अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस अमेरिका के लिए रणनीतिक महत्व रखता है। तालिबान के कब्जे के बाद भारत ने विदेशी सैन्य ठिकानों को रोकने का रुख अपनाया। अमेरिका इसे फिर से नियंत्रित करने की योजना बना रहा है, जबकि रूस, ईरान और पाकिस्तान भी अपनी स्थिति पर चिंतित हैं।
World Update: अफगानिस्तान के उत्तर में स्थित बगराम एयरबेस सिर्फ एक हवाई अड्डा नहीं है, बल्कि इसे पिछले 70 वर्षों से एशिया की सैन्य रणनीति का केंद्र माना जाता रहा है। अमेरिका ने 2001 से यहां अपनी नजर बनाई थी, लेकिन अगस्त 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद यह एयरबेस अमेरिकी नियंत्रण से बाहर हो गया। अब अमेरिका फिर से बगराम पर अपनी निगाहें गड़ाने लगा है, लेकिन परिस्थितियां पहले जैसी नहीं हैं।
बगराम एयरबेस का महत्व सिर्फ अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है। इसका भौगोलिक स्थान इसे रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम बनाता है। यहां से रूस, ईरान, पाकिस्तान, चीन और मध्य एशियाई देशों पर नजर रखना संभव है। यही कारण है कि अमेरिका के लिए यह एयरबेस विशेष महत्व रखता है और उसकी वापसी को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चा चल रही है।
बगराम एयरबेस का इतिहास
बगराम एयरबेस का निर्माण 1950 के दशक में अफगानिस्तान के राजा जहीर शाह के शासनकाल में हुआ। उस समय देश में अमेरिकी और सोवियत प्रभाव दोनों बढ़ रहे थे। शुरुआती डिजाइन सोवियत इंजीनियरों ने तैयार किया था। 1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया और बगराम एयरबेस उनका मुख्य सैन्य केंद्र बन गया। यहां से रूसी फाइटर जेट्स और बमवर्षक विमानों ने मुजाहिदीन के ठिकानों पर हमला किया।
1989 में सोवियत सेना की वापसी के बाद बगराम खंडहर में बदल गया। लेकिन 2001 में अमेरिका पर 9/11 के आतंकी हमलों के बाद अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ 'वार ऑन टेरर' शुरू किया और बगराम एयरबेस को आधुनिक सैन्य ठिकाने में बदल दिया। यहां लगभग 10,000 सैनिक तैनात थे, ड्रोन नियंत्रण केंद्र, मिसाइल लॉन्च सिस्टम और हाई-टेक जेल स्थापित थी।
रणनीतिक महत्व
बगराम एयरबेस काबुल से केवल 60 किलोमीटर दूर है और इसे अफगानिस्तान का केंद्रीय पॉइंट कहा जा सकता है। इसका स्थान इतना महत्वपूर्ण है कि यहां से अमेरिका आसानी से ईरान, पाकिस्तान, चीन, रूस और मध्य एशियाई देशों की गतिविधियों पर नजर रख सकता है। इसके अलावा बगराम एयरबेस से पाकिस्तान के कबायली इलाकों में ड्रोन हमले भी किए गए हैं। यही कारण है कि अमेरिका इस एयरबेस की वापसी के लिए लगातार योजना बना रहा है।
अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अमेरिकी सैनिकों ने बगराम छोड़ दिया। लेकिन 2024 के बाद अफगानिस्तान में आईएस-खुरासान और अन्य आतंकवादी संगठनों की सक्रियता बढ़ गई। अमेरिका अब 'ओवर द होराइजन ऑपरेशन' यानी दूर से हमले करने की रणनीति पर काम कर रहा है। इसके लिए बगराम एयरबेस जैसे ठिकानों की आवश्यकता है। रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि अमेरिका गुपचुप तरीके से इसे किराए पर लेने या किसी तीसरे देश के माध्यम से लॉजिस्टिक एक्सेस हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
भारत का रुख और मॉस्को फॉर्मेट
भारत ने बगराम एयरबेस पर अमेरिका की संभावित वापसी पर अपना रुख स्पष्ट किया है। मॉस्को में आयोजित सातवें ‘मॉस्को फॉर्मेट’ सम्मेलन में भारत ने कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता (sovereignty) और स्थिरता (stability) सबसे महत्वपूर्ण हैं। इस बैठक में अफगानिस्तान, भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान और अन्य देश शामिल थे। पहली बार तालिबान की तरफ से विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी भी शामिल हुए। अमीर खान मुत्ताकी का भारत दौरा भी जल्द होने वाला है।
रूस की असहज स्थिति
रूस के लिए बगराम एयरबेस की वापसी चुनौतीपूर्ण है। रूस को डर है कि यदि अमेरिका अफगानिस्तान में फिर से सैन्य ठिकाना स्थापित करता है, तो उसकी मध्य एशिया में सैन्य पकड़ कमजोर पड़ जाएगी। यूक्रेन युद्ध में उलझे रूस के लिए यह और भी चिंताजनक है। मॉस्को ने साफ कहा है कि वह किसी भी विदेशी सैन्य ठिकाने की वापसी का विरोध करेगा।
ईरान की चिंता
ईरान के लिए बगराम एयरबेस सीधे सुरक्षा और निगरानी का मुद्दा है। यह ईरान की सीमा से बहुत दूर नहीं है। अमेरिकी कब्जे के दौरान बगराम एयरबेस से ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य गतिविधियों की निगरानी की जाती थी। ईरान तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है ताकि अमेरिका की संभावित वापसी को रोका जा सके।
पाकिस्तान का जटिल रुख
पाकिस्तान की स्थिति सबसे जटिल है। एक ओर वह अमेरिका को सुरक्षा साझेदार मानता है, दूसरी ओर तालिबान के साथ अपनी नजदीकी बनाए रखना चाहता है। 2021 में अमेरिकी वापसी के समय पाकिस्तान ने अमेरिकी विमानों को अपने एयरस्पेस से गुजरने की अनुमति दी थी। लेकिन अब वह नहीं चाहता कि अमेरिका अफगानिस्तान में सैन्य ठिकाना बनाए क्योंकि इससे तालिबान नाराज हो सकता है।
पाकिस्तान इस समय तालिबान और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। उसे स्थिति ऐसी बनी है कि उसे दोनों पक्षों को संतुष्ट रखना है।
तालिबान की शक्ति और बगराम का प्रतीक
तालिबान बगराम एयरबेस को अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता का प्रतीक मानते हैं। उन्होंने इसे अपने नियंत्रण में लेने के बाद इसे इस्लामिक अमीरेट ऑफ अफगानिस्तान की सैन्य शक्ति कहा। तालिबान के लिए यह एयरबेस प्रचार का माध्यम भी है, जो कभी अमेरिका की शक्ति का प्रतीक था। अब यह उनके हाथ में है और वे किसी भी विदेशी ताकत को यहां पैर जमाने नहीं देंगे।
हालांकि, खबरें हैं कि बगराम में मरम्मत और निर्माण कार्य चल रहे हैं। इसमें संभावना है कि तालिबान चीन या रूस को किसी रूप में सैन्य सहयोग की अनुमति दे सकता है। यदि ऐसा हुआ, तो अमेरिका का बगराम में दोबारा पैर जमाने का सपना लगभग खत्म हो जाएगा। बगराम एयरबेस एक बार फिर भू-राजनीतिक रणनीति का केंद्र बन गया है।