हिसार: मलेरिया और डेंगू पर लगेगी लगाम, कम होगी मच्छरों की आबादी, GJU की पीएचडी छात्रा ने किया शोध
देश में मच्छरों की आबादी बढ़ने के साथ-साथ बीमारियां भी बढ़ रही है. इसे देखते हुए हरियाणा के हिसार के GJU (गुरू जंभेश्वर विश्वविद्यालय) की पीएचडी छात्रा ने शोध किया है. जिसके तहत मच्छरों क आबादी और बढ़ने वाली बीमारियों को कम किया जा सकता है. बताया कि क्रिस्पर टेक्नोलॉजी (जीन एडिटिंग) का उपयोग किसी जीव-जंतु के जीनों में परिवर्तन करने के लिए किया जाता है. इस तकनीक के माध्यम से मच्छरों में प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले ट्रांसफेरिन प्रोटीन को कम किया जा सकेगा।
हिसार केGJU (गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय) की माइक्रोबायोलाजी की पीएचडी छात्रा डॉ. ज्योति के शोध से इस बात का पता लगाया कि इस तकनीक से मच्छरों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी आबादी कम होगी और मलेरिया जैसी बीमारियों को भी कम किया जाएगा। डॉ. ज्योति के शोध को यूएसएस के इंटरनेशनल जर्नल प्लोस वन ने प्रथम स्थान दिया और एसोसिएशन आफ माइक्रोबायोलाजिस्ट की ओर से यंग साइंटिस्ट का अवार्ड दिया हैं।
मच्छरों को एनेस्थीसिया देकर किया शोध
जानकारी के अनुसार डॉ. ज्योति ने दिल्ली के मलेरिया इंस्टीट्यूट की लैब में पांच पीढ़ी के 150 मच्छरों पर दो साल तक अध्ययन किया। डॉ. ज्योति ने GJU में बायो एंड नैनो विभाग की प्रो. नमिता और दिल्ली में द्वारका नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया में डॉ. रजनीकांत दीक्षिता के अंडर रहकर काम किया। डॉ. ज्योति ने बताया कि मच्छरों में ट्रांसफेरिन प्रोटीन पाया जाता है, जिससे उनकी प्रजनन क्षमता को घटाया और बढ़ाया जा सकता हैं।
बताया कि मच्छरों को कोल्ड एनीस्थीसिया देकर पहले बेहोश किया गया। उसके बाद मच्छरों में ट्रांसफेरिन प्रोटीन को चेक करने के लिए मच्छरों के शरीर से राइबो न्यूक्लिक एसिड निकालकर उनकी पीसीआर मशीन में जांच की गई. जांच में पाया कि मादा मच्छरों में अंडे देने की क्षमता चार गुना तक घट गई। सामान्य तौर पर मादा मच्छर 150 अंडे देती है, लेकिन ट्रांसफेरिन प्रोटीन को कम के बाद मच्छरों ने महज 30 से 40 अंडे ही दिए तथा कुछ मच्छरों ने तो केवल सात अंडे ही दिए हैं।
भारत में मच्छरों की 6 प्रजातियां
गुरू जंभेश्वर विश्वविद्यालय की पीएचडी छात्रा डा. ज्योति ने Subkuz.com के पत्रकार को बताया कि भारत में मच्छरों की 6 प्रजातियां पाई जाती है. इनमें एनोफ्लीज क्यूलिसीफेसिस, स्टीफेंसी, फ्लुवियाटिलिस, मिनिमस, डायरस और बैगाई प्रजातियां शामिल है. डा. ज़्योति ने बताया कि उनके सामने एक सवाल था कि मच्छर के काटने से मलेरिया इंसानों को होता है लेकिन मच्छर को क्यों नहीं होता। इस बात को ध्यान में रखते हुए डॉ ज्योति ने मच्छर की ब्लड सैल पर शोध किया।