राजा विक्रमध्वज ने किया उत्तराधिकारी का चयन, धीरध्वज ने दिखाई नेतृत्व की सही पहचान

राजा विक्रमध्वज ने किया उत्तराधिकारी का चयन, धीरध्वज ने दिखाई नेतृत्व की सही पहचान
Last Updated: 5 घंटा पहले

राजा विक्रमध्वज अपनी वृद्धावस्था में यह चाहने लगे थे कि उनके राज्य का उत्तराधिकारी कोई ऐसा व्यक्ति बने, जो न केवल शारीरिक रूप से मजबूत हो, बल्कि मानसिक रूप से भी सक्षम हो। उनके तीन बेटे—वीरध्वज, शूरध्वज और धीरध्वज—हर एक अपने-अपने गुणों के लिए प्रसिद्ध थे। हालांकि, यह निर्णय लेना कि कौन उनके पद का हकदार होगा, बेहद कठिन था, क्योंकि तीनों में किसी न किसी रूप में असाधारण प्रतिभा थी।

महाराज विक्रमध्वज ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक विवेकपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने अपने राज्य में एक प्रतियोगिता आयोजित करने का निर्णय लिया, जहां तीनों राजकुमार अपने कौशल का प्रदर्शन करेंगे और जो सबसे सक्षम होगा, उसे राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया जाएगा। इस निर्णय के बाद, महामंत्री सुकर्णनल को यह कार्य सौंपा गया कि वह इस चयन की प्रक्रिया को निष्पक्ष और प्रभावी बनाएं।

प्रतियोगिता की शुरुआत

प्रतियोगिता के पहले दिन, महल के राजकीय उद्यान में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। राजा विक्रमध्वज, महामंत्री सुकर्णनल और अन्य दरबारी वहां मौजूद थे। सबसे पहले वीरध्वज ने अपनी भयंकर धनुर्विद्या का प्रदर्शन किया। उसने तीरों का ऐसा संचालन किया कि एक विशाल विषधर के शरीर को अपने बाणों से बिंध दिया और उसे धरती पर गिरा दिया। यह देख सभी लोग चकित रह गए। महामंत्री सुकर्णनल ने राजा से कहा, "महाराज, युवराज वीरध्वज के पास अद्भुत तीरंदाजी कौशल है, जो उसे गद्दी के योग्य बनाता है।"

शूरध्वज का अद्भुत प्रदर्शन

इसके बाद मंझला पुत्र शूरध्वज अपनी बारी में आया। उसने हवा में उड़ते हुए हंसों के पंख काटने का असाधारण कार्य किया। एक-एक तीर से उसने पंख काटे और अंत में हंस स्वयं धरती पर गिर पड़ा। यह प्रदर्शन देखकर सभी लोग दंग रह गए। मंत्री ने कहा, "महाराज, युवराज शूरध्वज ने अत्यधिक निपुणता और सटीकता से तीर चलाए हैं। उनका कौशल कोई साधारण व्यक्ति नहीं दिखा सकता।"

धीरध्वज की बुद्धिमानी

आखिरकार, छोटे पुत्र धीरध्वज की बारी आई। उसने एक तीर छोड़ा जो सीधा अपने पिता के हृदय की ओर बढ़ा। लेकिन इससे पहले कि वह बाण महाराज के शरीर को छूता, धीरध्वज ने एक और बाण चलाकर पहले बाण को हवा में ही टुकड़े-टुकड़े कर दिया। इस साहसिक कार्य से यह साबित हुआ कि वह किसी भी स्थिति में सही निर्णय लेने में सक्षम है।

यह घटना राजा विक्रमध्वज के लिए एक बड़ा संकेत थी। उन्होंने समझ लिया कि जो राजकुमार सही समय पर सही निर्णय ले सकता है, वही राज्य की बागडोर संभालने के योग्य है।

उत्तराधिकारी का चयन

महामंत्री सुकर्णनल ने राजा विक्रमध्वज से कहा, "महाराज, हमें जो उत्तराधिकारी चाहिए था, वह अब मिल चुका है। युवराज धीरध्वज ने यह सिद्ध कर दिया कि वह न केवल अपने कौशल में, बल्कि निर्णय लेने की क्षमता में भी सर्वश्रेष्ठ हैं। यही वह गुण हैं, जो एक अच्छे शासक में होने चाहिए।"

राजा विक्रमध्वज ने यह सुनकर अपने छोटे पुत्र को गले से लगा लिया और उसे गद्दी का उत्तराधिकारी घोषित किया।

कहानी की सीख

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि एक योग्य नेता वही होता है जो केवल अपनी ताकत और कौशल से नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता से भी श्रेष्ठ होता है। धीरध्वज ने दिखाया कि कभी-कभी, किसी भी चुनौती का समाधान केवल शक्ति से नहीं, बल्कि सही समय पर सही निर्णय लेने से होता है।

यह कहानी यह भी सिखाती है कि जब नेतृत्व का चयन किया जाता है, तो केवल बाहरी प्रदर्शन के बजाय भीतर की सच्ची योग्यता और दूरदृष्टि को महत्व देना चाहिए।

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