मुकेश अंबानी और गौतम अदाणी गुजरात के कच्छ जिले में 5 लाख एकड़ जमीन पर हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। दोनों ग्रुप्स 100 गीगावाट से ज्यादा सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता रख सकते हैं। रिलायंस हाइड्रोजन और बैटरी प्रोजेक्ट्स पर फोकस कर रहा है, जबकि अदाणी ट्रांसमिशन और पीपीए समझौतों के माध्यम से ऊर्जा क्षेत्र में दबदबा बनाए हुए हैं।
Green Energy: भारत के दो सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी और गौतम अदाणी कच्छ जिले में हरित ऊर्जा के क्षेत्र में जोरदार होड़ में हैं। दोनों के पास मिलकर करीब 5 लाख एकड़ जमीन है, जिससे 100 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा पैदा की जा सकती है। रिलायंस इंडस्ट्रीज हाइड्रोजन और बैटरी प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है, जबकि अदाणी ग्रुप अपनी पारंपरिक बिजली और पीपीए नेटवर्क के जरिए ऊर्जा बाजार में बढ़त बनाए हुए है। इन परियोजनाओं से भारत के नवीकरणीय ऊर्जा भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
अलग-अलग रणनीति, एक ही लक्ष्य
मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपनी परंपरागत तेल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स की ताकत को हरित ऊर्जा की दिशा में मोड़ दिया है। कंपनी 20 गीगावाट का सौर मॉड्यूल प्लांट विकसित कर रही है, जिसमें आधुनिक हेटरोजंक्शन तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही 40 गीगावाट-घंटे की बैटरी फैक्ट्री भी शुरू की गई है, जिसे भविष्य में 100 गीगावाट-घंटे तक बढ़ाया जा सकता है।
रिलायंस का लक्ष्य 2032 तक हर साल 30 लाख टन हरी हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। कंपनी अपनी डिजिटल योजनाओं को भी हरित ऊर्जा से जोड़ रही है। मेटा और गूगल के साथ साझेदारी कर कई गीगावाट के डेटा सेंटर बनाए जा रहे हैं, जो पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा पर चलेंगे।
वहीं, गौतम अदाणी की अदाणी ग्रुप पारंपरिक बिजली क्षेत्र में अपनी ताकत का उपयोग कर रही है। अदाणी ग्रीन एनर्जी के पास बड़े पैमाने पर बिजली खरीद समझौतों (PPAs) की सूची है। अदाणी ट्रांसमिशन देश का सबसे बड़ा निजी ट्रांसमिशन नेटवर्क संचालित करता है। इसके अलावा, अदाणी अपने अदाणीकॉनेक्स वेंचर के माध्यम से डेटा सेंटर बना रहा है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जरूरतों को पूरा करेंगे।
छोटी कंपनियों के लिए मुश्किलें
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दोनों समूहों की बड़ी योजनाएं छोटी कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती हैं। सोलर मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है। अगर आयात पर प्रतिबंध कड़ा होता है, तो रिलायंस और अदाणी मिलकर वेफर क्षमता का लगभग आधा और पॉलीसिलिकॉन का 90 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित कर सकते हैं।
छोटी कंपनियों जैसे वारी एनर्जीज और प्रीमियर एनर्जीज के लिए टिकना मुश्किल हो सकता है। रिलायंस की बैटरी प्रोजेक्ट्स भी दूसरों को पीछे छोड़ सकती हैं, क्योंकि यह पूरी तरह से बैटरी स्टोरेज पर ध्यान केंद्रित कर रही है। कई छोटी कंपनियां अपने सेल प्लांट के लिए फंड जुटाने की कोशिश में आईपीओ लाने की तैयारी कर रही हैं।
हरित ऊर्जा में रिलायंस और अदाणी की चुनौतियां
दोनों समूहों के सामने चुनौतियां भी हैं। रिलायंस के पास अभी सिर्फ 3 गीगावाट का ट्रांसमिशन कनेक्शन है, और 2030 तक नए कनेक्शन मिलने में कठिनाई हो सकती है। ऐसे में कंपनी को ग्रिड खरीदना पड़ सकता है या हाइड्रोजन का उत्पादन ऑनसाइट करना होगा। हाइड्रोजन का उत्पादन महंगा होने की संभावना है, और 2040 से पहले इसकी लागत प्रति किलो 2 डॉलर से कम नहीं होने की उम्मीद है।
वहीं, अदाणी ग्रुप की कोयला आधारित पुरानी परियोजनाएं उनकी हरित ऊर्जा की रफ्तार को धीमा कर सकती हैं। इसके बावजूद, दोनों समूहों की योजनाएं भारत के हरित भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
आर्थिक और ऊर्जा लाभ
अगर रिलायंस अपने हाइड्रोजन लक्ष्य को पूरा करता है, तो कंपनी को 2030 तक हर साल 7-8 अरब डॉलर की कमाई हो सकती है। इसके अलावा, सोलर और बैटरी स्टोरेज से 5-6 अरब डॉलर और जुड़ सकते हैं। अदाणी का ट्रांसमिशन नेटवर्क और PPA पर पकड़ उन्हें भारत के नवीकरणीय ऊर्जा रोलआउट में एक प्रमुख कर्ता-धर्ता बनाता है।
दोनों उद्योगपतियों की योजनाएं न केवल ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाएंगी, बल्कि रोजगार और निवेश के नए अवसर भी पैदा करेंगी। कच्छ जिले के रेगिस्तान को देश का हरित ऊर्जा हब बनाने की दिशा में यह मुकाबला लंबे समय तक ध्यान का केंद्र बना रहेगा।