Section-6A: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने लिया बड़ा फैसला, नागरिकता कानून की धारा 6A को दिया वैध करार, पढ़ें पूरी जानकारी

Section-6A: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने लिया बड़ा फैसला, नागरिकता कानून की धारा 6A को दिया वैध करार, पढ़ें पूरी जानकारी
Last Updated: 17 अक्टूबर 2024

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, जो असम समझौते के तहत 1985 में लागू की गई थी। इस धारा के तहत, 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता के लिए पात्र माना जाता हैं।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया, जिसमें 6A के तहत दी गई 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ डेट को भी सही ठहराया गया है। इस धारा के तहत असम में 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक आने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए पात्र माना गया है। फैसले में कुल तीन जजमेंट्स हैं, जिसमें जस्टिस पारदीवाला का अलग निर्णय है। बहुमत के आधार पर, धारा 6A को संवैधानिक और वैध ठहराया गया हैं।

चीफ जस्टिस ने मामले पर क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए असम के संदर्भ में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार इस धारा को अन्य राज्यों में भी लागू कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि यह विशेष रूप से असम के लिए व्यावहारिक और उपयुक्त था। उन्होंने स्पष्ट किया कि 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट सही थी, क्योंकि स्वतंत्रता के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से असम में अवैध प्रवास बहुत अधिक था, जो भारत में कुल अवैध प्रवास का बड़ा हिस्सा था।

 

चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि धारा 6A तो "कम समावेशी" है और ही "अति समावेशी," अर्थात यह उचित ढंग से असम की परिस्थिति को संबोधित करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा है कि स्वतंत्रता के बाद पूर्वी पाकिस्तान से असम आने वाले अवैध अप्रवासियों की संख्या भारत में अवैध प्रवास के कुल आंकड़े से कहीं अधिक थी। यह धारा उन लोगों को नागरिकता प्रदान करती है, जो 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम आए थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मतलब है कि जो लोग इस अवधि में भारत आए और उन्हें नागरिकता दी गई थी, उनकी नागरिकता बरकरार रहेगी।

यह निर्णय असम समझौते के तहत 1985 में नागरिकता अधिनियम में किए गए संशोधन की वैधता पर केंद्रित था, जिसमें 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ डेट निर्धारित की गई थी।

क्या है नागरिकता कानून सेक्शन 6A?

नागरिकता कानून 1955 की धारा 6A को असम समझौते के तहत 1985 में जोड़ा गया था, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों की नागरिकता प्रक्रिया को विनियमित करना था। यह धारा विशेष रूप से असम के लिए बनाई गई थी, जिसमें प्रावधान है कि जो अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आए थे, वे भारतीय नागरिकता के लिए खुद को पंजीकृत कर सकते हैं। हालाँकि, जो लोग 25 मार्च 1971 के बाद असम आए, वे भारतीय नागरिकता के हकदार नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट में इस धारा को चुनौती देने वाली याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि 1966 के बाद से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अवैध रूप से आए शरणार्थियों के कारण असम का जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ गया है। याचिकाकर्ताओं का दावा था कि इस अवैध प्रवास के कारण राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, और नागरिकता कानून में धारा 6A जोड़कर सरकार ने इस अवैध घुसपैठ को कानूनी मंजूरी दी थी।

 

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