गलत हाथों में न पड़ें।" पुलिस का तर्क था कि वीडियो के गलत हाथों में जाने से न्यायपालिका की गरिमा पर असर पड़ सकता था, इसलिए इसे डिलीट करना जरूरी था।

लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह कदम सही था? क्या इस वीडियो को सुरक्षित रखने के लिए कोई और तरीका नहीं था, जिससे वह सार्वजनिक न हो लेकिन उसके प्रमाण सुरक्षित रहते?

जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर और सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता

यह घटना एक और महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंची जब सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की। इसके साथ ही CJI संजीव खन्ना ने आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, जो मामले की गंभीरता को देखते हुए निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए गठित की गई।

इस पूरे मामले में गृह मंत्री अमित शाह का भी बयान आया। उन्होंने कहा कि "FIR दर्ज करने की अनुमति CJI से लेनी होती है", जो एक और महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करता है। अगर एक जज के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए CJI की अनुमति जरूरी होती है, तो क्या यह व्यवस्था न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल खड़ा नहीं करती?

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