पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के आदेश के बाद से तनाव और हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं। इस विवाद ने न केवल स्थानीय लोगों को प्रभावित किया, बल्कि पूरे देश में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। शाही जामा मस्जिद को लेकर यह विवाद वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा के शाही इदगाह और मध्य प्रदेश के कमल-मौला मस्जिद जैसे विवादों से मेल खाता है। इन मामलों में दावा किया गया है कि मस्जिदें पहले हिंदू मंदिरों के स्थान पर बनी थीं और इस कारण इन स्थलों का धार्मिक स्वरूप बदलने की कोशिश की जा रही है।
क्या है मस्जिद विवाद?
संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह दावा किया गया था कि इस मस्जिद का निर्माण 1526 में मुग़ल सम्राट बाबर ने हिंदू मंदिर को तोड़कर किया था। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से इस मस्जिद का सर्वे करवाने की मांग की थी। याचिका पर 19 नवंबर को जिला अदालत ने सर्वे का आदेश दिया और यह आदेश उसी दिन लागू भी कर दिया। इसके बाद 24 नवंबर को दूसरे चरण का सर्वे हुआ, जिसके बाद वहां हिंसा फैल गई और कई लोग घायल हो गए। इस घटनाक्रम ने पूरे इलाके में तनाव का माहौल बना दिया है।
कोर्ट के आदेश पर विवाद
कोर्ट ने इस मामले में फैसला देते हुए बिना दोनों पक्षों की सुनवाई के सर्वे का आदेश दिया, जिससे स्थानीय लोग नाराज हो गए। इसे "एकतरफा" आदेश माना जा रहा है, जिसके चलते वहां के लोगों का विरोध बढ़ गया। हालांकि, मस्जिद की प्रबंध समिति से सर्वे के लिए सलाह ली गई थी, फिर भी आदेश को लेकर विवाद गहरा गया है। यह विवाद इसलिए भी संवेदनशील हो गया है क्योंकि शाही जामा मस्जिद एक केंद्रीय संरक्षित स्मारक है, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित किया गया है।
संरक्षित स्मारक का मुद्दा
संभल की शाही जामा मस्जिद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की वेबसाइट पर केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल किया गया है। इस मस्जिद को "प्राचीन स्मारकों संरक्षण अधिनियम, 1904" के तहत संरक्षित किया गया है। संरक्षित स्मारक के तहत कोई भी निर्माण कार्य या बदलाव बिना सरकारी अनुमति के नहीं किया जा सकता। इस मामले में सर्वे करने की अनुमति दी गई, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह कार्य कानून के अंतर्गत किया जा सकता है, जब यह स्थल पहले ही संरक्षित किया जा चुका है।
क्या कहता है 1991 का पूजा स्थल अधिनियम?
कानूनी दृष्टिकोण से यह मामला "पूजा स्थल अधिनियम, 1991" के तहत आता है, जो किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव को निषिद्ध करता है। यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि 15 अगस्त 1947 को किसी भी धार्मिक स्थल का जो रूप था, वह वैसा ही बना रहे। याचिकाकर्ता इस मस्जिद को पहले हिंदू मंदिर के स्थान पर मानते हैं, लेकिन 1991 के अधिनियम के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव करना अवैध है।
संभल विवाद का कानूनी पक्ष
संभल मस्जिद विवाद में याचिकाकर्ताओं ने एक सिविल मुकदमा दायर किया है, जिसमें दावा किया गया है कि शाही जामा मस्जिद एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। हालांकि, "पूजा स्थल अधिनियम, 1991" के तहत धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव पर रोक है। इस कानून के तहत, किसी धार्मिक स्थल का रूप बदलने का दावा कानूनी रूप से वैध नहीं माना जा सकता।
सर्वे और हिंसा का असर
संभल जिले में सर्वे आदेश के बाद हिंसा भड़क उठी, जिससे चार लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल हुए हैं। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी। स्थानीय प्रशासन ने इलाके में सुरक्षा बढ़ा दी है और उच्च अधिकारियों की निगरानी में घटनाओं को शांत करने की कोशिश की जा रही है। जिलाधिकारी ने दावा किया कि अब स्थिति सामान्य हो गई है, लेकिन यह विवाद और हिंसा की स्थिति कानून और व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती है।
संभल मस्जिद विवाद, धार्मिक और कानूनी दोनों दृष्टिकोण से जटिल है। जबकि एक ओर यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है, दूसरी ओर क्षेत्रीय हिंसा और सामाजिक तनाव भी बढ़ गया है। इस मामले में आगे की कानूनी प्रक्रिया और प्रशासनिक कार्रवाई यह तय करेगी कि इस विवाद का हल किस दिशा में जाता है।