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अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को सुप्रीम कोर्ट से राहत, ट्रायल कोर्ट को आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से रोका

अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को सुप्रीम कोर्ट से राहत, ट्रायल कोर्ट को आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से रोका

सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर महमूदाबाद को बड़ी राहत दी है। हरियाणा पुलिस द्वारा ऑपरेशन सिंदूर पर उनके विवादास्पद सोशल मीडिया पोस्ट के चलते दर्ज एफआईआर के मामले में कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को अभियोग पत्र पर संज्ञान लेने से रोकने का आदेश दिया है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर बड़ी कार्रवाई की है। हरियाणा एसआईटी द्वारा दायर आरोप-पत्र पर निचली अदालत को संज्ञान लेने से रोक दिया गया है। अली खान महमूदाबाद पर सोशल मीडिया पर 'ऑपरेशन सिंदूर' से संबंधित पोस्ट करने के आरोप थे। 

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने निचली अदालत को इस मामले में किसी भी आरोप को तय करने या आगे बढ़ाने से भी रोक दिया है।

क्या है मामला?

हरियाणा पुलिस ने प्रोफेसर महमूदाबाद के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की थीं। इन एफआईआर में आरोप था कि उनके सोशल मीडिया पोस्ट से देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा हुआ। सोनीपत जिले के राई पुलिस थाने में दर्ज की गई इन प्राथमिकी में से एक हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया और दूसरी एक गांव के सरपंच की शिकायत पर आधारित थी।

18 मई, 2025 को इन आरोपों के बाद प्रोफेसर महमूदाबाद को गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में कई राजनीतिक दलों और शिक्षाविदों ने गिरफ्तारी की निंदा भी की थी।

सुप्रीम कोर्ट में कार्रवाई

हरियाणा पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि ऑपरेशन सिंदूर पोस्ट के संबंध में प्रोफेसर के खिलाफ दायर दो मामलों में से एक में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है। वहीं, दूसरे मामले में 22 अगस्त, 2025 को अभियोग पत्र (Chargesheet) दाखिल किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को प्रोफेसर के खिलाफ दायर आरोप पत्र पर फिलहाल संज्ञान न लेने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि सभी कार्यवाही को रद्द करने का निर्देश दिया जाए, जब तक कि मामले की पूर्ण समीक्षा नहीं हो जाती।

प्रोफेसर महमूदाबाद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आरोपपत्र दाखिल होने पर आपत्ति जताई और इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल पर BNS धारा 152 (देशद्रोह) के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसकी वैधता चुनौती के योग्य है। सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि वे आरोप पत्र का अध्ययन करें और कथित अपराधों का चार्ट तैयार करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगली सुनवाई पर इस पर विचार किया जाएगा।

पहले की सुनवाई में कोर्ट ने कहा 

16 जुलाई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हरियाणा एसआईटी की जांच की दिशा पर सवाल उठाए थे और कहा कि जांच टीम ने गलत दिशा में कदम बढ़ाया है। इसके पहले, 21 मई, 2025 को कोर्ट ने प्रोफेसर को अंतरिम जमानत दी थी, लेकिन उनके खिलाफ जांच रोकने से इनकार किया था। कोर्ट ने तीन सदस्यीय एसआईटी को प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की जांच करने का निर्देश दिया था।

शीर्ष अदालत को एसआईटी ने सूचित किया कि दोनों एफआईआर की जांच की जा चुकी है। एक मामले में उन्होंने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, जबकि दूसरे मामले में आरोप पत्र दाखिल किया गया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि क्लोजर रिपोर्ट के तहत मामले से संबंधित सभी कार्यवाहियों को रद्द किया जाए।

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