मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानी: मतवाली योगिनी

मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानी: मतवाली योगिनी
Last Updated: 07 मार्च 2024

मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानी: मतवाली योगिनी   Best story of Munshi Premchand: Matwali Yogini

दोस्तों, हमारा देश सदियों से ही ऋषि मुनियों, कवियों, साहित्यकारों, और संगीतकारों  आदि जैसे गुणों से भरपूर महापुरुषों की जन्म और कर्मभूमि रहा है। इन महापुरुषों द्वारा रचित हजारों रचनाये अनमोल है। 

आज की युवापीढ़ी इस डिजिटल युग में मानों कही खोई जा रही है और हम अपने धरोहर और अनमोल खजाने से कोसों दूर होते जा रहे है। subkuz.com की कोशिश है की हम इन अनमोल खजानो के साथ साथ मनोरंजन कहानियां, समाचार, और देश विदेश की जानकारियां भी आप तक पहुचायें। 

यहाँ प्रस्तुत है आपके सामने मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा रचित ऐसी ही एक अनमोल कहानी जिसका शीर्षक है।

* मतवाली योगिनी Matwali yogini

माधवी प्रथम ही से मुरझायी हुई कली थी। निराशा ने उसे खाक मे मिला दिया। बीस वर्ष की तपस्विनी योगिनी हो गयी। उस बेचारी का भी कैसा जीवन था कि या तो मन में कोई अभिलाषा ही उत्पन्न न हुई, या हुई दुदैव ने उसे कुसुमित न होने दिया। उसका प्रेम एक अपार समुद्र था। उसमें ऐसी बाढ आयी कि जीवन  की आशाएं और अभिलाषाएं सब नष्ट हो गयीं। उसने योगिनी के से वस्त्र् पहिन लियें। वह सांसरिक बन्धनों से मुक्त हो गयी। संसार इन्ही इच्छाओं और आशाओं का दूसरा नाम हैं। जिसने उन्हें नैराश्य–नद में प्रवाहित कर दिया, उसे संसार में समझना भ्रम है। इस प्रकार के मद से मतवाली योगिनी को एक स्थान पर शांति न मिलती थी। पुष्प की सुगधिं की भांति देश-देश भ्रमण करती और प्रेम के शब्द सुनाती फिरती थी। उसके प्रीत वर्ण पर गेरुए रंग का वस्त्र परम शोभा देता था। इस प्रेम की मूर्ति को देखकर लोगों के नेत्रों से अश्रु टपक पडते थे। जब अपनी वीणा बजाकर कोई गीत गाने लगती तो सुनने वालों के चित अनुराग में पग जाते थें उसका एक–एक शब्द प्रेम–रस  डूबा होता था।

मतवाली योगिनी को बालाजी के नाम से प्रेम था। वह अपने पदों में प्राय: उन्हीं की कीर्ति सुनाती थी। जिस दिन से उसने योगिनी का वेष घारण किया और लोक–लाज को प्रेम के लिए परित्याग कर दिया उसी दिन से उसकी जिह्वा पर माता सरस्वती बैठ गयी। उसके सरस पदों को सुनने के लिए लोग सैकडों कोस चले जाते थे। जिस प्रकार मुरली की ध्वनि सुनकर गोपिंयां घरों से वयाकुल होकर निकल पड़ती थीं उसी प्रकार इस योगिनी की तान सुनते ही श्रोताजनों का नद उमड़ पड़ता था। उसके पद सुनना आनन्द के प्याले पीना था। इस योगिनी को किसी ने हंसते या रोते नहीं देखा। उसे न किसी बात पर हर्ष था, न किसी बात का विषाद्। जिस मन में कामनाएं न हों, वह क्यों हंसे और क्यों रोये ? उसका मुख–मण्डल आनन्द की मूर्ति था। उस पर दृष्टि पड़ते ही दर्शक के नेत्र पवित्र् आनन्द से परिपूर्ण हो जाते थे।

ऐसी ही प्रेरणादायक, ज्ञानवर्धक कहानियां पढ़ते रहिये subkuz.com पर।

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