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चाईबासा में ‘हो’ जनजाति का बड़ा फैसला, एक ही गोत्र में शादी करने पर दंपति समाज से बहिष्कृत

चाईबासा में ‘हो’ जनजाति का बड़ा फैसला, एक ही गोत्र में शादी करने पर दंपति समाज से बहिष्कृत

झारखंड के चाईबासा में ‘हो’ जनजाति के युवक-युवती को एक ही गोत्र में शादी करने पर समाज से आजीवन बहिष्कृत कर दिया गया। ग्राम सभा ने परंपरा उल्लंघन को पाप मानते हुए सर्वसम्मति से यह सख्त फैसला सुनाया।

चाईबासा: झारखंड के चाईबासा जिले से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां ‘हो’ जनजाति की ग्राम सभा ने एक युवक और युवती को एक ही गोत्र में विवाह करने के कारण समाज से आजीवन बहिष्कृत कर दिया। ग्राम सभा ने इस विवाह को परंपरा के उल्लंघन और धार्मिक नियमों के विरुद्ध बताते हुए इसे “पाप” करार दिया। इस फैसले ने परंपरागत रीति-रिवाजों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है।

ग्राम सभा ने परंपरा तोड़ने पर दी सजा

यह घटना चाईबासा के जगन्नाथपुर प्रखंड की है, जहां रविवार 26 अक्टूबर को हुई ग्राम सभा की बैठक में यह निर्णय लिया गया। सभा में ग्राम प्रधान, धर्मगुरु, दोनों परिवारों के सदस्य और समुदाय के वरिष्ठ लोग मौजूद थे।

बैठक में सर्वसम्मति से तय हुआ कि एक ही गोत्र में विवाह करना ‘हो’ जनजाति की धार्मिक परंपराओं के खिलाफ है, इसलिए दोनों को समाज से निष्कासित किया जाए। यह निर्णय सार्वजनिक रूप से सुनाया गया, जिसके बाद गांव और आसपास के क्षेत्रों में इस घटना को लेकर चर्चा तेज हो गई।

विवाह पर समाज में मचा विरोध

जानकारी के मुताबिक, युवक चाईबासा के लखीपाई गांव का रहने वाला है, जबकि युवती टोंटो प्रखंड के पदमपुर गांव से है। दोनों एक-दूसरे को कुछ समय से जानते थे और सामाजिक नियमों की परवाह किए बिना विवाह कर लिया।

समाज को इस विवाह की जानकारी तब मिली जब युवती गर्भवती हुई। इसके बाद समुदाय के कई वरिष्ठ सदस्य भड़क उठे और मामले को ग्राम सभा में लाया गया। ‘हो’ जनजाति में एक ही गोत्र के लोग भाई-बहन समान माने जाते हैं, इसलिए ऐसा विवाह सामाजिक रूप से वर्जित माना जाता है।

महासभा ने ग्राम सभा के फैसले पर दी प्रतिक्रिया

‘हो’ समाज युवा महासभा के महासचिव गब्बर सिंह हेम्ब्रम ने कहा कि संगठन ने ग्राम सभा के निर्णय को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया है कि वह किसी भी प्रकार की हिंसा या सामाजिक उत्पीड़न का समर्थन नहीं करता।

उन्होंने बताया कि महासभा समाज के पारंपरिक मूल्यों की रक्षा के साथ-साथ युवाओं को कानून, शिक्षा और सामाजिक चेतना के प्रति जागरूक करने का भी काम करती है। हेम्ब्रम ने यह भी कहा कि आधुनिक समय में ऐसे मामलों को संवेदनशील तरीके से संभालने की आवश्यकता है ताकि परंपरा और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बना रहे।

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