पंडित मदन मोहन मालवीय की पुण्यतिथि 12 नवंबर को मनाई जाती है। पंडित मालवीय का निधन 12 नवंबर 1946 को हुआ था, और इस दिन को हर साल उनके योगदान और प्रभाव को याद करने के लिए मनाया जाता है। उन्हें भारतीय समाज के महान व्यक्तित्वों में से एक माना जाता है, जिन्होंने भारतीय शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।
पंडित मदन मोहन मालवीय का सबसे बड़ा योगदान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना था, जो आज विश्व प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान है। उनका सपना था कि भारत में एक ऐसी उच्चशिक्षा संस्थान हो, जो भारतीय संस्कृति, भाषा और ज्ञान को प्रमोट करे, साथ ही पश्चिमी शिक्षा पद्धतियों को भी अपनाए। BHU के माध्यम से उन्होंने शिक्षा को आम आदमी तक पहुँचाने का कार्य किया। इसके साथ ही वह स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे, और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे।
मालवीय जी ने अपने जीवन में कई सामाजिक सुधारों की ओर भी ध्यान दिया। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। वे हमेशा मानते थे कि एक सशक्त और जागरूक समाज ही राष्ट्र को सशक्त बना सकता है।
12 नवंबर 1946 को पंडित मदन मोहन मालवीय का निधन हुआ, और इस दिन को उनकी पुण्यतिथि के रूप में याद किया जाता है। पंडित मालवीय को भारतीय शिक्षा, समाज सुधार, और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए हमेशा सम्मानित किया जाएगा। उन्हें महात्मा गांधी द्वारा "महामना" की उपाधि दी गई थी, जो उनके महान व्यक्तित्व और कार्यों की पहचान थी।
शिक्षा के क्षेत्र में पंडित मालवीय का योगदान
पंडित मदन मोहन मालवीय का सबसे बड़ा योगदान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना है। 1916 में उन्होंने इस विश्वविद्यालय की नींव रखी, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज के लिए उच्च शिक्षा का एक आदर्श केंद्र बनाना था। BHU आज भी न केवल भारतीय शिक्षा प्रणाली में बल्कि विश्वभर में एक महत्वपूर्ण नाम है। उनकी सोच और दृष्टिकोण ने शिक्षा के महत्व को हर वर्ग और हर समाज में स्थापित किया।
सामाजिक सुधार और राष्ट्र निर्माण में योगदान
मालवीय जी ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराईयों के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने जातिवाद, छुआछूत, और महिलाओं के अधिकारों को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनका मानना था कि समाज में सुधार लाने के लिए सबसे पहले शिक्षा और जागरूकता जरूरी है।
स्वतंत्रता संग्राम में भी उनका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे और कई बार पार्टी के अध्यक्ष भी बने। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमेशा भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। उनका आदर्श और समर्पण आज भी स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों के रूप में जीवित है।
पंडित मालवीय के विचार और सिद्धांत
पंडित मदन मोहन मालवीय का जीवन दर्शन हमेशा समाज सेवा, मानवता, और शिक्षा पर केंद्रित था। उनका कहना था कि "शिक्षा से ही समाज का उत्थान संभव है", और इस विचार ने उन्हें भारतीय समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बना दिया। वे मानते थे कि एक सशक्त और शिक्षित समाज ही एक स्वतंत्र और प्रगतिशील राष्ट्र बना सकता है।
महात्मा गांधी और पंडित मालवीय का संबंध
महात्मा गांधी और पंडित मदन मोहन मालवीय का संबंध अत्यंत सशक्त और प्रेरणादायक था। गांधीजी उन्हें अपना "बड़ा भाई" मानते थे और दोनों ने मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। गांधीजी ने पंडित मालवीय को "महामना" की उपाधि दी थी, जो उनके प्रति सम्मान का प्रतीक था। उनका आदर्श और कार्यप्रणाली हमेशा गांधीजी के विचारों से मेल खाती थी।
आज भी प्रेरणा का स्रोत
पंडित मदन मोहन मालवीय का जीवन और उनके कार्य आज भी हम सभी के लिए एक प्रेरणा हैं। उनके संघर्ष, समर्पण, और दूरदृष्टि ने भारतीय समाज में बदलाव लाने की दिशा तय की। चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हो, समाज सुधार की दिशा हो या फिर स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका, पंडित मालवीय ने हमेशा भारतीय समाज की बेहतरी के लिए काम किया।
आज उनकी पुण्यतिथि पर, हमें न केवल उनके योगदान को याद करना चाहिए, बल्कि उनकी तरह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए, देश और समाज के उत्थान में अपना योगदान देना चाहिए। उनके विचारों और कार्यों को अपनाकर हम एक बेहतर और जागरूक समाज की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।
पंडित मदन मोहन मालवीय की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन।