International Day for Preventing the Exploitation of the Environment in War and Armed Conflict 2024: संघर्ष से पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा की ओर एक अह

International Day for Preventing the Exploitation of the Environment in War and Armed Conflict 2024: संघर्ष से पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा की ओर एक अह
Last Updated: 06 नवंबर 2024

हर साल 6 नवंबर को युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि युद्ध और सशस्त्र संघर्ष केवल मानव जीवन को प्रभावित करते हैं, बल्कि उनका पर्यावरणीय प्रभाव भी बेहद गंभीर और दूरगामी होता है। इस दिन का उद्देश्य युद्धों के दौरान पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए वैश्विक प्रयासों को प्रोत्साहित करना और शांति की दिशा में सकारात्मक कदम उठाना है।

युद्ध और पर्यावरण के बीच कनेक्शन एक गहरी समझ

1. प्राकृतिक संसाधनों का दोहन

युद्ध के दौरान प्राकृतिक संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए अक्सर संघर्ष होते हैं। इन संसाधनों में जल, ऊर्जा, खनिज, भूमि, और वनस्पतियाँ शामिल हैं। युद्धों के कारण इन संसाधनों का अत्यधिक शोषण होता है, जो पर्यावरणीय असंतुलन पैदा करता है।

खनिज और तेल का दोहन: युद्धों के दौरान, जैसे कि इराक युद्ध में, तेल के स्रोतों को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष हुआ था। यह केवल संसाधनों का शोषण करता है, बल्कि पर्यावरणीय प्रदूषण का कारण भी बनता है।

वनों और जलस्रोतों का विनाश: शत्रुता के दौरान, सैन्य बल अक्सर जलस्रोतों को प्रदूषित करते हैं और जंगलों को नष्ट करते हैं ताकि दुश्मन को संसाधनों से वंचित किया जा सके।

2. प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति

वायुमंडलीय प्रदूषण: युद्धों के दौरान विस्फोटकों, रॉकेटों, और अन्य हथियारों के उपयोग से बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है। इन हथियारों के रसायन वायुमंडल में मिलकर ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

जल प्रदूषण: संघर्ष के दौरान नदियाँ, झीलें, और अन्य जल स्रोत युद्ध सामग्री, तेल, और अन्य प्रदूषकों से भर जाते हैं। इससे जल जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को गहरा नुकसान होता है।

3. विनाशकारी हथियारों और युद्ध सामग्री का प्रभाव

युद्धों के दौरान उपयोग किए जाने वाले विनाशकारी हथियार, जैसे रासायनिक और जैविक हथियार, अत्यधिक खतरनाक होते हैं। ये केवल मानव जीवन को खतरे में डालते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।

रासायनिक युद्ध सामग्री: रासायनिक हथियारों का प्रयोग मिट्टी और पानी में जहरीले तत्व छोड़ सकता है, जिससे उन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी नष्ट हो जाती है और वहाँ जीवन के अस्तित्व पर संकट सकता है।

न्यूक्लियर हथियार: परमाणु युद्ध का पर्यावरण पर अत्यधिक असर होता है, जिससे रेडियोधर्मी तत्वों का प्रदूषण फैलता है और जीवन के लिए अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश होता है।

4. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट

युद्धों के कारण पर्यावरण में संकट आने से जलवायु परिवर्तन में भी योगदान होता है। युद्धों के दौरान भारी मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल जलवायु पर भी प्रभाव डालता है।

कार्बन उत्सर्जन: युद्धों के दौरान परिवहन, हथियारों का निर्माण, और सैन्य उपकरणों का उपयोग बड़े पैमाने पर ऊर्जा की खपत करता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है।

वृक्षों और जंगलों का नुकसान: युद्धों में वनों की अंधाधुंध कटाई होती है, जिससे कार्बन अवशोषण की क्षमता घट जाती है और ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है।

5. मानव जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

जब पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है, तो यह केवल जानवरों और पौधों को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि मानव जीवन भी उससे प्रभावित होता है। प्रदूषित जल, जहरीली मिट्टी, और नष्ट हुई कृषि भूमि लोगों के लिए भोजन और पानी की आपूर्ति की समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं।

