पहाड़ी लोकगीतों पर नाचते-गाते आया नमक बनाने का आइडिया: सिलबट्टे पर पीसकर बनाती हूं 'पिस्यु लूण', बन गई 'नमकवाली'

पहाड़ी लोकगीतों पर नाचते-गाते आया नमक बनाने का आइडिया: सिलबट्टे पर पीसकर बनाती हूं 'पिस्यु लूण', बन गई 'नमकवाली'
Last Updated: 05 सितंबर 2024

'मैं 1982 से अलग अलग मुद्दों पर काम करती रही। इसी दौरान मैं कई महिलाओं के साथ पहाड़ों के लोक गीतों पर डांस प्रैक्टिस कर रही थी। थक जाने पर हम सब अपने खाने कि पोटली लेकर बैठते। सभी महिलाएं खाने के साथ अपने अपने घर से बना होममेड नमक लेकर आतीं। सिलबट्टे पर पिसे इस नमक का स्वाद आम नमक से काफी अलग और स्वादिष्ट होता। मैं भी सिलबट्टे पर नमक बनाती थी। मैंने सोचा कि क्यों न मैं इसे भी बिजनेस बनाकर पहाड़ के लोगों के लिए रोजगार पैदा करूं। बस इसी सोच के साथ 'पिस्यु लूण' को घर-घर पहुंचाने के लिए मैंने 'नमकवाली' के नाम से बिजनेस शुरू किया।' यह कहना है पहाड़ी नमक को देश-दुनिया तक पहुंचाने वाली उत्तराखंड की शशि रतूड़ी का।

 

टिहरी-गढ़वाल की रहने वाली 57 साल की शशि बताती हैं कि बहुत छोटी उम्र से ही मैं सामाजिक कामों में जुट गई थीं। अपने मौसा जी के साथ एक सामाजिक संगठन से जुड़कर मैंने कई गंभीर मुद्दों जैसे कि पर्यावरण, नारी-सशक्तिकरण पर काम किया। मेरी कोशिश है कि पहाड़ी संस्कृति को सहेजकर आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाया जाए और खुद को आत्मनिर्भर बनाया जाए।

मैंने 1982 में महिला नवजागरण समिति की शुरुआत की थी। इस समिति के ज़रिए मैंने अलग-अलग तरह की कई मुहिम चलाई। खास तौर पर पहाड़ों की संस्कृति और कलाओं को सहेज कर रखना मेरा मुख्य उद्देश्य था। इसके अलावा, मैंने कई ग्रामीणों को रोजगार भी दिलाया।

भांग वाला नमक के अलावा भी कई फ्लेवर में है नमक
'नमकवाली' की शुरुआत मैंने 2 महिलाओं के साथ की थी। लेकिन जैसे-जैसे बिजनेस बढ़ा अब हमारे साथ 10 से 12 महिलाओं का समूह काम कर रहा है। हम पहाड़ पर प्राकृतिक रूप से बनते नमक को तैयार कर रहे हैं। जिसे पहाड़ी भाषा में पिस्यु लूण कहते हैं। हम फ्लेवर्ड नमक भी बनाते हैं। जैसे लहसुन वाला नमक, अदरक वाला नमक, भांग वाला नमक आदि।

सिलबट्टे पर पीसकर तैयार करते हैं ऑर्गेनिक नमक
ऑनलाइन मार्केटिंग और कूरियर के जरिए हम पहाड़ी नमक का स्वाद देश के अलग-अलग शहरों तक पहुंचाते हैं। नमक को तैयार करने में अलग-अलग तरह की लगभग 10 चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। हम ऑर्गेनिक तरीके से नमक को सिलबट्टे पर पीसकर ही तैयार है। इस नामक को ऑर्डर के अनुसार बनाया जाता है और फिर 50 ग्राम, 100 ग्राम, 200 ग्राम के पैकेट्स में पैक कर लोगों तक पहुंचाते हैं। इस नमक की पैकेजिंग, कूरियर और मार्केटिंग की जिम्मेदारी महिला नवजागरण समिति की है।

ग्राहक के ऑर्डर पर तैयार करते हैं 'पिस्यु लूण'
'हम पहले से स्टॉक में कुछ बनाकर नहीं रखते क्योंकि हम अपने ग्राहकों को ताजा चीज़ देना चाहते हैं। जैसे ही हमें ऑर्डर मिलता है, वैसे ही हम महिलाओं को तैयारी के लिए कहते हैं। कितना नमक बनाना है, इस हिसाब से उसे तैयार करने में वक़्त लगता है। कभी-कभी एक दिन में हो जाता है तो कभी-कभी 3-4 दिन भी लगते हैं। फिर इसे अच्छे से पैक करके भेजा जाता है। '

हाड़ी जड़ी-बूटियां से बने 'पिस्यु लूण' के आगे सब्जी फेल
पिस्युं लूण की खासियत यह है कि ये स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। इसमें सेंधा नमक के साथ पहाड़ी जड़ी-बूटियां और पारंपरिक मसाले इस्तेमाल होते हैं। आप इसे सलाद के साथ, फलों के साथ, सब्ज़ियों में और तो और सीधा रोटी के साथ भी खा सकते हैं। पहाड़ी लोग सब्जी न होने पर पिस्युं लूण से ही रोटियां, पूड़ी या पराठे खाना पसंद करते हैं।

स्थानीय लोगों को रोजगार देना है मकसद
हमारा उद्देश्य बहुत ही स्पष्ट है लोगों को स्थानीय इलाकों में ही रोज़गार से जोड़ना। पहाड़ों के लोगों को पलायन न करना पड़े और उन्हें अपने घरों के पास ही काम मिलता रहे, इसे बेहतर क्या होगा। भले ही, अभी थोड़ा मुश्किल वक़्त है लेकिन यह भी पार हो जाएगा। हमारे प्रयास लगातार जारी हैं। लोग 100 ग्राम से लेकर 10 किलो तक का नमक ऑर्डर करते हैं और हर महीने 35 किलो तक नमक की बिक्री होती है।

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