Maharashtra Election 2024: भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला, भाजपा की सीटें घटने का डर, विदर्भ को लेकर क्या है पार्टियों की रणनीति?

Maharashtra Election 2024: भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला, भाजपा की सीटें घटने का डर, विदर्भ को लेकर क्या है पार्टियों की रणनीति?
Last Updated: 24 अक्टूबर 2024

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव 2024 में विदर्भ क्षेत्र सत्ता की कुंजी बनकर उभर रहा है। विदर्भ का समर्थन जिस पार्टी को मिलता है, वह राज्य की सत्ता के करीब पहुंच जाती है। भाजपा के नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं ने यहां विकास के कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, लेकिन इसके बावजूद क्या भाजपा की सीटों में गिरावट आ रही है?

Maharashtra Election: महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र, जिसकी 62 विधानसभा सीटें हैं, चुनावी समीकरणों में निर्णायक भूमिका निभाता है। यह क्षेत्र जिस दल का समर्थन करता है, वह सत्ता के करीब पहुंच जाता है। 10 लोकसभा और 62 विधानसभा सीटों वाले इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। कांग्रेस का यह गढ़ माना जाता था, लेकिन राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद भाजपा ने यहां अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं। नागपुर, जहां आरएसएस का मुख्यालय है, से नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे भाजपा के बड़े नेता उभरे हैं। इस चुनाव में दोनों दल विदर्भ पर कब्जा करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

विदर्भ क्षेत्र पर लोगों की प्रतिक्रिया

विदर्भ क्षेत्र में नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे बड़े नेताओं के नेतृत्व में कई विकास कार्य हुए हैं, जिसे लोग भी स्वीकार करते हैं। गडकरी लगातार तीसरी बार नागपुर से सांसद चुने गए हैं। इसके बावजूद, पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा की सीटें विदर्भ में घटकर पांच से दो रह गईं, जो 2009 के स्तर पर पहुंच गई हैं। यह स्थिति चुनावी विश्लेषकों और जनता के बीच एक बड़ा सवाल पैदा कर रही है: "अगर विकास हुआ है, तो भाजपा की सीटें क्यों घट रही हैं?"

विदर्भ क्षेत्र का इतिहास

विदर्भ क्षेत्र का इतिहास यह बताता है कि जो पार्टी इस क्षेत्र का समर्थन प्राप्त करती है, वही महाराष्ट्र की सत्ता के करीब पहुंचती है। पिछले 10 वर्षों का अनुभव इसे स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

2014 में, भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने विदर्भ की सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थीं। इसके छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में, हालांकि भाजपा और शिवसेना अलग-अलग चुनाव लड़े, भाजपा ने क्षेत्र की 62 में से 44 सीटें हासिल कीं। इस प्रकार, भाजपा ने राज्य में 122 सीटें जीतकर पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की।

लेकिन 2019 में, जब भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, तो पार्टी की सीटें घटकर 29 पर सिमट गईं, जिससे उसकी कुल सीटों की संख्या 105 तक पहुंची। शिवसेना के कांग्रेस-राकांपा के साथ जाने से भाजपा सत्ता से दूर रह गई।

अब 2024 के लोकसभा चुनाव में विदर्भ में भाजपा की केवल दो सीटें आई हैंएक नागपुर से नितिन गडकरी और दूसरी अकोला से, जो पारंपरिक रूप से भाजपा की जीतने वाली सीट रही है। यहां तक कि प्रकाश आंबेडकर के चुनावी मैदान में आने का भी असर देखने को मिला।

इस बार कैसा रहेगा चुनावी परिणाम?

भाजपा के लिए विदर्भ में चुनाव परिणामों के संकेत अच्छे नहीं कहे जा सकते। हालांकि, भाजपा के नेता इस बात पर विश्वास नहीं करते कि लोकसभा के नतीजे विधानसभा में भी दोहराए जाएंगे। भाजपा प्रवक्ता अजय पाठक का कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मुद्दे अलग होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने संविधान में बदलाव और आरक्षण समाप्त करने का भ्रम फैलाकर लाभ लिया था, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं होगी।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, जो विदर्भ की कामटी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, ने केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि नागपुर जैसे बड़े शहर भाजपा के विकास कार्यों को देख रहे हैं। कभी नक्सलवाद के लिए कुख्यात रहे गढ़चिरौली जिले में भी अब उद्योग आ रहे हैं, जिससे वहां के युवाओं को रोजगार मिलने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

अमरावती को टेक्सटाइल उद्योग का केंद्र बनाने के प्रयास भी भाजपा सरकार द्वारा किए जा रहे हैं, जिससे विदर्भ और मराठवाड़ा के कपास उत्पादक किसानों के उत्पादों की खपत बढ़ सकेगी। इसके अलावा, हाल ही में शुरू की गई मुख्यमंत्री लाडली बहिन योजना भी प्रभावी साबित हो रही है। भाजपा को उम्मीद है कि राज्य की लाभार्थी बहनें इस चुनाव में उनकी मदद करेंगी और उनकी नैया पार लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

चुनाव को लेकर कांग्रेस की तैयारी

कांग्रेस के हौसले भी इस बार बुलंद हैं, और उसे उम्मीद है कि राज्य में लोकसभा चुनावों के परिणाम दोहराए जाएंगे। इस विश्वास के साथ, कांग्रेस अपने पुराने गढ़ विदर्भ की ज्यादातर सीटों पर खुद चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।

कांग्रेस के कई प्रमुख नेता विदर्भ क्षेत्र से आते हैं, जैसे कि प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले, जो साकोली सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, और नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार, जो ब्रम्हपुरी से मैदान में हैं। पार्टी को विश्वास है कि इन बड़े नेताओं के प्रभाव का उसे लाभ मिलेगा।

विदर्भ के जातीय समीकरण भी कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहां दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की संख्या अधिक है, जिसमें मराठा कुनबी जैसे ओबीसी समुदाय के सदस्य भी शामिल हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका मिलने के बाद, वह ओबीसी समाज को साधने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि विदर्भ का जातीय संतुलन और उसके नेता इस बार चुनावी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

 

 

 

 

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