मूलभूत संसाधनों की कमी: युद्धों के बाद भूमि और जलस्रोत नष्ट हो जाते हैं, जिससे क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा, पानी की आपूर्ति, और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आती है।

आवासीय नुकसान: युद्ध के कारण बने हुए प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र के संकट से क्षेत्रों में मानव जीवन के लिए रहने योग्य स्थिति कम हो जाती है।

6. पर्यावरणीय बहाली और पुनर्निर्माण

युद्ध के बाद पर्यावरणीय पुनर्निर्माण अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। संसाधनों के नष्ट होने के बाद, पुनर्निर्माण प्रक्रिया में केवल बुनियादी ढाँचे की बहाली शामिल होती है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्स्थापना भी एक प्रमुख लक्ष्य होता है। युद्ध के बाद पुनर्निर्माण के दौरान, पर्यावरणीय संतुलन बहाल करने के प्रयासों को प्राथमिकता देना चाहिए।

International Day for Preventing the Exploitation of the Environment in War and Armed Conflict का इतिहास

अंतर्राष्ट्रीय युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने का दिवस (International Day for Preventing the Exploitation of the Environment in War and Armed Conflict) प्रत्येक वर्ष 6 नवम्बर को मनाया जाता है। यह दिन युद्ध और सशस्त्र संघर्षों में पर्यावरणीय नुकसान और शोषण की गंभीरता को उजागर करता है, साथ ही इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

इस दिवस का इतिहास

इस दिवस की शुरुआत 5 नवंबर 2001 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। संयुक्त राष्ट्र ने 6 नवंबर को इस दिन के रूप में मनाने का निर्णय लिया, ताकि दुनिया भर में इस तथ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके कि युद्ध और सशस्त्र संघर्ष केवल मानव जीवन को ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्रों को भी गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संसद के संकल्प /आरईएस/56/4 के तहत इस दिन को घोषित किया था, ताकि पर्यावरणीय क्षति के कारण होने वाले प्रभावों से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें और इस प्रकार के शोषण को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्रवाई की जा सके।

युद्ध और पर्यावरण का संबंध

सैन्य संघर्षों में पर्यावरणीय संसाधनों का शोषण अक्सर किया जाता है। युद्ध के दौरान केवल मानव जीवन को हानि होती है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनोंजैसे पानी, भूमि, वन, और वन्य जीवनका भी अत्यधिक दोहन किया जाता है। युद्ध में संसाधनों का शोषण या नष्ट करना युद्ध का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक हिस्सा बन सकता है। उदाहरण के लिए, युद्ध के दौरान पानी के स्रोतों को प्रदूषित करना, फसलों को नष्ट करना, जंगलों को जलाना, और मृदा को जहरीला बनाना आम प्रथाएँ हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने पाया है कि पिछले 60 वर्षों में, 40 प्रतिशत से अधिक आंतरिक संघर्ष प्राकृतिक संसाधनों के शोषण से जुड़े थे, चाहे वह लकड़ी, हीरे, सोने या तेल जैसे मूल्यवान संसाधन हों, या पानी और उपजाऊ भूमि जैसे आवश्यक संसाधन हों। इन संघर्षों में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन उन क्षेत्रों में और अधिक संघर्षों का कारण बन सकता है, जो पहले से ही गरीबी और असुरक्षा से जूझ रहे हैं।

International Day for Preventing the Exploitation of the Environment in War and Armed Conflict का महत्व

यह दिवस युद्धों और संघर्षों के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। पर्यावरण के शोषण का असर केवल युद्ध प्रभावित देशों पर पड़ता है, बल्कि यह पूरे ग्रह को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि प्राकृतिक संसाधन और पारिस्थितिकी तंत्र सीमित होते हैं और उनका नुकसान आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को वैश्विक स्तर पर मनाने की शुरुआत की ताकि सरकारों, संगठनों और नागरिकों को यह याद दिलाया जा सके कि पर्यावरण को बचाना भी शांति स्थापित करने का एक अहम हिस्सा है। यदि पारिस्थितिकी तंत्र और संसाधनों का शोषण किया जाता है, तो यह केवल आर्थिक नुकसान का कारण बनेगा, बल्कि समाजों के लिए स्थायी शांति की स्थापना भी मुश्किल हो जाएगी।

