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Powers of Vice President: भारत के उपराष्ट्रपति को कुर्सी संभालते ही मिलती हैं ये शक्तियां

Powers of Vice President: भारत के उपराष्ट्रपति को कुर्सी संभालते ही मिलती हैं ये शक्तियां

भारत के उपराष्ट्रपति का पद संविधान के अनुसार देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है, जो राष्ट्रपति के बाद आता है। उपराष्ट्रपति का मुख्य कर्तव्य राज्यसभा (संसद की उच्च सदन) का सभापति के रूप में कार्य करना है।

नई दिल्ली: भारत के संवैधानिक ढांचे में उपराष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा पद माना जाता है। देश के नए उपराष्ट्रपति के लिए आज चुनाव हो रहे हैं। इससे पहले, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को अचानक इस्तीफा देकर सियासी हलचल मचा दी थी। ऐसे में उपराष्ट्रपति के पद और उसके अधिकारों पर लोगों की रुचि बढ़ गई है। आइए जानते हैं कि इस पद को संभालते ही उपराष्ट्रपति को कौन-कौन सी शक्तियां मिलती हैं और कब उन्हें दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।

राज्यसभा के मुखिया के तौर पर उपराष्ट्रपति की पावर

उपराष्ट्रपति का सबसे अहम दायित्व राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता करना होता है। इस भूमिका में उनके पास वही अधिकार होते हैं जो लोकसभा के स्पीकर के पास होते हैं। राज्यसभा के मुखिया के रूप में उपराष्ट्रपति की जिम्मेदारियां और शक्तियां इस प्रकार हैं:

  • सदन की मीटिंग संचालित करना: उपराष्ट्रपति राज्यसभा की बैठकों को संचालित करते हैं, सदस्यों को बोलने का अवसर देते हैं और सदन में अनुशासन बनाए रखते हैं।
  • सदन में नियमों का पालन: यदि कोई सदस्य नियमों का पालन नहीं करता, तो उपराष्ट्रपति उसे चेतावनी देकर बाहर भी निकाल सकते हैं।
  • निर्णायक वोट: सामान्यतः उपराष्ट्रपति वोट नहीं देते, लेकिन अगर किसी बिल पर वोट बराबर हो जाते हैं, तो वे निर्णायक वोट के जरिए फैसला करते हैं।
  • सदन के नियमों की व्याख्या: उपराष्ट्रपति सदन के नियमों की व्याख्या करते हैं और उनका फैसला अंतिम माना जाता है।

राज्यसभा के मुखिया के रूप में उपराष्ट्रपति की यह भूमिका संसद की कार्यवाही की सुचारू और निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार

उपराष्ट्रपति की दोहरी जिम्मेदारी तब सामने आती है जब वे राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं। इसके कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:

  • राष्ट्रपति की अनुपस्थिति: यदि राष्ट्रपति बीमारी, विदेश यात्रा या किसी अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाते हैं, तो उपराष्ट्रपति उनका कार्यभार संभालते हैं।
  • राष्ट्रपति पद रिक्त होने पर: यदि राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफा या हटाए जाने जैसी वजह से पद खाली हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति तुरंत कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं। यह कार्यभार वे 6 महीने तक निभा सकते हैं, क्योंकि इस दौरान नए राष्ट्रपति का चुनाव होना जरूरी है।
  • सभी शक्तियां और लाभ: राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के दौरान उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति की सभी शक्तियां, लाभ और सैलरी प्राप्त होती हैं। इस समय वे राज्यसभा के मुखिया के रूप में कार्य नहीं करते।

उपराष्ट्रपति का यह दायित्व संवैधानिक स्थिरता बनाए रखने और देश में प्रशासनिक कार्यों को निरंतरता देने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

उपराष्ट्रपति का चुनाव प्रक्रिया

भारत में उपराष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा नहीं किया जाता। संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव एक विशेष समूह द्वारा किया जाता है। इस समूह में लोकसभा और राज्यसभा के सभी सदस्य (चुने हुए और नामांकित) शामिल होते हैं। चुनाव प्रक्रिया इस प्रकार होती है:

  • यह चुनाव गुप्त मतदान के जरिए संपन्न होता है।
  • उम्मीदवार को निर्वाचक समूह की सामूहिक सहमति से चुना जाता है।
  • उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, लेकिन वे अगले उपराष्ट्रपति के शपथ ग्रहण तक अपने पद पर बने रह सकते हैं।

उपराष्ट्रपति का पद भारत के संवैधानिक ढांचे में राजनीतिक और प्रशासनिक संतुलन बनाए रखने के लिए अहम है। राज्यसभा के मुखिया के रूप में वे संसदीय प्रक्रियाओं की निगरानी करते हैं, वहीं राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने पर देश के सर्वोच्च पद पर अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं।

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