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आषाढ़ मास 2025: भगवान विष्णु को समर्पित इस पावन मास में करें ये शुभ कार्य, मिलेगा जीवन में कल्याण

आषाढ़ मास 2025: भगवान विष्णु को समर्पित इस पावन मास में करें ये शुभ कार्य, मिलेगा जीवन में कल्याण

भारतीय सनातन धर्म में हर माह का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है। ऐसा ही एक विशेष माह है आषाढ़ मास, जो इस वर्ष 2025 में 12 जून से प्रारंभ होकर 10 जुलाई तक रहेगा। यह मास भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है, जो सृष्टि के पालनहार माने जाते हैं। इस महीने की विशेष बात यह है कि इसमें देवशयनी एकादशी आती है, जिस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और इसके बाद चार महीनों तक सभी मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

आषाढ़ मास का आध्यात्मिक महत्व

आषाढ़ मास ज्येष्ठ की गर्म और तेज धूप के बाद आता है और इसे बारिश के मौसम की शुरुआत माना जाता है, जिससे प्रकृति तरोताजा हो जाती है और मनुष्य को भी शांति और सुकून मिलता है। यह मास भगवान विष्णु का खास महीना होता है क्योंकि इस समय वे योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने तक समुद्र मंथन के लिए क्षीरसागर में विश्राम करते हैं। इस दौरान चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो चार महीनों का ऐसा पवित्र समय होता है जिसमें लोग ध्यान, संयम, तपस्या और सेवा जैसे धार्मिक कार्य करते हैं ताकि आत्मा शुद्ध हो और आध्यात्मिक उन्नति हो सके।

क्या है चातुर्मास?

चातुर्मास का अर्थ है 'चार महीने', जो देवशयनी एकादशी (6 जुलाई 2025) से लेकर प्रबोधिनी एकादशी (3 नवंबर 2025) तक रहता है। इस दौरान सभी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते। यह समय ईश्वर की साधना और आत्मशुद्धि का माना गया है।

इस माह में क्यों करें भगवान विष्णु की आराधना?

  • भगवान विष्णु पालनकर्ता हैं।
  • इस मास में उनकी विशेष पूजा करने से जीवन में संतुलन आता है।
  • मानसिक और शारीरिक अशुद्धियाँ दूर होती हैं।
  • आत्मा शुद्ध होकर ईश्वर की ओर अग्रसर होती है।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह माह विशेष होता है।

आषाढ़ मास में करें ये पुण्य कार्य

  1. भगवान विष्णु की आराधना: प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु चालीसा का पाठ करें।
  2. तुलसी पूजन: इस माह में तुलसी के पौधे की नियमित पूजा करें। जल चढ़ाएं, दीपक जलाएं और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
  3. देवशयनी एकादशी से पहले पूजा: 6 जुलाई को आने वाली देवशयनी एकादशी से पहले और उस दिन विशेष पूजा करें। इस दिन व्रत रखने का भी बहुत महत्व है।
  4. जल दान और प्याऊ लगवाना: गर्मी और उमस भरे इस समय में राहगीरों के लिए पानी की व्यवस्था करना पुण्यदायी होता है। कहीं प्याऊ लगवाएं या जल पात्र रखें।
  5. भजन-कीर्तन व अनुष्ठान: भगवान के भजन, कीर्तन, भागवत कथा श्रवण और यज्ञ-हवन जैसे धार्मिक अनुष्ठान करना इस मास में विशेष फल देता है।
  6. दान-पुण्य करें: वस्त्र, भोजन, पानी, छाता, चप्पल और फल आदि का दान जरूरतमंदों को करें। यह आपकी आत्मा को शांति और पुण्य का अनुभव देगा।

खानपान में रखें ये सावधानियां

आषाढ़ से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जिसमें खानपान को लेकर विशेष संयम रखा जाता है। यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए आवश्यक है।

  • बासी भोजन खाने से बचें।
  • प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का त्याग करें।
  • हल्का, सात्विक और ताजा भोजन करें।
  • फल, हरी सब्जियां और दालें अपने आहार में शामिल करें।
  • ज्यादा तला-भुना या मसालेदार भोजन न करें।

इस माह में क्या न करें?

  1. मांगलिक कार्यों से बचें: चातुर्मास के कारण इस समय विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, नामकरण आदि कार्य वर्जित माने जाते हैं।
  2. अनुशासनहीन जीवनशैली न अपनाएं: देर से सोना, देर तक उठना, असंयमित खानपान, क्रोध और आलस्य से दूरी बनाएं।
  3. प्रकृति से विरोध न करें: इस समय पेड़ों की कटाई, अधिक जल का दुरुपयोग, पशु-पक्षियों को कष्ट पहुंचाना शुभ नहीं माना जाता।

पौराणिक कथा से सीख

पौराणिक कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति केवल मंदिर जाकर पूजा करने से पूरी नहीं होती, बल्कि सेवा, संयम और अच्छे कर्म भी उतने ही जरूरी होते हैं। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले गए थे, तब लक्ष्मी माता और अन्य देवताओं ने सृष्टि की जिम्मेदारी निभाई और साधना, सेवा व दान के माध्यम से संतुलन बनाए रखा। इससे यह समझ आता है कि ईश्वर की भक्ति में निस्वार्थ सेवा और सकारात्मक कर्म सबसे बड़ा योगदान देते हैं।

आषाढ़ मास हमें संयम, भक्ति और आत्मशुद्धि की राह दिखाता है। इस पावन समय में भगवान विष्णु की आराधना के साथ साथ सेवा, दान और सच्चे कर्मों को अपनाकर हम जीवन में कल्याण और मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। यह माह हमारे लिए आत्मनिरीक्षण और सकारात्मक बदलाव का सुनहरा अवसर है।

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