संविधान का अनुच्छेद 85 राष्ट्रपति को संसद के सत्र बुलाने, स्थगित करने और लोकसभा भंग करने का अधिकार देता है। यह संसद के नियमित संचालन और लोकतंत्र के संतुलन के लिए अहम है।
Sansad ka Monsoon Satra: देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे अहम कड़ी है संसद। संसद के बिना कोई भी कानून बनाना, नीतियां तय करना या शासन का संचालन करना संभव नहीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संसद कब और कैसे अपने सत्रों का आयोजन करती है, कब बैठती है और कब स्थगित होती है? इसके पीछे छुपा है संविधान का एक बेहद महत्वपूर्ण प्रावधान – अनुच्छेद 85। आज जब संसद का शीतकालीन सत्र 21 जुलाई 2025 से शुरू हो रहा है, तब इस अनुच्छेद की जानकारी और भी ज्यादा जरूरी हो जाती है।
अनुच्छेद 85 क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 85 में संसद के सत्रों को बुलाने, स्थगित करने, सत्रावसान (प्रोरेगेशन) और लोकसभा के विघटन से जुड़ी व्यवस्थाएं शामिल हैं। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को संसद की बैठक बुलाने, स्थगित करने और समाप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। साथ ही, संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम छह महीने का अंतराल रखा जाना अनिवार्य है। इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को जब और जहां उचित समझे, मिलने के लिए बुला सकते हैं। यह शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रयोग की जाती है।
संसद के तीन मुख्य सत्र और उनका महत्व
अनुच्छेद 85 के तहत, हर साल संसद में कम से कम दो सत्र आयोजित किए जाते हैं, जिनका समय निम्नलिखित होता है:
- बजट सत्र: फरवरी से मई के बीच, जिसमें सरकार का वार्षिक बजट प्रस्तुत किया जाता है।
- मानसून सत्र: जुलाई से सितंबर के बीच, जिसमें विभिन्न विधेयकों और नीतिगत विषयों पर चर्चा होती है।
- शीतकालीन सत्र: नवंबर-दिसंबर में, जो संसद का तीसरा और विशेष सत्र माना जाता है।
राष्ट्रपति द्वारा इन सत्रों को बुलाने और स्थगित करने का अधिकार है, लेकिन आमतौर पर यह निर्णय लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति की सलाह से लिया जाता है।
सत्रावसान और स्थगन में अंतर
अनुच्छेद 85(2)(क) में संसद के सत्रावसान से जुड़ी बात की गई है। सत्रावसान का मतलब है संसद के वर्तमान सत्र को समाप्त करना बिना संसद को भंग किए। इसका अर्थ है कि संसद के सदस्य एक सत्र के बाद विराम लेकर अगले सत्र के लिए वापस बैठेंगे। इसके विपरीत, स्थगन एक अस्थायी प्रक्रिया होती है, जिसमें संसद की कार्यवाही को कुछ समय के लिए रोका जाता है, लेकिन सत्र जारी रहता है। स्थगन की घोषणा संसद का अध्यक्ष करता है।
लोकसभा का विघटन और उसका महत्व
अनुच्छेद 85(2)(ख) लोकसभा के विघटन से संबंधित है। लोकसभा का कार्यकाल सामान्यतः पांच वर्ष का होता है, लेकिन राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर इसे पांच साल से पहले भी भंग कर सकते हैं। इसके बाद नए आम चुनाव कराए जाते हैं। यह व्यवस्था देश में राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। हालांकि राज्यसभा स्थायी सदन है और इसका विघटन नहीं होता।
अनुच्छेद 85 क्यों है जरूरी?
संसद के नियमित और प्रभावी संचालन के लिए अनुच्छेद 85 एक संवैधानिक आधार प्रदान करता है। इसके बिना संसद की बैठकें अनियमित हो सकती हैं, जिससे लोकतंत्र कमजोर पड़ सकता है। यह अनुच्छेद सत्ता पक्ष की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, क्योंकि सत्र आयोजित होने पर ही सरकार को संसद के समक्ष अपनी नीतियों और कार्यों की व्याख्या करनी पड़ती है। इसी से विपक्ष को सरकार को परखने और सवाल करने का मौका मिलता है। इसके अलावा, यह अनुच्छेद कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन बनाए रखता है, जिससे शासन में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था नहीं होती।
अनुच्छेद 85 का लोकतंत्र में महत्व
भारत जैसे विशाल और विविध लोकतंत्र में संसद की भूमिका सर्वोच्च है। संविधान के अनुच्छेद 85 से संसद के सत्रों का नियमित संचालन सुनिश्चित होता है, जिससे लोकतंत्र की मूल भावना – जनता की आवाज़ – सदन में प्रतिध्वनित होती रहती है। जब संसद समय-समय पर बैठती है, तब ही देश के विकास, कानून निर्माण और नीति निर्धारण का कार्य सही ढंग से हो पाता है।