हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास का विशेष धार्मिक महत्व है। यह वर्ष का चौथा महीना होता है और ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद शुरू होता है। इस महीने को भगवान विष्णु की भक्ति, साधना और अध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। आषाढ़ मास के आरंभ से ही देवशयन काल भी शुरू हो जाता है, जिसके चलते विवाह और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं।
आषाढ़ मास 2025 की शुरुआत कब से होगी?
हिंदू पंचांग के अनुसार 2025 में आषाढ़ मास की शुरुआत 21 जून 2025, शनिवार को हो रही है और इसका समापन 21 जुलाई 2025, सोमवार को होगा। यह मास ज्येष्ठ पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होकर श्रावण मास की अमावस्या तक चलता है।
आषाढ़ मास का धार्मिक महत्व
आषाढ़ मास का धार्मिक महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसी समय से देवशयन काल शुरू होता है। मान्यता है कि इस मास में भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। यही कारण है कि इस महीने के बाद से चार महीने तक विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। इस समय को चातुर्मास कहा जाता है।
इस महीने के प्रमुख धार्मिक पर्व और उत्सव हैं:
- देवशयनी एकादशी – भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने का दिन
- जगन्नाथ रथयात्रा – पुरी में जगन्नाथ भगवान की भव्य यात्रा
- गुरु पूर्णिमा – गुरुजनों की पूजा और सम्मान का पर्व
आषाढ़ माह के प्रमुख त्योहार और व्रत
इस महीने में कई धार्मिक उत्सव और व्रत आते हैं, जो हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माने जाते हैं:
- देवशयनी एकादशी (21 जून 2025): इस दिन से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास की शुरुआत होती है।
- जगन्नाथ रथयात्रा (29 जून 2025): पुरी (ओडिशा) में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की भव्य यात्रा निकाली जाती है।
- गुरु पूर्णिमा (10 जुलाई 2025): गुरु के ज्ञान और मार्गदर्शन के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिन। इस दिन आध्यात्मिक गुरु और शिक्षक का पूजन किया जाता है।
आषाढ़ मास में क्या करें?
इस महीने को साधना, तपस्या और धर्म के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। कुछ प्रमुख कार्य जो इस मास में करने चाहिए:
1. भगवान विष्णु की आराधना करें
इस मास में भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने का विधान है। रोजाना “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
2. गुरु की सेवा और सम्मान करें
गुरु पूर्णिमा इस माह का सबसे प्रमुख पर्व है। इस दिन अपने आध्यात्मिक या शैक्षणिक गुरु का आशीर्वाद लें और उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।
3. व्रत और उपवास रखें
विशेषकर एकादशी व्रत जरूर रखें। यह व्रत शरीर और मन की शुद्धि करता है और पुण्य फल प्रदान करता है।
4. दान-पुण्य करें
इस महीने अन्न, वस्त्र, जलपात्र, छाता, जूते, पंखा आदि का दान करना अत्यंत फलदायी होता है।
5. सात्विक आहार और योग अपनाएं
आषाढ़ माह में मानसिक और आत्मिक बल को बढ़ाने के लिए सात्विक जीवनशैली अपनाएं। रोज ध्यान, योग और मंत्रजप का अभ्यास करें।
आषाढ़ मास में क्या न करें?
इस पवित्र महीने में कुछ कार्य करने की मनाही होती है, क्योंकि यह समय साधना और संयम का माना जाता है। कुछ कार्य जो इस मास में नहीं करने चाहिए:
1. विवाह और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य न करें
देवशयन के कारण चार महीने तक कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश आदि करना वर्जित होता है। इसे चातुर्मास काल कहा जाता है।
2. अशुद्ध आहार और तामसिक भोजन से बचें
मांसाहार, मद्यपान और अत्यधिक तले-भुने भोजन से बचें। सात्विक और हल्का भोजन करें।
3. गुरु का अनादर न करें
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विशेष ध्यान रखें कि गुरु का अपमान या अवज्ञा न हो, क्योंकि इस महीने में गुरु का स्थान अत्यंत पूजनीय होता है।
4. बुरे विचार और नकारात्मकता से दूरी रखें
इस माह में विशेष रूप से मन, वाणी और कर्म को शुद्ध रखने की सलाह दी जाती है। क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष और झूठ बोलने से बचें।
5. अनावश्यक यात्रा न करें
जहाँ तक संभव हो, इस महीने लंबी या अनावश्यक यात्राओं से बचना चाहिए और आत्मिक विकास पर ध्यान देना चाहिए।
चातुर्मास क्या है?
आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के चार महीने का समय चातुर्मास कहलाता है। इस दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं और धर्म-संस्कृति से जुड़े सभी कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं। यही कारण है कि इस काल में विवाह जैसे कार्य शुभ नहीं माने जाते। यह साधु-संतों के लिए भी एक जगह ठहरकर तप, ध्यान और प्रवचन करने का समय होता है।
आषाढ़ मास आध्यात्मिक साधना, भक्ति और संयम का महीना है। इस महीने में भगवान विष्णु की उपासना करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। यह समय बाहरी दिखावे की बजाय आंतरिक सुधार और आत्मिक विकास के लिए उपयुक्त माना जाता है। अतः इस पवित्र माह में नियम-संयम से जीवन जीकर भगवान की कृपा प्राप्त करें और आने वाले दिनों को शुभ और मंगलमय बनाएं।