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बिहार SIR मामले पर सुप्रीम कोर्ट में बहस, चुनाव आयोग बोला– 'याचिकाकर्ता चुनाव प्रक्रिया रोकना चाहते हैं'

बिहार SIR मामले पर सुप्रीम कोर्ट में बहस, चुनाव आयोग बोला– 'याचिकाकर्ता चुनाव प्रक्रिया रोकना चाहते हैं'

बिहार SIR प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ता जानबूझकर चुनाव प्रक्रिया में रुकावट डालना चाहते हैं। आयोग ने अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी बताया और कोर्ट से 10 दिन का समय मांगा। अगली सुनवाई 4 नवंबर को होगी।

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग का पक्षबिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता जानबूझकर चुनाव प्रक्रिया में रुकावट डालने की कोशिश कर रहे हैं। आयोग ने कहा कि मतदाता सब कुछ जानते हैं और वोटर लिस्ट को लेकर किसी तरह की असंतुष्टि नहीं है। आयोग के अनुसार, याचिकाकर्ता संगठन ADR (Association for Democratic Reforms) को एनालिटिक्स के लिए तुरंत डेटा चाहिए, जबकि मतदाता स्वयं चुनाव प्रक्रिया पर विश्वास रखते हैं और वे आयोग से मार्गदर्शन का इंतजार कर सकते हैं।

पहले और दूसरे चरण की प्रक्रिया जारी

चुनाव आयोग ने बताया कि बिहार में SIR की पहली चरण की प्रक्रिया 17 अक्टूबर तक और दूसरी चरण की प्रक्रिया 20 अक्टूबर तक पूरी होगी। इसके बाद मतदाता सूची आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक की जाएगी। आयोग ने कहा कि अब तक किसी भी मतदाता की ओर से कोई औपचारिक अपील प्राप्त नहीं हुई है।

न्यायालय की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि जिन लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं, उनकी सूची भी सार्वजनिक की जानी चाहिए। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाएगा। हालांकि भूषण ने यह भी कहा कि सूची का प्रकाशन अनिवार्य है और इस मामले को बंद नहीं किया जा सकता।

भूषण ने कहा कि लगभग 65 लाख नाम हटाने के बाद आयोग ने कुछ और नाम भी हटा दिए हैं, लेकिन नई सूची अब तक जारी नहीं की गई है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह एक सतत (continuous) प्रक्रिया है और सूची का अंतिम रूप अभी तैयार नहीं हुआ है। भूषण ने जवाब में कहा कि नियमों के अनुसार वोटर लिस्ट की पारदर्शिता बनाए रखना आवश्यक है। वहीं चुनाव आयोग ने दोहराया कि मतदाता सब जानते हैं और प्रक्रिया पूरी पारदर्शी है।

चुनाव आयोग ने मांगा 10 दिन का समय

सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने बताया कि उसने विस्तृत हलफनामा दाखिल कर दिया है, जिसमें इस पूरे मामले से जुड़े सभी बिंदु स्पष्ट किए गए हैं। हालांकि आयोग ने कोर्ट से कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर अलग से जवाब दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय दिया जाए। कोर्ट ने आयोग की मांग स्वीकार करते हुए समय प्रदान कर दिया। आयोग ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ताओं के हलफनामों में कई गलत और भ्रामक जानकारी दी गई है, जिनका जवाब विस्तार से दिया जाएगा।

ड्रॉप डाउन में हुई तकनीकी गलती

प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि पिछली सुनवाई के दौरान एक हलफनामा पेश किया गया था, जिसमें कहा गया था कि किसी व्यक्ति का EPIC नंबर (Electors Photo Identity Card) नहीं मिला। बाद में जांच में पाया गया कि जानकारी सही थी, लेकिन उस व्यक्ति का नाम ड्राफ्ट रोल में नहीं था। जनवरी 2025 के ड्राफ्ट रोल में उसका नाम मौजूद था। भूषण ने कहा कि यह गलती ड्रॉप डाउन मेनू में एक तकनीकी त्रुटि के कारण हुई थी। इस मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर को होगी।

आयोग का दावा

चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा है कि याचिकाकर्ता बिहार की वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया को “भटकाने और रोकने” की कोशिश कर रहे हैं। आयोग के अनुसार, उनके द्वारा दाखिल किए गए हलफनामों में गलत और मनगढ़ंत तथ्य शामिल हैं। आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का असली उद्देश्य इस प्रक्रिया को न केवल बिहार में बल्कि अन्य राज्यों में भी बाधित करना है।

योगेंद्र यादव के डेटा विश्लेषण पर सवाल

आयोग ने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अपने दावों में अखबारों की रिपोर्ट और खुद बनाए गए चार्ट्स का इस्तेमाल किया है, जो आधिकारिक दस्तावेज नहीं हैं। आयोग के अनुसार, यह सीमित डेटा का गलत उपयोग है ताकि यह दिखाया जा सके कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं।

मुस्लिम वोटरों के नाम हटाए जाने के आरोप पर जवाब

आयोग ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों का गलत इस्तेमाल किया है, जिससे जनसंख्या के अनुमान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। आयोग ने कहा कि मुस्लिम वोटरों के नाम हटाए जाने के आरोप “साम्प्रदायिक और निंदनीय” हैं, क्योंकि आयोग किसी भी मतदाता का धर्म आधारित डेटा नहीं रखता।

हटाए गए नामों की संख्या और कारण

आयोग ने बताया कि पहले की वोटर लिस्ट में कुल 7.89 करोड़ मतदाता थे। इनमें से 7.24 करोड़ मतदाताओं ने सत्यापन फॉर्म भरा, जबकि 65 लाख ने ऐसा नहीं किया। जांच में पाया गया कि इनमें से 22 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी थी, 36 लाख स्थायी रूप से अन्य स्थानों पर चले गए और 7 लाख लोगों के नाम दो जगह दर्ज थे। इस प्रक्रिया के दौरान 3.66 लाख नाम हटाए गए, लेकिन यह सब कानूनी नोटिस और सुनवाई के बाद किया गया।

चुनाव आयोग ने कहा कि कुछ “अजीबोगरीब” नामों की त्रुटियां हिंदी ट्रांसलेशन सॉफ्टवेयर की वजह से हुई थीं। अंग्रेजी रिकॉर्ड में जानकारी सही थी और सभी त्रुटियों की जांच बूथ लेवल अधिकारियों द्वारा की गई।

वोटर लिस्ट की सफाई का क्या है लक्ष्य

आयोग ने कहा कि “काल्पनिक हाउस नंबर” जैसी शिकायतें भी गलत हैं। घर का विवरण मतदाता स्वयं देते हैं और अस्थायी नंबर सिर्फ परिवारों को एक साथ दर्शाने के लिए बनाए जाते हैं। SIR 2025 में किसी नए निशान का उपयोग नहीं किया गया। आयोग ने बताया कि इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य वोटर लिस्ट की सफाई (cleansing) था, जो सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। फाइनल वोटर लिस्ट 30 सितंबर 2025 को जारी की जा चुकी है।

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