सामाजिक और वैश्विक प्रभाव

इस दिवस का उद्देश्य यह है कि युद्ध और सशस्त्र संघर्षों में पर्यावरणीय नुकसान को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर जागरूकता और कार्यवाही को बढ़ावा दिया जाए। यह शांति और स्थिरता के निर्माण में प्राकृतिक संसाधनों की भूमिका को मान्यता देने के साथ-साथ युद्ध के बाद शांति निर्माण के समय में पर्यावरण के उचित प्रबंधन की आवश्यकता को भी उजागर करता है।

इसके साथ ही, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इस दिन के आयोजन के दौरान, सरकारी, गैर-सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ इस मुद्दे पर अपने दृष्टिकोण और उपायों पर चर्चा करें और समाधान खोजने के लिए साझा पहल करें।

आगे की दिशा

संकट के बाद पुनर्निर्माण: जब युद्ध या संघर्ष के बाद क्षेत्रों में पुनर्निर्माण कार्य होते हैं, तो वहां के प्राकृतिक संसाधनों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है। यह सुनिश्चित करना कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो और पुनर्निर्माण के प्रयास पर्यावरणीय स्थिरता की ओर बढ़े, महत्वपूर्ण है।

कानूनी पहल: संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं देशों को पर्यावरणीय सुरक्षा और संरक्षण के लिए कानून बनाने की दिशा में मार्गदर्शन कर रही हैं। युद्ध के दौरान पर्यावरणीय नुकसान को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी नियमों की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जिससे इन शोषणों को रोका जा सके।

महिलाओं की भागीदारी: युद्धों और संघर्षों के बाद शांति स्थापना में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी से पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्निर्माण में मदद मिल सकती है। महिलाएं अक्सर अपनी भूमिका में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अधिक जागरूक होती हैं, इसलिए महिलाओं को इस प्रक्रिया में शामिल करना आवश्यक है।

पर्यावरणीय शोषण की रोकथाम के लिए रणनीतियाँ

संघर्ष के दौरान प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता

पर्यावरण को बचाने के लिए, युद्धों के दौरान प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता देना जरूरी है। यह केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करता है, बल्कि युद्ध के बाद शांति स्थापना और पुनर्निर्माण प्रक्रिया को भी सुगम बनाता है।

संघर्ष निवारण और शांति निर्माण के लिए सहायक उपाय

शांति स्थापना के दौरान, पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने ऐसे कदमों की सिफारिश की है, जो संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में संसाधनों के समुचित प्रबंधन और पारिस्थितिकी प्रणालियों की बहाली को प्रोत्साहित करें।

महिलाओं की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र महिला (यूएन महिला) और यूएनडीपी ने यह पहचाना है कि महिलाएं संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाओं को इस प्रक्रिया में शामिल करके पर्यावरणीय प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है, जो शांति स्थापना और पुनर्निर्माण में सहायक होगा।

इस दिन को मनाने के तरीके

जागरूकता फैलाना

इस दिन को मनाने का सबसे प्रभावी तरीका है लोगों को पर्यावरणीय शोषण के प्रभाव और इसके निवारण के उपायों के बारे में जागरूक करना। सोशल मीडिया, सार्वजनिक स्थानों, और समुदायों में इस मुद्दे पर चर्चा करें।

शांति और पर्यावरण संरक्षण के लिए अभियान चलाना

विभिन्न संगठनों और संस्थाओं को एकजुट करके शांति और पर्यावरण संरक्षण के लिए अभियान चलाना जरूरी है। इन अभियानों के माध्यम से हम पर्यावरणीय सुरक्षा की दिशा में ठोस कदम उठा सकते हैं।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए कदम उठाना

व्यक्तिगत स्तर पर भी हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अपने दैनिक जीवन में बदलाव ला सकते हैं। पानी का संरक्षण, ऊर्जा की बचत, और पर्यावरणीय मित्रता को बढ़ावा देना इन बदलावों का हिस्सा हो सकता है।

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